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वन्यजीवों का निरंतर गहराता खौफ मुसीबत का सबब बना

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देहरादून। उत्तराखंड की वन्यजीव विविधता भले ही बेजोड़ हो, मगर वन्यजीवों का निरंतर गहराता खौफ मुसीबत का सबब भी बना हुआ है। बाघ, गुलदार, हाथी, भालू जैसे जानवर जान के खतरे का सबब बने हैं तो बंदर, लंगूर, सूअर, वनरोज जैसे जानवर फसलों के दुश्मन। खेती के लिहाज से देखें तो बंदर सबसे अधिक क्षति पहुंचा रहे हैं। इसे देखते हुए अब उत्पाती बंदरों को पकड़कर बाड़ों में रखने की मुहिम तेज की जाएगी। प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि एवं प्रबंधन योजना प्राधिकरण (कैंपा) की चालू वित्तीय वर्ष की कार्ययोजना में प्रदेश में चार बंदरबाड़ों के लिए आठ करोड़ की राशि का प्रविधान किया गया है। ये बंदरबाड़े प्राकृतवास में ही तैयार किए जाएंगे। यानी संबंधित स्थलों में बड़े वन क्षेत्र की घेरबाड़ कर उसे बाड़े में तब्दील किया जाएगा। इससे बंदरों को बंधन का अहसास भी नहीं होगा। राज्य के पर्वतीय इलाके हों अथवा मैदानी, सभी जगह बंदरों के उत्पात ने नींद उड़ाई हुई है। फसलों को तो बंदर भारी क्षति पहुंचा ही रहे, अब घरों के भीतर तक धमक कर हमले भी कर रहे हैं। आए दिन बंदरों के हमलों की घटनाएं सुर्खियां बन रही हैं। हालांकि, लगातार गहराती इस समस्या के समाधान के लिए पूर्व में हरिद्वार के चिड़ियापुर स्थित रेसक्यू सेंटर में बंदरों को पकड़कर उनके बंध्याकरण की मुहिम शुरू की गई, मगर विभिन्न कारणों से यह रफ्तार नहीं पकड़ पाई। इसे देखते हुए अब राज्य में चिडिय़ापुर, केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग, दानी बांगर और भूमि संरक्षण वन प्रभाग अल्मोड़ा में एक-एक बंदरबाड़े के लिए कैंपा में आठ करोड़ की धनराशि का प्रविधान किया गया है। अगले माह तक यह राशि जारी हो जाएगी। वन महकमे से मिली जानकारी के अनुसार कैंपा से धनराशि मिलने के बाद बंदरबाड़ों के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। प्रयास ये है कि चारों बंदरबाड़े इसी वर्ष अस्तित्व में आ जाएं। इसके अलावा कुछेक अन्य स्थानों पर भी बंदरबाड़े स्थापित किए जाएंगे। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। बंदरबाड़ों में रखे जाने वाले बंदरों का बंध्याकरण भी किया जाएगा, ताकि इनकी बढ़ती संख्या पर अंकुश लग सके।

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