बिग ब्रेकिंग

संविधान किसी नाबालिग को संन्यासी बनने से नहीं रोकता, कर्नाटक हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

बेंगलुरु, ,३२ं’ँ । कर्नाटक हाई कोर्ट ने उडुपी के शिरूर मठ के प्रमुख के रूप में एक नाबालिग के अभिषेक के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी और कहा कि किसी के संन्यासी बनने पर कोई संवैधानिक या कानूनी रोक नहीं है। उडुपी के श्री शिरूर मठ भक्त समिति के सचिव एवं प्रबंध न्यासी पी लाथव्य आचार्य और समिति के तीन अन्य सदस्यों ने अनिरुद्घ सरलाथ्या (संन्यास नाम वेदवर्धन तीर्थ) को मठ प्रमुख नियुक्त करने पर सवाल उठाया था, जिनकी आयु 18 वर्ष से कम है।
मुख्य न्यायाशीध सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सचिन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सरलाथ्या का अभिषेक किए जाने से किसी कानूनी या संवैधानिक प्रविधान के उल्लंघन को साबित करने में नाकाम रहे। हाई कोर्ट ने कहा, न्यायालय का काम धार्मिक पाठ लिखना निश्चित रूप से नहीं है लेकिन वह धार्मिक विवादों का निपटारा करते समय धार्मिक पाठ का पालन करने और धर्म के अनुसार प्रचलित पुरानी प्रथाओं का पालन करने के लिए बाध्य है, जब तक कि इससे किसी के संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं होता।
पीठ ने बौद्घ धर्म का उदाहरण दिया, जिसमें बच्चों को भिक्षु बनाया जाता है। उसने कहा कि इस संबंध में कोई नियम नहीं है कि संन्यास लेने की आयु क्या है। खंडपीठ ने कहा कि अदालत कोई धार्मिक सत्ता नहीं है। यदि कोई धार्मिक प्रथा सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य या किसी अन्य मौलिक अधिकार के प्रतिकूल नहीं है, तो उसमें अदालत का हस्तक्षेप करना संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में अतिक्रमण करना होगा।
वहीं कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक अन्य मामले में कहा है कि संविधान के अनुच्टेद-21 तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों में स्तनपान एक महिला का अपरिहार्य अधिकार है। जस्टिस ष्णा एस़ दीक्षित की एकल पीठ ने यह टिप्पणी बुधवार को उस समय की जब वह बेंगलुरु की एक महिला द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसके बच्चे को अस्पताल से चुरा लिया गया था। महिला ने अदालत से गुहार लगाई थी कि वर्तमान में उसके बच्चे की देखभाल कर रहे दंपती से लेकर बच्चा उसे सौंपा जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!