1971 का युद्ध : मेघना हेलीब्रिज रणनीति ने बदला जंग का रुख
नई दिल्ली, एजेंसी : लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह, एक ऐसा योद्धा जिन्होंने स्वतंत्र भारत को यह सिखाया कि युद्ध जीतने के लिए लड़ना चाहिए। वह मानते थे कि वीरगति सर्वश्रेष्ठ बलिदान है, लेकिन युद्ध में जीतना देश की सबसे बड़ी सेवा है। अपनी सोच के कारण वह 1971 तक हर युद्ध में जीत की नई रणनीति गढ़ते रहे और असम्भव माने जाने वाले मोर्चों पर जीत हासिल करते रहे। यह सगत सिंह ही थे जिन्होंने 1967 में यह साबित किया कि चीनियों को पराजित किया जा सकता है। यह सगत सिंह ही थे, जिनकी मेघना हेलीब्रिज रणनीति ने 1971 में पाकिस्तान को घुटने पर लाने में बड़ी भूमिका अदा की थी। यह सगत सिंह ही थे जिन्होंने गोवा को पुर्तगाली कब्जे से मुक्ति दिलाने में सैन्य दृष्टि से सर्वाधिक निर्णायक भूमिका अदा की थी।
1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने हर मोर्चे पर पाकिस्तान को पछाड़ा था लेकिन इस युद्ध में सगत सिंह मेघना-हेलीब्रिज रणनीति की भारतीय सेना का सबसे निर्णायक कदम माना जाता है। इसकी अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आधुनिक सैन्य इतिहास की सबसे नवाचारी सैन्य रणनीतियों में इसे गिना जाता है।
मेघना-हेलीब्रिज : कैसे दिनों में जीत गया भारत
1971 के युद्ध में पाकिस्तान की मात्र 13 दिनों में पराजय पूरी दुनिया के लिए हैरत की बात थी, तो भारतीय सेना और भारतीयों के लिए गर्व की। यदि 1971 का युद्ध इतनी तेजी से समाप्त हुआ तो इसका एक बड़ा कारण मेघना हेलीब्रिज था। सगत सिंह के नेतृत्व में मेघना नदी को पार करने के लिए 9 और 10 दिसम्बर को भारतीय वायुसेना ने 409 उड़ाने भरीं। इसमें 5 हजार सैनिकों और 51 टन सैन्य साजो सामान को मेघना नदी के पार उतारा गया। इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि इस अभियान को भारतीय वायुसेना के 110 हेलीकॉप्टर यूनिट के पुराने एमआई-4 हेलीकॉप्टर्स से अंजाम तक पहुंचाया गया।
एक कदम से दबाव में आया पाकिस्तान और टेक दिए घुटने
सगत सिंह के मेघना नदी पर हेलीब्रिज बनाने के निर्णय की अहमियत इसलिए भी अधिक थी क्योंकि यह निर्णय उन्होंने अपने स्तर पर लिया था। उच्च सैन्य अधिकारियों ने उन्हें मेघना नदी पार न करने के आदेश दिए थे। उन्हें आदेश था कि वह मेघना नदी के पूर्वी किनारे के इलाके को कब्जे में लेकर वहां पर भारतीय सैन्य मोर्चे को मजबूत करें, लेकिन सगत सिंह को लगता था पाकिस्तान की पराजय के लिए भारतीय सैनिकों का मेघना नदी पार करना जरूरी है। उनका मानना था कि मेघना नदी पार करने की खबर से पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान भारी मनोवैज्ञाकिन दबाव में आ जाएगा और उसे घुटने टेकने में समय नहीं लगेगा। बाद में यह साबित हुआ कि उनका निर्णय कितना सही था। लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के एडीसी रहे मेजर जनरल रणधीर सिंह अपनी किताब ’ए टैलेंट फॉर वार: द मिलिट्री बायोग्राफी ऑफ लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह’ में इस बात का विस्तार से वर्णन किया है।
1967 में चीनी सैनिकों पर हमले का अपने लेवल पर दिया था जवाब
इससे पहले भी 1967 में नाथूला में चीनियों के खिलाफ आर्टिलरी फायर करने का निर्णय सगत सिंह ने खुद लिया था, क्योंकि ऊपर से आदेश आने में देरी हो रही थी। नाथूला में चीनी सैनिकों की संख्या अधिक थी और 1962 के युद्ध के बाद वह इस बात की कल्पना भी नहीं करते थे कि भारत उनके खिलाफ आर्टिलरी फायर खोलने का साहस करेगा। सगत सिंह ने स्थिति को भांपते हुए आर्टिलरी फायर खोलने का निर्णय लिया और कुछ ही समय में चीन ने सीजफायर की घोषणा कर दी। इसी तरह 1961 में गोवा को पुर्तगालियों से आजादी दिलाने में भी उनकी भूमिका अहम थी। पुर्तगाली उनसे इस करद चिढ़ गए थे उन्हें मारने वाले को भारी पुरस्कार देने की घोषणा कर दी थी।
जीत को मानते थे रणनीति की पहली शर्त
निर्णायक मौकों पर लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह की रणनीति हमेशा सही साबित होती थी, क्योंकि उनमें सैन्य अवसरों को पहचानने और उसके अनुसार रणनीति बनाने की अद्भुत क्षमता थी। इससे भी बड़ी बात यह थी कि वह लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करने के परम्परागत सिद्धांत में कम विश्वास रखते थे, उनका मानना था कि लड़ते हुए जीतना ही सेना और सैनिकों की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां उनकी सैन्य रणनीति ने दुश्मन को आश्चर्य में डाला और उन्हें पराजित किया। इसी कारण, अधिकांश सैन्य इतिहासकार उन्हें बीसवीं शताब्दी का सबसे प्रतिभाशाली भारतीय सैन्य रणनीतिकार मानते हैं।