दिल्ली अध्यादेश के विरोध में आप क्यों, इंडिया गठबंधन के बाद राज्यसभा से कैसे पास होगा बिल?
नई दिल्ली, एजेंसी । आम आदमी पार्टी और भाजपा दिल्ली अध्यादेश को लेकर पिछले कुछ दिनों से आमने-सामने हैं। अब इसे अगले हफ्ते संसद में पेश किया जा सकता है। पिछले दिनों ही इसे केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। एक ओर जहां आप विरोधी दलों को इसके खिलाफ एकजुट करने की कोशिश में जुटी है वहीं, भाजपा आसानी से इस बिल को पास कराने की तैयारी में जुटी हुई है।
अध्यादेश राष्ट्रपति की तरफ से जारी होते हैं। जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है तब जरूरत पड़ने पर इसी के तहत कानून बनाया जाता है। संसद सत्र चलने के दौरान अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 में अध्यादेश का जिक्र है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति के पास अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। ये अध्यादेश संसद से पारित कानून जितना ही शक्तिशाली होता है। अध्यादेश के साथ एक शर्त जुड़ी होती है। अध्यादेश जारी होने के छह महीने के भीतर इसे संसद से पारित कराना जरूरी होता है। यही कारण है कि केंद्र को इसी सत्र में दिल्ली अध्यादेश लाना होगा क्योंकि शीतकालीन सत्र नवंबर-दिसंबर में होगा तब तक इसकी समय सीमा खत्म हो जाएगी।
अध्यादेश के जरिए बनाए गए कानून को कभी भी वापस लिया जा सकता है। अध्यादेश के जरिए सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकती, जिससे लोगों के मूल अधिकार छीने जाएं।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 11 मई को फैसला सुनाते हुए कहा कि दिल्ली में जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली की सरकार स्वतंत्र होगी। अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर-पोस्टिंग भी कर पाएगी।
उपराज्यपाल इन तीन मुद्दों को छोड़कर दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने के लिए बाध्य हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस मामले में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत के 11 मई के फैसले से पहले दिल्ली सरकार के सभी अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती उपराज्यपाल के कार्यकारी नियंत्रण में थे।
हालांकि, कोर्ट के फैसले के एक हफ्ते बाद 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश ले आई। केंद्र ने ‘गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली ऑर्डिनेंस, 2023’ लाकर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार वापस उपराज्यपाल को दे दिया। इस अध्यादेश के तहत राष्ट्रीय राजधानी सिविल सर्विसेज अथॉरिटी का गठन किया गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और गृह सचिव को इसका सदस्य बनाया गया है। मुख्यमंत्री इस अथॉरिटी के अध्यक्ष होंगे और बहुमत के आधार पर यह प्राधिकरण फैसले लेगा। हालांकि, प्राधिकरण के सदस्यों के बीच मतभेद होने पर दिल्ली के उपराज्यपाल का फैसला अंतिम माना जाएगा।