देश-विदेश

इलेक्टोरल बन्ड्स के बेजा इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, पूछा- निगरानी का क्या सिस्टम है

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों से पहले नए इलेक्टोरल बन्ड्स की बिक्री पर रोक लगाने की मांग करने वाले एक एनजीओ की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। हालांकि, सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस अफ इंडिया (सीजेआई) एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इन बन्ड्स के संभावित दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की और केंद्र सरकार को इसकी जांच-पड़ताल करने के लिए कहा है। कोर्ट ने पूछा है कि इसकी निगरानी का सिस्टम क्या है।
बेंच ने एक सवाल करते हुए पूछा कि यदि किसी राजनीतिक दल को 100 करोड़ मूल्य के बन्ड मिलते हैं, तो इन बन्ड्स अवैध गतिविधियों या राजनीतिक एजेंडे के बाहर इस्तेमाल करने को लेकर क्या कंट्रोल है? केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटर्नी जनरल के़के़ वेणुगोपाल ने कहा कि 2018 में इलेक्टोरल बन्ड स्कीम शुरू होने के बाद, चुनावी फंडिंग में काले धन पर रोक लगी, क्योंकि कोई भी कैश नहीं लिया गया। बन्ड्स सिर्फ चेक या फिर डीडी के जरिए से ही खरीदे जा सकते हैं।
वहीं, चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि चुनाव आयोग इन बन्ड्स का विरोध नहीं कर रहा है, बल्कि इसकी गुमनामी पर चिंता जताई है। एसोसिएशन फर डेमोक्रेटिक रिफर्म्स (एडीआर) द्वारा 1 अप्रैल से चुनावी बांड की नई बिक्री को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी वैधता पर फैसला लेने तकक याचिका दायर की गई है। एनजीओ ने यह कहते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की कि नए इलेक्टोरल बन्ड की बिक्री तब तक रोक दी जाए, जब तक कि शीर्ष अदालत चुनावी बन्ड योजना 2018 को चुनौती देने वाली तीन लंबित याचिकाओं का फैसला नहीं कर लेती।
बता दें कि इलेक्टोरल बन्ड एक वचन पत्र जिसे किसी भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म आदि द्वारा खरीदा जा सकता है, बशर्ते वह व्यक्ति या संस्था भारत का नागरिक हो। बन्ड्स विशेष रूप से राजनीतिक दलों को पैसे के योगदान के उद्देश्य से जारी किए जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!