उत्तराखंड

इनके मजबूत इरादों के आगे र्केसर भी हुआ बेबस

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हल्द्वानी। र्केसर का मतलब जीवन का अंत नहीं है। हौसला और मजबूत संकल्प से र्केसर जैसी घातक बीमारी को भी मात दी जा सकती है। समय से इलाज शुरू कर एक नहीं, बल्कि कई लोगों ने र्केसर को शिकस्त दी है। मौत की दहशत से गुजर चुके र्केसर के ये मरीज अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। हालांकि, जीवन के ट्रैक पर दौड़ते रहने के लिए रूटीन चेकअप हर दो महीने में कराना पड़ता है। तो आइए इस विश्व र्केसर दिवस पर हम आपको कुछ ऐसे लोगों से मिलाते है, जो र्केसर को मात देकर अपने जीवन को बेहतर जी रहे है और र्केसर पीड़ितों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं।
केस-1
हिमालय फार्म की रहने वाली 43 वर्षीय अर्चना गुप्ता बताती हैं कि वह रेलवे बाजार स्थित एक स्कूल में र्केटीन चलाती हैं। वर्ष 2021 की बात है, कई माह से उनके पेट में दर्द हो रहा था। पीरियड्स होना भी बंद हो गया तो उन्होंने अपना अलट्रासाउंड करवाया। डक्टर ने उन्हें बयोप्सी कराने को कहा। सात दिनों बाद 29 मई 2021 को जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि उन्हें फोर्थ स्टेज अंडाशय का र्केसर है। र्केसर का नाम सुनकर परिजन घबरा गए, लेकिन उन्होने खुद को संभाला और हिम्मत नहीं हारी। अगले दिन रोज की तरह र्केटीन गईं। पांच माह बाद 15 नवंबर को अपरेशन करवाया। इस दौरान योग व अन्य व्यायाम करना शुरू किया। 2023 में उनका र्केसर पूरी तरह से ठीक हो गया था, लेकिन उसके बाद भी रूटीन चेकअप कराती रहती थी। 2 जनवरी 2024 को जब चेकअप करवाया तो पता चला कि दोबारा र्केसर होने लगा है। उस दिन भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज वह र्केसर अस्पताल में अपनी कीमोथेरैपी कराने आई हैं। यहां से जाने के बाद वह वापस स्कूल र्केटीन में जाकर अपना काम करेंगी। बताया कि र्केसर होने के बावजूद उन्होंने अपनी जिंद्गी को आम जिंद्गी की तरह जिया है। वह र्केटीन संचालिका के साथ-साथ पैकेजिंग का काम भी करती हैं। रोजाना 7-8 घंटे काम करती हैं।

केस-2
ऊंचापुल की रहने वाली 47 वर्षीय ममता देउपा ने बताया कि जब वह 43 वर्ष की थीं, उनको ब्रेस्ट र्केसर हुआ। लंबे समय से ब्रेस्ट में गांठ होने के बाद 20 जून 2019 को मैंने जांच करवाई। 20 दिन बाद जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट र्केसर है। रिपोर्ट सुबह मिल गई थी। उस दिन घर में एक छोटा सा समारोह था, इसलिए किसी को रिपोर्ट के बारे में नहीं बताया। उन्होंने हौसला रखा और समारोह का आनंद उठाया। शाम को जब सब साथ बैठे तो उन्होंने सबको बताया कि उन्हें थर्ड स्टेज ब्रेस्ट र्केसर है। इस पर सभी घर वाले घबरा गए। फिर उन्होंने सबको समझाया और हौसला दिया कि र्केसर ही तो है ठीक हो जाएगा। इसमें डरने वाली क्या बात है। इसके बाद उन्होंने योग और व्यायाम करना शुरू किया। साथ ही अपने खान-पान पर भी विशेष ध्यान देने लगीं। बताया कि र्केसर होने के बावजूद उन्होंने अपनी अभी तक की जिंद्गी के हर पल को खुशी व जोश के साथ जिया है। दिल्ली से उनका इलाज चला और 2021 में वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गईं।

केस-3
पलीशीट निवासी 47 वर्षीय दीपक आर्या भोटिया पड़ाव में कैम्ब्रिज इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की कोचिंग चलाते हैं। उन्होंने बताया कि दस साल पहले उन्हें गले का र्केसर हो गया था। जून 2014 में जब उन्हें गांठ महसूस होने लगी तो उन्होंने हल्द्वानी के निजी अस्पताल में जांच करवाई। चार दिन बाद जब रिपोर्ट आई तो पता चला कि गले में र्केसर है। र्केसर का नाम सुनकर पत्नी और माता-पिता घबरा गए। वह भी थोड़ी देर के लिए घबरा गए थे। इसके बाद उन्होंने पूरी हिम्मत से खुद को संभाला। उसके बाद दिल्ली जाकर अपरेशन करवाया। 32 बार रेडिएशन और कीमोथेरैपी करवाने के बाद वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गए। दीपक ने बताया कि बीमारी के दौरान उन्होंने योग करना शुरू किया। उन्होंने हीलिंग फ्रम द एसेंस अफ हनुमान चालीसा नाम की बुक भी लिखी। उन्होंने अपने र्केसर के सफर में कई सारी चीजें सीखी हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है योग, यज्ञ व तिब्बती चिकित्सा से र्केसर को मात दी जा सकती है। अब वह कोचिंग चलाने के साथ-साथ र्केसर पीड़ितों को र्केसर से लड़ने का हौसला देते हैं।

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