आखिरी समय में क्यों कांग्रेस अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी से हटे दिग्विजय सिंह
नई दिल्ली, एजेंसी। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, शशि थरूर और झारखंड के केएन त्रिपाठी सहित कुल तीन लोगों ने नामांकन दाखिल किया था। केएन त्रिपाठी के नामांकन रद होने के कारण वह रेस से बाहर हो गए। अध्यक्ष पद की रेस में मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर शामिल हैं। शशि थरूर ने जहां एक ओर खड़गे को कांग्रेस का भीष्म पितामह करार दिया तो वहीं आलाकमान की ओर से उनको अध्यक्ष पद का उम्मीदवार माना जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए कई नाम सामने आए, जिसमें दिग्विजय सिंह का नाम भी चर्चा में रहा।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए पर्चा लिया था लेकिन उसे जमा नहीं किया। कई राजनीतिक पंडित यह मान रहे हैं कि दिग्विजय सिंह को कांग्रेस के अंदर ही एक गुट ऐसा है जो उनको पसंद नहीं करता है। राजनीतिक जानकार इसके पीटे यह तर्क देते हैं कि दिग्विजय समय-समय पर कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिससे पार्टी को बड़े पैमाने पर नुकसान का सामना करना पड़ता है। दिग्विजय इसी गुट का शिकार हो गए।रंहतंद
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई के मुताबिक दिग्विजय सिंह पार्टी के अंदर मौजूद एक गुट का शिकार हो गए, यह गुट दिग्विजय सिंह को पसंद नहीं करता है। वह मानते हैं कि कांग्रेस के अंदर एक जाति विशेष गुट है, जिसने उनके खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया और पिछले कई घटनाओं को उकेरना शुरू कर दिया, जिसके कारण उन्हें अपना नाम वापस लेना पड़ा। गुट ने यह भी कहना शुरू कर दिया कि समय-समय कई राजपूत नेताओं ने आलाकमान से लोहा लिया है। उन्होंने दिग्विजय के पुराने बयान का भी हवाला देना शुरू कर दिया, जिसमें कहा गया कि अगर वह अध्यक्ष बने तो कांग्रेस के लिए नुकसान होगा।
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन का मानना है कि एक दौर ऐसा भी था जब दिग्विजय कांग्रेस के बेहद करीबी हुआ करते थे। साल 2012 के यूपी चुनाव के दौरान दिग्विजय सिंह गांधी परिवार और खासकर राहुल गांधी के करीब आए थे। हालांकि, उनके और गांधी परिवार के साथ पिछले कुछ सालों के दौरान लगातार दूरियां बढ़ती गई। दिग्विजय अपने बयानों के कारण समय-समय पर चर्चा में बने रहते हैं। उनका बयान न सिर्फ कांग्रेस को नुकासन पहुंचाया बल्कि गांधी परिवार से भी उनकी दूरी को बढ़ा दिया।
गांधी परिवार के इर्द-गिर्द बन रहे नए पावर सेंटर को कतई नहीं नकारा जा सकता है। खड़गे कांग्रेस हाईकमान के बेहद करीबी माने जाते रहे हैं। उन्होंने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे हाईकमान या फिर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा हो। वह कभी भी हाईकामान से अलग सोच रखने वाले नेता के तौर पर नहीं जाने गए। कांग्रेस अध्यक्ष पद का बीते तीन दशको का इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है। मालूम हो कि राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिंह राव को पहले कांग्रेस अध्यक्ष और फिर पीएम बनाया गया। सोनिया गांधी ने उस समय उनको कांग्रेस की कमान पूरी तरीके से सौंपने की सहमति दे दी। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते कई बड़े फैसले भी लिए और साबित कर दिया कि वह आलाकमान के कठपुतली मात्र नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बनने के बाद हाईकमान से राव के रिस्ते बिगड़ते गए। उन्होंने कांग्रेस में खुद को एक पावर सेंटर के रूप में स्थापित कर लिया था। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हो गई, जिसके कारण कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनकी स्थिति कमजोर पड़ने लगी। उसी दौरान उनहोंने उस समय कांग्रेस के सबसे कमजोर नेता के तौर पर माने जा रहे सीताराम केसरी को अपना उत्तराधिकार सौंप दिया। कांग्रेस अध्यक्ष का कमान संभालने के बाद केसरी ने 1998 के लोकसभा चुनाव में केसरी ने नरसिंह राव का टिकट काट दिया। मालूम हो कि ये उदाहरण ये बताने के लिए काफी हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राजनीतिक समीकरण और निर्णय लेने की क्षमता में बदलाव आती रही है। यही कारण है कि गांधी परिवार दिग्विजय सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाने का साहस नहीं कर सका।