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इस बार लैंडिंग के दौरान आखिरी पलों का जोखिम नहीं, चंद्रयान-3 पर क्यों टकटकी लगाए बैठे हैं देश?

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नई दिल्ली, एजेंसी। चंद्रयान 3 की सफल लॉंचिंग के बाद अब चंद्रमा की सतह पर उसकी सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग की घड़ी निकट आती जा रही है। इसरो की पूरी तैयारी है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की टीम ने इस बार सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान, ‘लास्ट मिनट्स ऑफ टेरर’ के जोखिम को लगभग खत्म कर दिया है। लैंडिंग के वक्त वे सभी विकल्प मौजूद रहेंगे, जिनका इस्तेमाल किसी भी आपात स्थिति में सुरक्षित लैंडिंग के लिए किया जा सकता है।
दुनिया के कई देशों की निगाहें चंद्रयान-3 पर टिकी हैं। खासतौर पर रूस, अमेरिका और चीन, ‘चंद्रयान 3’ की सॉफ्ट लैंडिंग पर टकटकी लगाए बैठे हैं। वजह, चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने का मुकाम इन्हीं तीन देशों को हासिल है। चंद्रयान 3 की राह में कोई चट्टान आई या उतरने वाली जगह समतल नहीं है तो ऐसे में उसकी दिशा बदलने का विकल्प रखा गया है। यूं कह सकते हैं कि इस बार सॉफ्ट लैंडिंग में कठोर जैसा कुछ नहीं है। ‘चंद्रयान 3’ के लिए एक स्प्रिंग पर सितंबर 2019 में चंद्रयान 2, जब चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास कर रहा था तो उसका विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया था। वह सब, आखिरी के पंद्रह मिनट में हुआ। यही वजह है कि सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया में ‘लास्ट मिनट्स ऑफ टेरर’ रहता है। इसे अंतिम क्षण का जोखिम कहा जाता है। यही वो घड़ी होती है जब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सांसें थमने लगती हैं। सितंबर 2019 में चंद्रयान 2 के साथ जो कुछ भी हुआ, इस बार उसके सभी पहलुओं का बारीकि से अध्ययन किया गया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने उन सभी विकल्पों को अपने साथ लिया है, जिनका इस्तेमाल किसी भी आपात स्थिति में सुरक्षित लैंडिंग के लिए किया जा सकता है। इसके लिए इसरो में कोई एक-दो नहीं, बल्कि अनेकों ‘ब्रेन स्टॉर्मिंग’ सत्र आयोजित किए गए। इन्हीं के द्वारा, ‘चंद्रयान 3’ की सुरक्षित लैंडिंग की तैयारी की गई है। अगर चंद्रमा की सतह पर उतरते वक्त अगर कोई भी बाधा आई तो उसे दूर कर दिया जाएगा। सामने पत्थर आया तो भी चंद्रयान 3 संभल जाएगा। वैज्ञानिकों ने इस बार कई विकल्प अपने पास रखे हैं।
पूर्व वैज्ञानिक एवं प्रमुख रेडियो कार्बन डेटिंग लैब, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ, डॉ. सीएम नौटियाल का कहना है कि चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग को लेकर इस बात कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। इसरो के वैज्ञानिकों ने अपने ‘ब्रेन स्टॉर्मिंग’ सत्रों में हर उस बात पर विचार किया है, जो अंतिम समय में हो सकती है। भारत चंद्रयान 3 की सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग के मिशन में कामयाब होगा। रोवर, चांद की सतह पर चलेगा और वैज्ञानिक परीक्षण भी करेगा। हमारे वैज्ञानिकों ने 2019 की घटना से बहुत कुछ सीखा है। चंद्रयान 2 के उतरने