लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग: फटी पैबंद पर टाट की तैयारी, 6 करोड़ के बजाय 30 लाख की विधायक निधि से हो रहा है निर्माण
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। बीस साल से चर्चाओं में बने लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग पर 6 करोड़ की लागत का कार्य नहीं होने के बाद जनता के छलावे के लिए अब फटे पैबंद पर टाट चढ़ाया जा रहा है। यानि की अब शासन द्वारा इस मार्ग के लिए स्वीकृत लगभग 6 करोड़ रूपये खर्च नहीं हो पाये है, जिससे जनता को 15 जून तक सड़क पर काम करने का आश्वासन विफल होते हुए देख अब इस मार्ग पर विधायक निधि से 30 लाख में काम करवाकर जनता को भ्रमाया जा रहा है। मार्ग के पक्का न होने पर यह मार्ग बरसात में 15 जून से 15 सितम्बर तक आम जनता के लिए बंद कर दिया जाता है। जिससे विधायक निधि की ये 30 लाख रूपये भी पूर्व की भांति मिट्टी में मिल जायेगें।
सूत्रों के अनुसार लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग पर दो मोटर पुलों सहित 11 किलोमीटर सड़क को पक्का करने के लिए सरकार ने लगभग 6 करोड़ रूपये की वित्तीय स्वीकृति देकर 2 करोड़ रूपये की टोकन मनी जारी कर दी थी। लेकिन कार्यदायी विभाग द्वारा वन विभाग से पूरी तरह एनओसी न मिलने के कारण शासन द्वारा आवंटित धनराशि का उपयोग इस सड़क निर्माण पर नहीं हो पाया। ज्ञातव्य हो कि शासन द्वारा 4 करोड़ की वित्तीय स्वीकृति मिलने के बाद कहा गया था कि लालढांग-चिल्लरखाल मोटर मार्ग पर इस धनराशि से 15 जून तक कार्य पूर्ण कर बरसात के लिए भी मार्ग खुला रखा जायेगा। चूंकि वन विभाग से पूर्ण रूप से एनओसी न मिलने पर कार्यदायी संस्था द्वारा कार्य न कराये जाने के कारण जनता के सामने छलावा दिखने के भय से इस मार्ग पर अब 30 लाख रूपये से कार्य करवाया जा रहा है। जबकि इस मार्ग पर आगामी 15 जून के बाद यातायात वन विभाग के नियमों के अनुसार बंद कर दिया जायेगा। ऐसे में इन 30 लाख रूपये से फटे पैबंद पर टाट चढ़ाने से उसके फटने के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। यानि की वर्तमान में जो कार्य शुरू किया गया है उसका लाभ जनता को नहीं मिलेगा साथ ही 30 लाख खर्च करने वाली कार्यदायी संस्था को घोटाला करने में आसानी रहेगी। क्योंकि 15 जून के बाद बरसात शुरू हो जाती है जिससे मार्ग बंद होने के कारण 30 लाख की राशि से बनने वाले मार्ग की हालत बरसात के बाद फिर वैसे ही हो जायेगी।
कब होनी चाहिए थी इस मार्ग की मरम्मत
कोटद्वार विधानसभा में वन विभाग कुछ ऐसे कार्य कर रहा है, जिससे विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठने लाजमी है। वन विभाग बरसात सीजन शुरू होने से 15 दिन पूर्व लालढांग-चिल्लरखाल वन मोटर मार्ग पर मिट्टी-पत्थर बिछा रहा है। लाखों की लागत से यह कार्य किया जा रहा है। आमजन के हित में लालढांग-चिल्लरखाल मार्ग की मरम्मत बीते वर्ष बरसात खत्म होने के बाद की जानी थी, लेकिन वन विभाग बरसात शुरू होने से 15 दिन पूर्व इस मार्ग की मरम्मत करा रहा है। लैंसडौन वन प्रभाग इन दिनों इस वन मोटर मार्ग पर मिट्टी-पत्थर का भरान कर सड़क को गड्डों से मुक्त कर रहा है। लालढांग-चिलरखाल वन मोटर मार्ग पर सिगड्डी स्रोत, मैली स्रोत व चमरिया स्रोत पड़ते हैं। तीनों बरसाती नदियां बरसात के मौसम में विकराल रहती हैं। बरसात में इस मार्ग पर वाहनों की आवाजाही पूरी तरह बंद रहती है। ऐसे में बरसाती मौसम शुरू होने से 15-20 दिन पूर्व मार्ग पर मिट्टी-पत्थर बिछाना विभागीय कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े कर रहा है।
क्या कहते है डीएफओ
लैंसडौन वन प्रभाग के डीएफओ दीपक सिंह का कहना है कि लालढांग-चिल्लरखाल वन मोटर मार्ग पर काफी गड्ढ़े है। जिस कारण काफी परेशानी होती है। परेशानी को देखते हुए विधायक निधि से मार्ग पर काम कराया जा रहा है।
साल दर साल छवाला होता रहा जनता के साथ
उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद कोटद्वार से हरिद्वार-देहरादून जाने के लिए अपने राज्य का एक मात्र मोटर मार्ग चिल्लरखाल-लालढांग की आवश्यकता महसूस की गई। इस खस्ताहाल वन मार्ग पर वन विभाग के नियमों के अधीन यातायात का संचालन होता है। जिससे व्यक्तिगत सहित व्यवसायिक वाहनों को आये दिन नियमों और जर्जर सड़क के कारण भारी परेशानी होने लगी तो नेताओं ने जनता को छलना शुरू कर दिया। 2000 में नया राज्य बनने के बाद 2012 में इस मार्ग के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूडी ने जब कोटद्वार से चुनाव लड़ने का मन बनाया तो उन्होंने इसके लिए 2 करोड़ की धनराशि आवंटित कर काम शुरू करा दिया। किन्तु उनके चुनाव हारने के बाद वन विभाग ने इस मार्ग पर काम रूकवा दिया। ये दो करोड़ रूपये भी मिट्टी में मिल गये। इसके बाद 2012 में क्षेत्रीय विधायक व काबीना मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी के कार्यकाल में 2014 में इस मार्ग का वन क्षेत्र राजाजी नेशनल पार्क के बफर जोन में शामिल करा दिया गया। फिर भी सुरेंद्र सिंह नेगी द्वारा इस मार्ग पर एलिवेटेट रोड़ की डीपीआर बनाने के लिए लगभग 4 करोड़ रूपये का खर्चा किया गया। इसे भी वन विभाग ने नियमों के विरूद्ध बताकर मिट्टी में मिला दिया। इसके बाद 2017 में डॉ. हरक सिंह रावत इस क्षेत्र के विधायक और वन मंत्री बनें तो उन्होंने इस मार्ग पर करोड़ों रूपये खर्च कर दो पुल बनवाने शुरू किये तो फिर वन विभाग का अडंगा आकर उसे रोक दिया गया। लेकिन हरक सिंह रावत इतने में भी शांत नहीं हुए उन्होंने फिर इस मार्ग के निर्माण के लिए शर्तों के साथ 6 करोड़ रूपये स्वीकृत कराकर दो करोड़ रूपये की टोकन मनी जारी करवा दी। इसके बावजूद भी 4 महिने गुजरने पर जब काम शुरू नहीं हुआ तो सुना है कि विधायक निधि से वो काम कराया जा रहा है, जो वन विभाग अपने बजट से खर्च करता है।