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बांबे हाई कोर्ट ने डिजिटल मीडिया से जुड़े आइटी नियमों पर लगाई रोक

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मुंबई, एजेंसी। बांबे हाई कोर्ट ने शनिवार को आचार संहिता के पालन से संबंधित डिजिटल मीडिया के लिए नए सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) नियमों की उपधाराओं 9 (1) और 9 (3) के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगा दी। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने कहा कि आचार संहिता का ऐसा अनिवार्य पालन याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्टेद 21 के तहत मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। पीठ ने यह भी कहा कि उपधारा 9 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के दायरे से भी बाहर चली जाती है। पीठ ने जवाब दाखिल करने के लिए आदेश पर रोक लगाने संबंधी केंद्र सरकार के अनुरोध को भी खारिज कर दिया। हालांकि, अंतर-मंत्रालयी समिति के गठन और विशेष परिस्थितियों में कुछ सामग्रियों को रोकने से संबंधित आइटी नियमों की उपधाराओं 14 और 16 पर रोक रोक लगाने से इन्कार कर दिया।
लीगल न्यूज पोर्टल द लीफलेट और पत्रकार निखिल वागले ने नए नियमों को अदालत में चुनौती दी है। इन नियमों को संविधान में मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ बताया गया है। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र से पूछा था कि जब पहले से ही आइटी नियम मौजूद है तो फिर नए नियमों को बनाने की क्या जरूरत थी। केंद्र की तरफ से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा था कि फर्जी खबरों को रोकने के लिए नए नियम बनाए गए हैं।
इससे पहले बांबे हाईकोर्ट में दायर याचिका में इन्फार्मेशन टेक्नोलाजी (आइटी) रूल्स, 2021 को अस्पष्ट और बेरहम बताते हुए उन्हें रद करने की मांग की गई है। यह याचिका लीफलेट नाम के डिजिटल न्यूज पोर्टल और पत्रकार निखिल वागले ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि नए आइटी रूल्स प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात करने वाले हैं। जबकि दोनों तरह की स्वतंत्रता की गारंटी देश का संविधान देता है। लीफलेट की ओर से हाईकोर्ट में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ से आग्रह किया कि नए आइटी रूल्स के क्रियान्वयन को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाए। याचिका में कहा गया है कि नए रूल्स नागरिकों, पत्रकारों, डिजिटल न्यूज पोर्टल आनलाइन, इंटरनेट मीडिया और अन्य की प्रकाशन सामग्री पर कई तरह की रुकावट पैदा करने वाले हैं। ये सामग्री को लेकर कई तरह की अनावश्यक जवाबदेही और अपेक्षाएं व्यक्त करने वाले हैं। इनसे संविधान के अनुच्टेद 19 के तहत नागरिकों को मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचती है।

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