अतीक-अशरफ हत्या मामले में वढ सरकार ने दाखिल की कैविएट
नई दिल्ली, एजेंसी। कोर्ट कचहरी के मामले में आप लोगों ने कई बार कैविएट याचिका का जिक्र जरूर सुना होगा। कई वकील और आम लोग भी इस शब्द का प्रयोग करते हैं। आखिर ये कैविएट होता क्या है और किन किन तरह के मामलों में कैविएट याचिका दायर की जाती है।
बता दें कि केवियट के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 148(ए) में प्रावधान मिलते हैं। कैविएट का संबंध केवल सिविल मामलों से होता है।
कैविएट का मतलब किसी व्यक्ति को पहले से ही सावधान करना होता है। सिविल मामलों में कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जहां कोई परिवादी किसी मुकदमे को न्यायालय में लेकर आता है और उस मुकदमे से संबंधित प्रतिवादी को समन जारी किए जाते हैं।
कैविएट याचिका एक तरह का बचाव होता है ताकि कोर्ट किसी मामले में एक पक्षीय फैसला ना सुनाए। सिविल प्रोसीजर के कोड 148 (ए) के तहत कैविएट याचिका फाइल की जाती है।
यदि पक्षकार हाजिर नहीं होता है तब कोर्ट ऐसे पक्षकार को एकपक्षीय कर अपना फैसला सुना देता है।
ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए कैविएट जैसी व्यवस्था बनाई गई है। कानून में यह नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत है कि सभी पक्षकारों को बराबरी से सुना जाए।
सभी पक्षकारों से बराबरी से सबूत लिए जाएं, उसके बाद अपना फैसला सुनाया जाए। लेकिन कई मामले ऐसे होते हैं, जहां पक्षकार कोर्ट की किसी बात को सुनते ही नहीं हैं।
किसी प्रतिवादी (ऊीऋील्लंिल्ल३) को न्यायालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया जाता है, लेकिन प्रतिवादी न्यायालय की बात की अवहेलना कर देते हैं। मजबूर होकर उस अवहेलना करने वाले पक्षकार को कार्यवाही से एकपक्षीय करना पड़ता है, जिसका मतलब है कि उस व्यक्ति का पक्ष सुना ही नहीं जाता है, क्योंकि कोर्ट उसे बार बार बुला रहा होता है और वह व्यक्ति कोर्ट के समक्ष उपस्थित ही नहीं हो रहा था।
यहां पर कोर्ट को भी न्याय करना होता है, ऐसी परिस्थिति में अदालत केवल एक पक्ष (वादी) को सुनकर कोई भी फैसला सुना देती है, जो तथ्यों और परिस्थितियों के अनुरूप ही होता है।
वहीं, कई बार इस व्यवस्था का दुरुपयोग (ट्र२४२ी ङ्मऋूं५ीं३ स्री३्र३्रङ्मल्ल) भी होता था। कई बार समन की तामील होती ही नहीं थी और वादी द्वारा यह कह दिया जाता था कि समन की तामील हो चुकी है। इसके बाद इससे संबंधित सबूत भी न्यायालय में पेश कर दिए जाते थे, जबकि प्रतिवादी (ऊीऋील्लंिल्ल३) को इस बात की कोई जानकारी ही नहीं होती थी, इसलिए कैविएट (उं५ीं३) जैसी व्यवस्था आई।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 148(ए) कैविएट को उल्लेखित करती है। इस धारा में कहा गया है कि कोई भी पक्षकार किसी मामले में अंदेशे के आधार पर न्यायालय के समक्ष एक कैविएट दाखिल करके यह कह सकता है कि अगर उससे संबंधित मामला कोर्ट में लाया जाए तब उसके पक्ष को सुने बिना मामले में किसी प्रकार का कोई भी फैसला ना दिया जाए।
ऐसी कैविएट किसी कोर्ट में अपने खिलाफ भविष्य में आने वाली किसी कार्यवाही में पक्षकार बनने के अंदेशे पर दिया जाता है। जाहिरतौर पर न्यायालय में किसी तरह का कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता है, लेकिन मुकदमा दर्ज होने की संभावनाएं होती हैं।
तो बस इसी संभावना के आधार पर ही कैविएट को दाखिल किया जाता है। जैसे कि किसी व्यक्ति को यह संभावना है कि कोई व्यक्ति या संस्था उसके खिलाफ किसी प्रकार का सिविल प्रकरण या किसी अन्य मामले को लेकर न्यायालय के समक्ष ला सकता है, तब वह व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कैविएट दायर कर सकता है।
बता दें कि इस तरह की कैविएट किसी भी मामले में दाखिल की जा सकती है, भले ही कोई वाद हो या कोई अपील। हालांकि आमतौर पर ऐसी कैविएट अपील की संभावना के आधार पर दाखिल होती है।