भारत से माइंड गेम खेल रहा चीन, नहीं उठा पाएगा जंग का जोखिम
नई दिल्ली, एजेन्सी। लद्दाख की सीमा पर तनावपूर्ण हालात बने हुए हैं। दोनों देशों के बीच बातचीत में शांति से समाधान निकालने का वादा करने के बावजूद चीन का युद्धाभ्यास जारी है। ऐसे में निकट भविष्य को लेकर कई तरह की अटकलें भी लग रही हैं। वहीं, भारतीय सेना के पूर्व अध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह का मानना है कि चीन के मौजूदा हालात ऐसे नहीं हैं कि वह युद्ध जैसी स्थिति पैदा करे, बल्कि वह एक तीर से दो निशाने मारने की फिराक में है। जनरल सिंह का कहना है दोनों देशों को इसका शांतिपूर्ण समाधान निकालना होगा क्योंकि दुनिया बहुत बड़ी है और इसमें दो महाशक्तियों के रहने के लिए बहुत जगह है।
जरनल सिंह ने सीएनएन के लिए एक संपादकीय में बताया है कि अपने घर के अंदर कोरोना वायरस से पैदा हुए हालात के साथ-साथ दुनियाभर के निशाने पर खड़ा चीन, हिमालय में कोई खतरा नहीं उठाएगा। भारत उसका मुख्य क्षेत्रीय रणनीतिक प्रतिद्वंदी है और भारत के साथ कोई विवाद न सिर्फ चीन की परेशानी बढ़ाएगा बल्कि 2050 तक ग्लोबल सुपरपावर बनने की उसकी ख्वाहिश भी लटक जाएगी।
जनरल सिंह का कहना है कि शी जिनपिंग के सामने चीन की सिकुड़ती अर्थव्यवस्था, अमेरिका के साथ खड़ा हुआ ट्रेड-विवाद, उत्पादन इकाइयों का बाहर जाना और बेल्ट ऐंड रोड इनिशेटिव जैसी चुनौतियां खड़ी हैं। वहीं, हॉन्ग-कॉन्ग में विरोध प्रदर्शन, ताइवान का कठोर रुख और कोरोना वायरस को लेकर दुनियाभर में उठ रही जांच की मांग ने उसका सिर दर्द बढ़ा दिया है। दूसरी ओर पाकिस्तान को छोड़कर एशिया के बाकी सभी देशों में चीन के बर्ताव और कोरोना में भूमिका को लेकर उसके खिलाफ माहौल बन चुका है।
भारत की ताकत का है अंदाजा
चीन को भारत की सेना की ताकत का भी पूरा अंदाजा है। उसने देखा है कि 1962 की जंग के बाद से भारत की सेना और ज्यादा काबिल, जिम्मेदार और रिस्पॉन्सिव हो चुकी है। दोनों देशों की सेनाएं कई साल से एक साथ आपदा की स्थिति में राहत और बचाव कार्य एक साथ करती हैं और आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन में भी साथ काम करती हैं। ऐसे में एक-दूसरे की सैन्य ताकत की समझ बढ़ चुकी है और दोनों ही ऐसी कोई नौबत नहीं चाहेंगी क्योंकि उन्हें पता है कि उसका नतीजा क्या होगा। खासकर तब जब भारत ने हाल के समय में यह साबित करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई है कि उकसाए जाने पर वह ताकत का इस्तेमाल कर सकता है।
इसलिए कर रहा है ऐसी हरकतें
जनरल सिंह का मानना है कि पेइचिंग शायद सीमा पर तनाव की स्थिति के जरिए भारत को संदेश देने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, भारत भी बाकी दुनिया के साथ कोरोना को लेकर जांच की मांग कर रहा है। साथ ही, भारत ने चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अप्रूव करने के ऑटोमैटिक रूट को ब्लॉक कर दिया है। दूसरी ओर भारत और अमेरिका के बीच संबंध गहराते दिख रहे हैं। चीन बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए डराने-धमकाने के लिए जाना जाता है। देश के अंदर सरकार की विफलताओं के खिलाफ उठने वाली आवाजों को राष्ट्रवाद की छाया में छिपा दिया जाता है। सीमा पर तनाव पैदा करके वह एक तीर से दो निशाने लगाने की फिराक में है।
