संपादकीय

एक देश एक चुनाव आज की जरूरत

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में “एक देश एक चुनाव” के सिद्धांत को अमल में लाने का सुझाव दिया है जो आज के दौर में एक बेहद सकारात्मक कदम हो सकता है। भारत जैसे विशाल देश में अलग-अलग चरणों में चुनाव होना किसी भारी-भरकम खर्चे से कम नहीं है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत जैसे देश में चुनावों की तैयारी के लिए सरकार को बजट का एक बड़ा हिस्सा चुनावी व्यवस्थाएं पूर्ण करने में खर्च करना पड़ता है। एक लंबे समय से एक देश एक चुनाव के सिद्धांत को लेकर बहस तो चल रही थी लेकिन देश के किसी भी प्रधानमंत्री या राजनीतिक दल ने इस सिद्धांत पर चलने की ना तो कोशिश की और ना ही इस विषय पर खुलकर चर्चा करने के लिए ही तैयार हुए। हालांकि यह कार्य इतना आसान भी नहीं है लेकिन समय के साथ साथ किस प्रकार की व्यवस्था को भी लागू करने के लिए प्रयास अभी से शुरू करने होंगे। भारत की आजादी के बाद एक लंबे समय तक लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव साथ साथ ही कराए जा रहे थे लेकिन पिछले चार दशकों से यह व्यवस्था अब अमल में नहीं लाई जा रही है। कहीं ना कहीं इस सब के पीछे राजनीतिक स्वार्थ को भी कारण माना जा सकता है। आज जब भारत विकास के पथ पर अपने कदम बढ़ा रहा है तो ऐसी दशा में देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग चरणों में चुनाव ना केवल व्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं बल्कि इससे हमारे आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों को भी नुकसान पहुंचता है। बहुदा देखा गया है कि भारत में पूरे वर्ष कहीं ना कहीं चुनाव उपचुनाव चलते ही रहते हैं जो कि एक देश एक चुनाव के सिद्धांत पर चलकर समाप्त किए जा सकते हैं। यदि देश में आधार एवं वोटर कार्ड की व्यवस्था बन सकती है तो एक देश एक चुनाव के सिद्धांत को भी अमल में लाना कोई बहुत बड़ी मुश्किल का काम नहीं है हां इतना जरूर है किसके लिए सभी राजनीतिक दलों एवं सांसदों व राज्यों को एक मंच पर आकर सहमति देनी होगी। देश में अभी भी हमारी चुनाव व्यवस्था में सुधार की व्यापक संभावनाएं हैं और यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसने सिद्धांत को अमल में लाने का सुझाव दिया है तो निश्चित तौर पर भविष्य में इसके सुखद परिणाम देश की राजनीति एवं आर्थिक व्यवस्था में देखने को मिलेंगे। विश्व के अधिकांश देशों में एकल चुनाव की व्यवस्था है जिस कारण ना केवल सीमित संसाधनों में चुनाव संपन्न होते हैं बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी यह व्यवस्था एक बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। काम मुश्किल जरूर है लेकिन असंभव नहीं। इस भगीरथ प्रयास को पूरा करने के लिए आपसी सहमति ही सबसे महत्वपूर्ण कारक सिद्ध होगी बशर्ते स्वार्थ एवं छुद्र राजनीति इस सिद्धांत पर हावी ना हो।

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