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सुको ने दुष्कर्म पीड़ितों पर टू-फिंगर टेस्ट की निंदा की, कहा- ऐसा करने पर माने जाएंगे दोषी

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नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दुष्कर्म पीड़ितों पर श्टू-फिंगर टेस्टश् प्रथा की निंदा की और कहा कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और इसमें महिलाओं को फिर से पीड़ित किया जाता है, जिनका यौन उत्पीड़न हुआ हो, और यह एक अपमान है। यौन उत्पीड़न और बलात्कार के शिकार लोगों पर श्टू-फिंगर टेस्टश् किया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उन्हें यौन संबंधों की आदत है या नहीं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सुझाव देना पितृसत्तात्मक और सेक्सिस्ट है कि एक महिला पर विश्वास नहीं किया जा सकता है जब वह कहती है कि उसके साथ दुष्कर्म किया गया है, केवल इसलिए कि वह यौन रूप से सक्रिय है। अदालत ने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो इस अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए टू-फिंगर टेस्ट या योनि परीक्षण करता है, तो वह कदाचार का दोषी होगा।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने झारखंड सरकार की एक याचिका पर एक फैसले में यह टिप्पणी की जिसमें उसने शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय को बलात्कार और हत्या के आरोपों से बरी करने को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और राय को बलात्कार और हत्या का दोषी ठहराते हुए निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई।
इसलिए हम उच्च न्यायालय के 27 जनवरी, 2018 के फैसले को रद्द करते हैं और सत्र न्यायालय के 10 अक्टूबर, 2006 के फैसले को बहाल करते हैं। जिसमें प्रतिवादी को आईपीसी की धारा 302, 341, 376 और 448 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। पीठ ने कहा कि ये सजाएं साथ-साथ चलेंगी। प्रतिवादी को तुरंत सजा काटने के लिए हिरासत में लिया जाएगा। पीठ ने कहा कि झारखंड के देवघर स्थित सदर अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने पीड़िता की जांच के दौरान यह पता लगाने के लिए दो अंगुलियों का परीक्षण किया था कि क्या उसे संभोग की आदत थी।

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