चीन का एक्सपोर्ट हो जाएगा बर्बाद
चीन के कुल निर्यात का 17 परसेंट सिर्फ अमेरिका को जाता है। दोनों देशों के बीच ट्रेड वार के कारण तनाव पहले से है। ट्रंप चीन के कई सामान पर कस्टम ड्यूटी बढ़ा चुके हैं। यही नहीं कोरोना वायरस के बाद ट्रंप और सख्त हो गए। अमेरिकी सीनेट ने हाल ही में चीन स्थित अमेरिकी कंपनियों को बाहर निकालने का बिल पास कर दिया। इससे साफ है कि चीन में मैनुफैक्चरिंग यूनिट घटेंगे। सस्ते मजदूर और पेशेवर माहौल के कारण दुनिया भर की कंपनियों ने चीन का रुख किया था। कोरोना वायरस ने हालात पलट दिए हैं। स्रँङ्मल्ली जैसी कंपनी तो पहले ही भारत में भी यूनिट लगाने की घोषणा कर चुकी है। अब कई और नामी मल्टीनेशनल कंपनियां चीन से भारत की ओर रुख कर रही हैं। चीन के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 3 परसेंट है। चीनी सामान का विरोध फिर से शुरू हो गया है। आत्मनिर्भर भारत योजना से चीनी इंपोर्ट को झटका लगना तय है। अब भारत और अमेरिका को जोड़ दें तो 20 परसेंट चीनी इंपोर्ट पर खतरे की घंटी बजती दिखाई देती है। दरअसल इसी की सनक सीमा पर दिखाई दे रही है।
नौकरियों पर खतरा, युवाओं में आक्रोश
कोरोना वायरस के कारण चीन के ठप उद्योग धंधे दोबारा शुरू तो हो गए हैं लेकिन डिमांड ही नहीं रही तो फैक्ट्रियां खोल कर भी कोई फायदा नहीं है। चीन के लाखों युवा बेरोजगार हो चुके हैं। उनमें सत्ता के प्रति असंतोष है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार किसी विरोध प्रदर्शन की इजाजत नहीं देती लेकिन 1989 के थ्यानमेन स्क्वायर जैसे हालात फिर पैदा हो सकते हैं। हॉंगकॉंग में प्रो डेमोक्रेसी प्रदर्शन को जिस तरह से चीन कुचल रहा है उसकी अवाज मेनलैंड चाइना में भी सुनी जा रही है। चीन में बेरोजगारी की दर बढ़ कर 6 परसेंट हो चुकी है। ये चिंगफिंग के लिए खतरे की घंटी है।
1976 के बाद सबसे बुरा हाल, खजाना खाली
चीन की इकॉनमी 13.7 ट्रिलियन डॉलर की है। 1976 के बाद पहली बार चीनी इकॉनमी में 6.8 परसेंट की गिरावट आई है। ये जनवरी से मार्च 2020 के आंकड़े हैं। जानकारों के मुताबिक चीन अब भयानक मंदी की तरफ बढ़ रहा है। कोरोना वायरस से हुए नुकसान की भरपाई के लिए चीन सरकार ने 672 अरब डॉलर का पैकेज दिया है जो जीडीपी के 5 परसेंट के बराबर है। इकॉनमी में जान फूंकने के लिए चिंगफिंग सरकार खजाना खोलने की योजना बना रही है। सरकारी योजनाओं पर 3.15 ट्रिलियन युआन खर्च किया जाएगा ताकि नौकरियां बची रहे और फैक्ट्रियां चलती रहे। इसके बावजूद 6.8 परसेंट की गिरावट की भरपाई नहीं हो पाएगी। चीन के आर्थिक आंकड़ों के वैसे भी भरोसे लायक नहीं माना जाता। अगर सरकार खर्च बढ़ाती है तो घाटा भी बढ़ेगा।
ऐसे बैठ जाएगा ड्रैगन
कोरोना काल में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि कई देशों से चीन के रिश्ते खराब हो चुके हैं। इसकी कीमत भी चीन चुकाएगा। चीन स्टील का सबसे बड़ा आयातक है जिससे उसकी फैक्ट्रियां 24 घंटे चलती है। ये स्टील वो ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया से मंगाता है। ऑस्ट्रेलिया ने जब से वुहान वायरस की जांच की मांग की है, दोनों के रिश्ते बेहद खराब हो चुके हैं। चीन ने ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका का कुत्ता तक कह डाला। कच्चा तेल और दूसरे सामान सियरा लियोन, चिली और अंगोला जैसे देशों से चीन मंगाता रहा है। बदले में भारी कैश देता रहा है। जब चीन का खजाना खाली होगा तो कैश फ्लो बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा।
