चीन ने सैनिकों की वापसी का मामला लटकाया गरम माहौल में हो सकती है अगली कूटनीतिक बैठक
नई दिल्ली, एजेंसी। पूर्वी लद्दाख सीमा पर चीन एक बार फिर चालबाजी पर उतर आया है। पिछले दस दिनों के भीतर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अधिकांश विवाद्ग्रस्त इलाकों से चीनी सैनिकों की या तो वापसी नहीं हुई है या कुछ जगहों से हुई है तो बेहद कम। ऐसे में दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों (भारतीय एनएसए और चीन के विदेश मंत्री) के बीच तनाव खत्म करने के लिए सैनिकों की वापसी को लेकर जो सहमति बनी थी, उसके अमल पर भी सवालिया निशाना लग गया है। भारत ने इस हालात पर चिंता जताते हुए उम्मीद जताई है कि चीनी पक्ष पूर्व में बनी सहमति को अमल में लाएगा, क्योंकि सीमा पर शांति स्थापित किये बगैर द्विपक्षीय रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
ऐसे में दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के अधिकारियों के बीच होने वाली आगामी बैठक के भी काफी गरम माहौल में होने की संभावना है। यह बैठक सीमा मामलों पर समन्वय व समझौते करने के लिए गठित वर्किंग मेकेनिज्म (डब्लूएमसीसी) के तहत होगी। इसकी दो बैठकें पहले भी हो चुकी हैं। दोनों देशों के बीच अभी तक सैन्य स्तर की चार बैठकें हो चुकी हैं, जबकि डब्लूएमसीसी की दो बैठकें हुई है जो मौजूदा सीमा विवाद को सुलझाने पर ही केंद्रित रही है। इसके अलावा भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की अलग टेलीफोन पर बातचीत हो चुकी है। 15 जून, 2020 को दोनों सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद एक अलग वार्ता एनएसए अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई थी। सैन्य तनाव कम करने के लिए अंतिम बैठक सैन्य कमांडरों के बीच 14 जुलाई को हुई थी।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बताया, विशेष प्रतिनिधियों के बीच हुई बातचीत में यह तय हुआ था कि भारत और चीन की सीमा पर एलएसी पर तैनात सैनिकों की पूरी तरह से वापसी की जाएगी, ताकि अमन व शांति स्थापित हो सके। इस सहमति को अमल में लाने के लिए दोनों पक्षों के बीच सैन्य व कूटनीति स्तर पर बातचीत चल रही है। सैन्य कमांडरों के बीच हुई अंतिम बातचीत में भी किस तरह से सैनिकों की पूरी तरह से वापसी की जाए, इस संदर्भ में उठाये जाने वाले कदमों पर चर्चा की गई थी। हम पहले भी कह चुके हैं कि सीमा पर अमन व शांति द्विपक्षीय रिश्तों के लिए सबसे अहम शर्त है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि चीन हमारे साथ पूरी तरह से सैनिकों की वापसी पर काम करेगा, ताकि सीमा पर पूरी तरह से अमन-शांति जल्द से जल्द बहाल हो सके। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि डब्लूएमसीसी की अगली बैठक जल्द होगी, जिसमें सैनिकों की वापसी से जुड़ी प्रगति की समीक्षा की जाएगा।
जानकारों की मानें तो चीन के रवैये को देखते हुए साफ लग रहा है कि पूर्वी लद्दाख में चीनी अतिक्रमण का इस बार का मामला वर्ष 2017 के डोकलाम से काफी ज्यादा लंबा चलेगा। इस बार भारतीय पक्ष ने पहली बार 5 मई, 2020 को चीनी सैनिकों को गलवन नदी घाटी में एलएसी के उस स्थान पर डेरा डाले देखा था, जहां अभी भारतीय सेना अभी तक बेरोक-टोक पेट्रोलिंग करती रही थी।
