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जमानत केस में हाई कोर्ट के अधिकारियों को तलब करने से सुप्रीम कोर्ट नाखुश

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नई दिल्ली,एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करने के झारखंड हाई कोर्ट के आदेश पर नाराजगी जताई। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट इस मामले के दायरे से बाहर निकल गया। अगर उसे लगता है कि तथ्यात्मक स्थितियां इस तरह की कार्रवाई का समर्थन करती हैं तो वह ज्यादा से ज्यादा इस मामले को जनहित याचिका बना सकता है।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ष्ण मुरारी की खंडपीठ ने 29 जून को पारित अपने आदेश में कहा कि अधिकारियों के पेश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। चूंकि हाई कोर्ट के न्यायाधीश के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका को लेकर चल रही कार्यवाही बंद हो गई है, इसलिए अब इस मामले में कुछ भी शेष नहीं है।
पीठ नौ अप्रैल और 13 अप्रैल को पारित हाई कोर्ट के दो आदेशों के खिलाफ झारखंड सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव सहित वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया था और उनसे पूछा था कि उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई क्यों न की जाए।
अपनी याचिका में राज्य सरकार ने कहा कि हाई कोर्ट ने अप्रत्याशित ढंग से उक्त कार्यवाही जारी रखी और जांच अधिकारियों व सरकारी डाक्टरों की ओर से हुई कथित चूक पर राज्य से संबंधित सामान्य प्रति के कई निर्देश जारी किए। इस चूक के परिणामस्वरूप ही आरोपित पर कथित रूप से झूठा मुकदमा चलाया गया, जिसने अग्रिम जमानत के लिए अर्जी दी थी।
हाई कोर्ट धनबाद निवासी बसीर अंसारी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिस पर उसकी पत्नी अंजुम बानो द्वारा शादी के एक साल के भीतर अपने मायके में आत्महत्या करने के बाद आइपीसी की धारा 49ए और अन्य प्रविधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है।
अंसारी ने कहा कि उसकी शादी सात जुलाई, 2018 को हुई थी और उसकी पत्नी ने अगस्त, 2018 में पेट दर्द की शिकायत की थी। इसके बाद उसका अल्ट्रासाउंड किया गया, जिसमें पता चला कि वह तीन महीने की गर्भवती है। बसीर ने कहा, अंजुम बानो के पिता को इस बाबत सूचित किया गया और उसे उसके पिता को सौंप दिया गया। वह उसे अपने गांव ले गए और उसका गर्भपात करा दिया गया। इसके बाद अंजुम बानो ने अपने पिता के घर पर आत्महत्या कर ली।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अंजुम बानो का पोस्टमार्टम डा़ स्वपन कुमार सरक ने किया था, लेकिन रिपोर्ट में उन्होंने महिला की मृत्यु से ठीक पहले गर्भपात का उल्लेख नहीं किया।
हाई कोर्ट ने तब मुख्य सचिव को झारखंड में सरकारी या निजी क्षेत्र में प्रैक्टिस करने वाले सभी डाक्टरों के प्रमाणपत्रों को सत्यापित करने का निर्देश दिया था। नौ अप्रैल को हाई कोर्ट ने कहा था कि मुख्य सचिव द्वारा दायर हलफनामा अदालत के पहले के आदेशों के अनुसार नहीं है, जबकि वह डा़ स्वपन कुमार सरक की नामांकन संख्या का उल्लेख करने में भी विफल रहे हैं, जिनके आचरण का मामला 2018 से अदालत में लंबित है।
इसके बाद मुख्य सचिव, गृह सचिव और स्वास्थ्य सचिव को उसी दिन वर्चुअल माध्यम से बुलाया गया, लेकिन वे उपस्थित नहीं हुए और बाद में उन्होंने अपनी अनुपस्थिति का कारण कोरोना प्रबंधन से संबंधित मुद्दों के कारण अपने व्यस्त कार्यक्रम को बताया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने डा़ स्वपन कुमार सरक के कथित आचरण को लेकर अग्रिम जमानत के पहलू के बाहर के कई अन्य पहलुओं पर गौर किया।

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