संपादकीय

उत्तराखंड में पहाड़ की राह नहीं चढ़ पा रहा विकास

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राज्य गठन के 24 वर्ष बाद भी केवल मैदानी जिलों तक सिमटा विकास
शिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में पलायन कर रहा पहाड़
लेखक, रोहित लखेड़ा
एक लंबे जन आंदोलन के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। लेकिन, राज्य गठन के 24 वर्ष बाद भी प्रदेश का पहाड़ी क्षेत्र विकास को तरस रहा है। उत्तराखंड का विकास केवल मैदान के तीन जिले देहरादून, हरिद्वार व ऊधसिंहनगर तक सिमटकर रह गया है। नेताओं के विकास के वादे दशकों बाद भी पहाड़ की राह नहीं चढ़ पा रहे हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य, शिक्षा व रोजगार के अभाव में पहाड़ से लगातार पलायन का दौर जारी है। वर्तमान में वन्यजीव के हमले व आपदा भी पहाड़ियों की जान पर भारी पड़ रही है।


उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में पहाड़ पिछड़ता जा रहा था। विकास की किरण पहाड़ तक नहीं पहुंच पा रही थी। ऐसे में पहाड़ियों के मन में एक अलग राज्य की भावना जागी। लंबे संघर्ष व सैकड़ों शहादत के बाद जब 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ तो पूरा पहाड़ खुशी से झूम उठा। हर कोई अपने प्रदेश के बेहतर विकास का सपना देख रहा था। लेकिन, आज तक यह सपना धरातल पर रंग नहीं ला पाया। विकास के मामले में पहाड़ व मैदान के बीच एक गहरी खाई बन गई। पलायन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की करीब 60 प्रतिशत आबादी यानि 32 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड के 17 सौ गांव भूतहा हो चुके हैं। जबकि, करीब एक हजार गांव ऐसे हैं, जहां सौ से कम लोग बचे हैं। कुल मिलाकर 3900 गांव से पलायन हुआ है।

आठ लाख से अधिक युवा बेरोजगार
वर्ष 2024 में उत्तराखंड में बेरोजारों की संख्या 8 लाख 83 हजार 3 सौ 46 पहुंच गई है। यही नहीं सेवा योजन कार्यालय में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में13.2 प्रतिशत बेरोजगारी दर है। प्रदेश में पेपर लीक व नौकरी में धांधली के मामले भी प्रकाश में आ चुके हैं। सरकार युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास कर रही है। लेकिन, रफ्तार काफी सुस्त है।

छह हजार गांव सड़क से वंचित
वर्ष-2023 में जारी ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में छह हजार से अधिक गांवों में सड़क नहीं है। कई गांव के लोग 5-5 किमी. पैदल चलने के बाद मुख्य मार्ग पर पहुंच पाते हैं। आयोग ने प्रदेश के पलायन की जिन प्रमुख समस्याओं को जिम्मेदार माना है, उनमें एक सड़कें भी हैं। अच्छी सड़कों के अभाव में ग्रामीणों को स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार जैसी महत्वपूर्ण सुविधाएं सहज रूप से उपलब्ध नहीं हैं।

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