के लिए जितना क्षेत्र निर्धारित किया गया था, अब उसमें काफी इजाफा किया गया है। पहले वह क्षेत्र साीमित था। इस दफा बड़े क्षेत्र का चयन हुआ है। अगर लैंडिंग के लिए एक जगह उपयुक्त नहीं लगी तो दूसरी जगह भी तैयार रहेगी। लैंडिंग के लिए लगभग 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तय किया गया है। इसरो के पूर्व निदेशक डॉ. के सिवन की मीडिया बाइट के अनुसार, पिछली बार लैंडिंग प्रक्रिया के बाद हमने डेटा देखा था। उसके आधार पर सुधारात्मक उपाय किए गए हैं। जहां भी मार्जिन कम है, हमने उन मार्जिन को बढ़ाया है। चंद्रयान 2 से हमने जो सबक सीखा है, उसके आधार पर चंद्रयान 3 के सिस्टम को अधिक मजबूती के साथ आगे बढ़ाया है।
चंद्रयान 3 को टारगेट स्थल से आगे-पीछे ले जाने की व्यवस्था रहेगी। एक किलोमीटर के दायरे में उसकी सुरक्षित लैंडिंग हो सकती है। अगर एक जगह ठीक नहीं है तो दूसरे स्थान पर लैंडिंग हो जाएगी। चंद्रयान 2 में पांच इंजन लगे थे, इस बार चार इंजन रखे गए हैं। ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि चंद्रयान 3 का वजन कम रहे। डॉ. सीएम नौटियाल के मुताबिक, चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण बल कम होता है। पृथ्वी के मुकाबले वहां पर वजन 1/6 कम रहता है। वहां पर वही बल विपरित दिशा में काम करता है। वजन कम रखने से कई बातें आसान हो जाती हैं। चंद्रयान 3 से लगातार संपर्क बना रहे, इसके लिए पावरफुल सेंसर लगाए गए हैं। वेट और उंचाई मापने के लिए तुंगतामापी (अल्टीमीटर) यंत्र का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके जरिए हमें पता लगेगा कि चंद्रमा की सतह से चंद्रयान 3 की उंचाई कितनी है। वेट मापने का यंत्र डोप्लर के सिद्धांत पर काम करेगा। इसके माध्यम से लगातार उंचाई और वेट का पता चलता रहेगा। जिस जगह पर चंद्रयान 3 उतरेगा, उसका दायरा बढ़ा दिया गया है।
चंद्रमा की सतह पर पर्यावरण स्वच्छ होता है। वहां प्रदूषण की कोई गुंजाइश नहीं है। अगर ऐसा कोई कण होता है तो वह हवा में जल जाता है। इस वजह से वहां जो भी वस्तु आती है, वह सीधे ही चंद्रमा की सतह से टकराती है। जब सीधे ही कोई वस्तु टकराती है तो वह इधर उधर छिटक भी सकती है। वहां पर पहले से धंसी हुई मिट्टी से चट्टान बाहर आ जाती है। चंद्रमा पर बहता हुआ पानी तो है नहीं, इसलिए वहां मौजूद गड्ढे भरते नहीं हैं। चट्टान या क्रेटर, सब वैसे ही रहते हैं। चंद्रयान 3 के लिए समतल जगह का चयन किया गया है। अगर उस वक्त कोई पदार्थ बीच राह में आया तो भी चंद्रयान का संतुलन नहीं बिगड़ने दिया जाएगा। उस वक्त की फोटोग्राफी होती रहेगी। इससे भी अधिक कोई बाधा आती है तो चंद्रयान 3 की दिशा बदली जाएगी। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक केवल वही अभ्यास किया है, कि गड़बड़ कहां हो सकती है। उसका निदान क्या होगा, इन सभी बातों को पहले ही सोचा गया है। यही वजह है कि पत्थरों के बीच चंद्रयान की दिशा बदलने का विकल्प पास रखा गया है। ये सभी कमांड, पूर्णत: स्वचालित रहती हैं। ऑर्बिटर वहीं से कंट्रोल करेगा। लैंडर में सेंसर लगाए गए हैं। ‘चंद्रयान-3’ की कामयाबी भारत को पृथ्वी से बाहर यानी चंद्रमा पर एक स्टेशन तैयार करने का अवसर प्रदान करेगी। यहां से दूसरे ग्रहों पर जाना आसान हो जाएगा।

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