पहले यह माना जा रहा था कि दोनों पक्षों के बीच सर्दियों की शुरुआत से पहले सैनिकों की पूरी तरह से वापसी पर सहमति बन जाएगी और विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर हुई बातचीत से ऐसा लग भी रहा था, लेकिन अब भारतीय पक्ष इस तरह से तैनाती कर रहा है कि सर्दियों में चीन की सेना पीटे नहीं हटे तब भी हालात का मुकाबला किया जा सके। यह भी माना जा रहा है कि पिछले 8-10 दिनों में जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और खासतौर पर अमेरिका से भारत को खुल कर समर्थन मिलने लगा है उससे सैनिकों की पूरी वापसी को चीन जान बूझ कर लटका रहा है, ताकि यह संदेश नहीं जाए कि वह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के दबाव में पीटे हट रहा है।
अमेरिका के विदेश मंत्री माइकल पोंपियो ने एक दिन पहले ही कहा है कि पूर्वी लद्दाख में चीन के सैनिकों ने जिस तरह से अतिक्रमण किया है वह चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की मंशा बताती है। कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि चीन पूर्वी लद्दाख पर लंबे समय तक तनाव पैदा करने की रणनीति के तहत आगे बढ़ रहा है।
नो मेंस लैंड पर हुए विवाद का नहीं निकला कोई हल
टनकपुर। भारत-नेपाल सीमा से लगे नो मेंस लेंड पर नेपाल की ओर से पिलर का निर्माण किए जाने का मामला तूल पकडने लगा है। गुरुवार को भारत व नेपाल के अधिकारियों ने मौके पर जाकर निरीक्षण किया और वार्ता की लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। दोनों देश के अधिकारी जहां नो मेंस लैंड पर किसी प्रकार का निर्माण न किए जाने की बात कहते रहे वहीं अधिकारियों के पहुंचने के बाद भी पिलर जस के तस गड़े रहे। वहीं एसएसबी कमांडेंट ने नेपाल से जल्द पिलर उखाडने के लिए कहा है।
बता दें कि इंडो नेपाल सीमा का सीमांकन करने वाले कई पिलर गायब हो चुके हैं। जिस कारण नेपाल के लोग नो मेंस लैंड पर खेती कर रहे हैं। बीच में सीमांकन का कार्य तो हुआ लेकिन वह बीच में ही रूक गया। इधर, टनकपुर शारदा बैराज से ब्रहमदेव जाने वाले मार्ग पर पिलर नंबर 811 था। जो बह गया है। इस पर बुधवार को नेपाल वन समिति व नेपाली नागरिकों ने नो मेंस लैंड पर सिद्घनाथ मंदिर के पीटे पिलर गाड़ कर तारबाड़ करने लगे। पिछले तीन दिन के भीतर नेपाल के लोगों द्वारा नो मेंस लेंड पर करीब 300 पिलर का निर्माण कर दिया गया था। इसकी भनक लगने पर भारत से इसे गंभीरता से लिया।
गुरुवार को एसडीएम दयानंद सरस्वती, सीओ बीसी पंत, एसएसबी के कमांडेंट आरके त्रिपाठी व कोतवाल धीरेन्द्र कुमार की संयुक्त टीम के नेतृत्व में राजस्व और वन विभाग की टीम नो मेंस लेंड क्षेत्र में पहुंची। वहीं नेपाल के एसपी वीर सिंह साहू भी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। जहां दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ता हुई। एसएसबी कमांडेंट त्रिपाठी ने नेपाल के अधिकारियों से नो मेंस लेंड में लगाए गए पिलरों को तत्काल हटाने को कहा। वही नेपाल के एसपी साहू ने उनको भरोसा दिलाया कि उनके उच्च अधिकारियों को जानकारी देकर तत्काल इस पर कार्यवाही करेंगे। बारिश में करीब एक घंटे चली वार्ता के बाद भी विवाद का कोई हल नहीं निकला। अभी भी मौके पर यथास्थिति बनी हुई है।