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विक्रम-1: जनवरी 2024 में लॉन्च होगा विक्रम-1, भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए क्यों खास है सात मंजिला रॉकेट?

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नई दिल्ली, एजेंसी। भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार इतिहास रच रहा है। देश की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने हाल ही में चंद्रयान-3 को चन्द्रमा की सतह पर उतारा। इसके बाद देश के पहले सौर मिशन आदित्य-एल1 की लॉन्चिंग भी चर्चा का विषय बनी। इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब निजी क्षेत्र की कंपनी स्काईरूट भी विक्रम-1 रॉकेट को लॉन्च करने की तैयारी कर रही है।
भारतीय स्टार्टअप स्काईरूट ने पिछले दिनों दक्षिण हैदराबाद में जीएमआर एयरोस्पेस और औद्योगिक पार्क में विक्रम-1 रॉकेट का अनावरण किया। इस दौरान विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने स्काईरूट के नए मुख्यालय ‘द मैक्स-क्यू कैंपस’ का भी उद्घाटन किया।
इस मौके पर जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत अब अंतरिक्ष क्षेत्र में अन्य देशों का नेतृत्व करने की स्थिति में है। अपने संबोधन में उन्होंने उम्मीद जताई कि स्काईरूट संस्था जल्द ही विक्रम-1 ऑर्बिटल लॉन्च व्हीकल का प्रक्षेपण भी करेगी।
विक्रम-1 एक छोटा लॉन्च व्हीकल है जो 480 किलोग्राम तक के पेलोड को अंतरिक्ष में 500 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकेगा। इसका उद्देश्य छोटे सैटेलाइट को लॉन्च करना है। इसका नाम भारतीय अंतरिक्ष अभियान के जनक कहे जाने वाले विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। यह देश का पहला निजी तौर पर निर्मित सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। कंपनी विक्रम सीरीज के तीन लॉन्च व्हीकल बना रही है। विक्रम-2 रॉकेट का पेलोड 595 किलोग्राम और विक्रम-3 का पेलोड 815 किलोग्राम होगा।
स्काईरूट के अनुसार, विक्रम-1 के प्रणोदन चरण पूरी तरह से विश्वसनीय हैं। यान में इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम आधुनिक और आकार में छोटे हैं। यह बेहद हल्के झटके में हवा में अलग होने की क्षमता रखता है।
यह कई मायनों में लचीला है। विक्रम-1 दोबारा स्टार्ट होने की क्षमता रखता है जिसके जरिए रॉकेट का एक साथ कई कक्षाओं में प्रवेश कराया जा सकता है। आर्थिक दृष्टि से भी यह कम लागत में पेलोड भेज सकता है। रॉकेट न्यूनतम श्रेणी के बुनियादी ढांचे में भी काम कर सकता है। इसे किसी भी लॉन्च साइट से 24 घंटे के भीतर असेंबल और लॉन्च किया जा सकता है।
देश के पहले निजी रॉकेट विक्रम-एस की लॉन्चिंग 18 नवंबर 2022 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से की गई थी। अंतरिक्ष स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस की ओर से विकसित रॉकेट को इसरो ने श्रीहरिकोटा स्थित अपने लॉन्च पैड से लॉन्च किया था। स्काईरूट एयरोस्पेस के इस पहले मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया था, जिसमें तीन उपभोक्ता पेलोड थे।
यह मिशन स्काईरूट के लिए एक अहम मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि इसने उन 80 फीसदी तकनीकों को मान्यता दिलाने में मदद की, जिनका उपयोग विक्रम-1 कक्षीय वाहन में किया गया।
स्काईरूट के सीओओ भरत ढाका ने कहा कि विक्रम-1 अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान का अनावरण बहुत गर्व का क्षण है। उन्होंने कहा कि विक्रम-1 के निर्माण में हमारी डिजाइन क्षमता और अत्याधुनिक घरेलू तकनीक अभिन्न अंग रही है। हम 2024 की शुरुआत में लॉन्च के लिए इसकी तैयारी कर रहे हैं।
इसरो के पूर्व इंजीनियरों पवन कुमार चंदाना और भरत ढाका ने 2018 में स्काईरूट एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड नामक स्टार्टअप बनाया था। चंदाना आईआईटी खड़गपुर और ढाका आईआईटी मद्रास से पढ़े हैं। इसरो में चंदाना ने देश के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 जैसे अहम प्रोजेक्ट पर काम किया जबकि ढाका ने इसरो में फ्लाइट कंप्यूटर इंजीनियर के तौर पर तमाम अहम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयरों पर काम किया। स्काईरूट पहला ऐसा स्टार्टअप है जिसने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ रॉकेट बनाने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ के मुताबिक, अंतरिक्ष तकनीक और नवोन्मेष के क्षेत्र में इसरो के साथ काम करने के लिए 100 स्टार्ट-अप समझौता कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि 100 में से करीब 10 ऐसी कंपनियां हैं, जो सैटेलाइट और रॉकेट विकसित करने में जुटी हैं।

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