अविकसित सोच से ग्रस्त समाज

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पुत्र की चाह अक्सर महिलाओं की मौत का कारण भी बन जाती है। बरेली के एक लोमहर्षक प्रकरण के मामले में अदालत में पत्नी का पेट चीर कर बच्चे को बाहर निकालने के मामले में सजा सुनाई है। यह पूरा प्रकरण पुत्र की चाहत से जुड़ा हुआ है जिसमें महिला की पांच बेटियां होने के बाद पति बेटे की चाह में सारी हदों को भूल बैठा। बरेली का यह प्रकरण उस वक्त पूरे देश में सुर्खियों का केंद्र बना था जब गर्भवती के पति ने अपनी पत्नी के पेट को दरांती से चीर दिया था सिर्फ यह देखने के लिए कि इस बार उसकी पत्नी पांच बेटियों को जन्म देने के बाद बेटा पैदा कर रही है या फिर बेटी। पीड़ित महिला शादी के बाद से बेटियां पैदा करने के कारण प्रताड़ना का शिकार बनती रही तो इस बार फिर घटना के समय महिला आठ माह की गर्भवती थी। पांच बेटियां पैदा करने के लिए महिला का पति उसे ही जिम्मेदार मानता था। चुंकी शंका मन में अभी भी पुत्री के जन्म होने की बनी हुई थी तो पति ने पति से झगड़ा करते हुएअपनी गर्भवती पत्नी का पेट हंसिए से चीर दिया, जिससे आठ माह के शिशु का गर्भपात हो गया। जैसी करनी वैसी भरनी, शायद दरिंदे पति की किस्मत में पुत्र था ही नहीं और गर्भपात के बाद पता चला कि आठ माह का शिशु बालक ही था। कानूनी प्रक्रिया के बाद अब दरिंदे पति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है लेकिन इस घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है और यह सोचने पर भी विवश कर दिया है कि क्या एक पुत्र की चाहत इस तरह से सारी हदों को पार कर सकती है, जिसमें कोई पति बेहद निर्दयता के साथ सिर्फ यह देखने के लिए कि पैदा होने वाला लड़का है या लड़की अपनी पत्नी का पेट चीर डालें। आज भी हमारा देश इस कुत्सित रूढ़िवादिता से मुक्त नहीं हो पाया है जिसमें बेटियों के पैदा होने पर दुख जताया जाता है और पुत्र के जन्म लेने पर बेहिसाब खुशियां उजागर की जाती हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि अब सोच बदल रही है लेकिन इस प्रकार की घटनाएं बेटी व बेटी में समानता की सोच के बीच एक दरार तो पैदा करती ही है। शिक्षित समाज में भी ऐसे कई मामले सामने आते हैं जिसमें एक महिला को ही बेटी पैदा करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है और सिर्फ इसीलिए उसे बेहद निर्दयता के साथ मानसिक व शारीरिक तौर पर प्रताड़ित भी किया जाता है।

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