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भाजपा ने पहली बार किसी जाट नेता को सौंपी यूपी में संगठन की कमान

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लखनऊ , एजेंसी। समीकरणों पर पैनी निगाह और प्रयोगों पर विश्वास रखने वाली भारतीय जनता पार्टी ने बिल्कुल चौंकाते हुए उत्तर प्रदेश में नए अध्यक्ष की तैनाती की है। भाजपा ने पहली बार किसी जाट नेता को इस कुर्सी पर बैठाया है।
दलित और ब्राह्मण वर्ग से अध्यक्ष चुने जाने की अटकलों को विराम देते हुए विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव के लिए भी यह कुर्सी पिछड़ा वर्ग के कोटे में तो रखी, लेकिन पहली बार श्जाट कार्डश् चलते हुए मुरादाबाद निवासी पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र चौधरी को संगठन की कमान सौंपी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बलबूते पूर्वी उत्तर प्रदेश को मजबूत मान रही पार्टी ने जिस तरह से संगठन में पश्चिम का प्रभाव बढ़ाया है, वह मिशन-2024 के लिए भाजपा की श्माइक्रो-प्लानिंगश् कही जा सकती है।
योगी सरकार 2़0 में स्वतंत्रदेव सिंह को जलशक्ति मंत्री बनाए जाने के बाद से ही यह अटकलें शुरू हो गई थीं कि उत्तर प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा? क्योंकि पार्टी में एक व्यक्ति, एक पद का सिद्घांत लागू है। चूंकि, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने ब्राह्मण नेता के नेतृत्व में सफलता प्राप्त की, इसलिए ज्यादा संभावना यही जताई जा रही थी कि फिर ब्राह्मण पर ही दांव लगाया जाएगा।
वहीं, कुछ लोगों का तर्क यह था कि बसपा से छिटक रहे दलित वोट को अपनी ओर मजबूती से आकर्षित करने के लिए भाजपा दलित को संगठन की कमान सौंप सकती है तो चर्चा यह भी थी कि सर्वाधिक आबादी वाले पिछड़ा वर्ग के नेता को ही अध्यक्ष पद पर बरकरार रखा जा सकता है।
इधर, चल रही अटकलों से इतर दिल्ली में बैठे पार्टी के रणनीतिकार अपने दृष्टिकोण से चुनावी बिसात सजा रहे थे। बुधवार शाम को योगी सरकार के पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र चौधरी को जैसे ही दिल्ली बुलाया गया, तभी इशारा मिल गया था कि भाजपा नेतृत्व का निर्णय किस दिशा में जाने वाला है।
हुआ भी वही, गुरुवार दोपहर में भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का पत्र भी जारी हो गया। भूपेंद्र चौधरी की इस पद पर नियुक्ति अब तक की पार्टी की रीति-नीति से कुछ अलग है। खास बात है कि भाजपा ने पहली बार किसी जाट नेता को इस कुर्सी पर बैठाया है।
इस निर्णय का सीधा संदेश यही मिल रहा है कि भाजपा की नजर पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर विशेष रूप से है। हाईकमान का रणनीतिक दृष्टिकोण हो सकता है कि सपा-रालोद का गठबंधन लोकसभा चुनाव में बना रहना लगभग तय है।
रालोद के सहारे सपा जाटों के प्रभाव वाली करीब 14 लोकसभा सीटों पर भाजपा को चुनौती दे सकती है। लखीमपुर के तिकुनिया कांड को हवा देकर विपक्षी फिर से किसान आंदोलन को भी गर्माना चाहते हैं। विरोधियों के इस दांव को यूं जाट कार्ड से बेअसर किया जा सकता है।

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