वन बेल्ट वन रोड की चालबाजी पर चाबी
चीन ओबोर की आड़ में रणनीतिक तौर पर अहम देशों में भरपूर पैसे झोंक रहा है। अफ्रीका , एशिया और यूरोप के देशों को उसने जम कर सस्ते लोन दिए। अब इसे जारी रखना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि चीन का पूरा ध्यान आंतरिक इकॉनमी है जो टूट रही है। हालांकि ओबोर की रणनीतिक चाल से कई देश पहले ही सतर्क हो चुके हैं। इसका उदाहरण है श्रीलंका का हम्बनटोटा पोर्ट। इसे बनाने के लिए चीन ने पैसे झोंक दिए। बदले में वहां वो छोटा से बेस चाहता था। भारत ने इससे श्रीलंका को आगाह किया। इसके बाद श्रीलंका ने चीन को इस प्रोजेक्ट से दूर कर दिया है।
चमचा पाकिस्तान भी हुआ सतर्क
चीन सरकार भारत को साधने के लिए पाकिस्तान को सहलाने की नीति पर काम करती है। पाकिस्तान के कराची तक रोड बनाने और ग्वादर पोर्ट को विकसित करने की ये योजना 46 अरब डॉलर की है। चीन के इंजीनियर और वहां की पावर कंपनियां पाकिस्तान में मौजूद हैं। शुरू में पाकिस्तान को लगा कि चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर से भारत पर शिकंजा कसेगा और आर्थिक फायदा भी होगा। अब इससे उलट परिणाम आ रहे हैं। हाल ही में इमरान खान सरकार ने पॉवर कंपनियों के बढ़ते घाटे की जांच के आदेश दिए। जांच रिपोर्ट से चौंकाने वाली बात सामने आई। चीनी पॉवर कंपनियां 100 अरब पाकिस्तानी रुपयों के गबन में लिप्त पाई गईं. इससे दबी जुबान पाकिस्तान में भी उढएउ पर सवाल उठ रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि एक ओर जहां देश का मीडिया और सोशल मीडिया पहले से उलट ज्यादा ह्यदेशभक्तह्ण बना हुआ है, नई दिल्ली में चीनी दूतावास और पेइचिंग में फॉरन अफेयर्स ऑफिस तनाव कम करने के इच्छुक होने का दावा कर रहे हैं। फिलहाल जमीन पर हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है। यहां तक कि चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी का ऊंचाई वाले उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हजारों पैराट्रूपर्स और बख्तरबंद वाहनों के साथ बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास जारी है।
सिर्फ शांतिपूर्ण समझौते की जरूरत
जनरल सिंह का कहना है कि भारत अपनी जमीन पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को लेकर दृढ़ है और फिलहाल विवाद के जल्द सुलझने के आसार कम ही हैं। उनका कहना है कि भारत को कोशिश करनी होगी कि सीमा पर आक्रामकता के हालात पर काबू पाने की सेना की क्षमता बढ़ सके और अगर ऐसा नहीं होता है, तो ऐसे लड़ सके जिससे जंग जीती जा सके। भारत के लिए किसी और बाहरी ताकत से जंग जीतने में मदद मांगना ठीक नहीं होगा। एक उभरती हुई शक्ति के तौर पर भारत को यह काम अपने दम पर करना होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि बेहतर इकनॉमिक और जियोस्ट्रटीजिक फायदे के लिए शांतिपूर्ण समझौता ही जवाब है।