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ओबीसी की पहचान का राज्यों को फिर दिया जाएगा अधिकार, केंद्र सरकार मानसून सत्र में ही लाएगी विधेयक

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नई दिल्ली, एजेंसी। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण पर राज्यों को मिले अधिकार बहाल होंगे। केंद्र सरकार ने इसके लिए अब संसद का रास्ता चुना है। इसे लेकर बुधवार को कैबिनेट में विधेयक को लाने की तैयारी है। वहां से मंजूरी के बाद इसे संसद के चल रहे मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से अगले एक-दो दिनों में पारित कराने की योजना है।
केंद्र सरकार ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद उठाया है, जिसमें ओबीसी की पहचान करने और सूची बनाने के राज्यों के अधिकार को अवैध बताया था। कोर्ट का कहना था कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों को सामाजिक व आर्थिक आधार पर पिछड़ों की पहचान करने और अलग से सूची बनाने का कोई अधिकार नहीं है। सिर्फ केंद्र ही ऐसी सूची बना सकता है। वही सूची मान्य होगी।
कोर्ट के इस फैसले के बाद एक नया विवाद खड़ा हो गया था, क्योंकि मौजूदा समय में ओबीसी की केंद्र और राज्यों की सूची अलग-अलग है। राज्यों की सूची में कई ऐसी जातियों को रखा गया है, जो केंद्रीय सूची में नहीं है। केंद्र इस मामले को लेकर इसलिए भी सतर्क है, क्योंकि राज्य की सूची के आधार पर ही कई ऐसी पिछड़ी जातियां हैं, जो राज्य की सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण का लाभ पा रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू होने से इन जातियों को नुकसान होने का खतरा है।
आरक्षण जैसे संवेदनशील मामले में केंद्र सरकार किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। यही वजह है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही साफ कर दिया था कि वह इससे सहमत नहीं है। वह राज्यों को उसके अधिकार वापस देगी।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद नए मंत्री वीरेंद्र कुमार ने भी अधिकारियों के साथ सबसे पहले इस मुद्दे पर मंत्रणा की। साथ ही कानूनी विशेषज्ञों और पीएमओ से मशविरा करने के बाद विधेयक को अंतिम रूप दिया।
केंद्र सरकार ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की थी। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। ओबीसी की केंद्रीय सूची में मौजूदा समय में करीब 26 सौ जातियां शामिल हैं।

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