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और मुखर हुआ मोदी सरकार का सामाजिक न्याय का चेहरा, केंद्रीय कैबिनेट में 60 प्रतिशत सदस्य एससी, एसटी और ओबीसी के

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नई दिल्ली। देश के सर्वोच्च संवैधानिक राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू का आसीन होना आदिवासी वर्ग के लिए विशेष गर्व का क्षण तो है ही, यह मोदी सरकार के सामाजिक न्याय के चेहरे को और मुखर भी करता है। अगले महीने उपराष्ट्रपति पद पर ओबीसी वर्ग से आने वाले जगदीप धनखड़ का आसीन होना भी लगभग तय है। इसके बाद यह पहली बार होगा कि देश के शीर्ष तीन संवैधानिक पदों यानी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद पर आदिवासी और पिछड़ा वर्ग से आने वाले प्रतिनिधि आसीन होंगे।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना इस मायने में भी ऐतिहासिक है क्योंकि वह आदिवासियों में भी सबसे पिछड़े संथाली परिवार से आती हैं। उनके पूर्ववर्ती राम नाथ कोविन्द दलित समुदाय से थे जिन्हें मोदी सरकार में ही राष्ट्रपति बनाया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद गरीब परिवार और ओबीसी समुदाय से आते हैं। धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं, जिसे राजस्थान में ओबीसी का दर्जा मिला है। राजस्थान में जाट को ओबीसी में शामिल कराने में खुद धनखड़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जाहिर तौर पर इसे राजनीति से जोड़ा जाएगा लेकिन इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि सामाजिक न्याय के मापदंड पर सरकार ने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जो अब तक नहीं हुआ था। खासबात यह भी है कि वह चाहे कोविन्द रहे हों या फिर मुर्मू दोनों के शुरुआती दिन बहुत गरीबी में गुजरे थे। ये ऐसे चेहरे हैं जिन्हें पढ़ने के लिए प्रतिदिन कोसों पैदल जाना पड़ता था।
प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट में भी 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की है। कैबिनेट में ओबीसी समुदाय के 26, दलित समुदाय के 12, आदिवासी समुदाय के आठ और अल्पसंख्यक वर्ग के चार मंत्री हैं। इन वर्गों के बीच से भी पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। इसी सरकार में ओबीसी के वर्गीकरण के लिए भी रोहिणी आयोग बनाया गया है ताकि आरक्षण में ओबीसी के बीच भी उन जातियों को अधिकार मिले जो इससे वंचित रह जाते हैं।
इसमें भी संदेह नहीं कि इस पूरी कवायद से भाजपा के राजनीतिक विस्तार को गति मिलेगी। मुर्मू के चुनाव में जिस तरह लगभग सवा सौ विधायकों और डेढ़ दर्जन सांसदों ने क्रास वोोटग की है वह आने वाले समय में विपक्षी दलों के लिए और मुश्किलें बढ़ने का संकेत है।

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