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फाइजर की वैक्सीन को भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मिलना मुश्किल, ट्रायल नहीं होना बन सकता है वजह

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नई दिल्ली, एजेंसी । फाइजर ने कोरोना की अपनी वैक्सीन के भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए भले ही अर्जी लगाई हो लेकिन इसके लिए इजाजत मिलना मुश्किल लग रहा है। दरअसल, फाइजर की एमआरएनए तकनीक पर आधारित नई वैक्सीन का भारत में कोई ट्रायल नहीं हुआ है। भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआइ) वीजी सोमानी ने दो दिन पहले ही साफ कर दिया था कि विदेशों ट्रायल में सफल रही वैक्सीन को भारत में आने के पहले कम-से-कम ब्रीज ट्रायल तो करना अनिवार्य होगा।
हालांकि फाइजर को ब्रिटेन और बहरीन में इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत के मिलने के बाद यह भारत में कोरोना की वैक्सीन की इजाजत मांगने वाली पहली कंपनी बन गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि फाइजर की अर्जी पर डीसीजीआइ के साथ-साथ नीति आयोग के सदस्य डाक्टर वीके पल की अध्यक्षता में वैक्सीन को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति विचार करेगी। लेकिन भारत में बिना किसी तरह के ट्रायल के वैक्सीन को इजाजत देना मुश्किल होगा।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि फाइजर की वैक्सीन को लेकर डीसीजीईआइ के पास तीन विकल्प हैं। पहला यह कि दूसरे देशों में हुए ट्रायल के डाटा के विश्लेषण के बाद भारत में भी सीधे उसे इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दे दी जाए। बड़ी बात यह कि महामारी जैसी आपदा के समय ऐसी इजाजत देने का अधिकार डीसीजीआइ को है।
दूसरा विकल्प यह है कि डीसीजीआइ फाइजर को भारत में तीसरे फेज से लिमिटेड ट्रायल की शर्त के साथ इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दे दे। ऐसे में प्राथमिकता वाले समूहों को फाइजर की वैक्सीन लगने के साथ-साथ उसका ट्रायल भी चलता रहेगा।
तीसरा विकघ्प यह कि बिना किसी ट्रायल के डीसीजीआइ फाइजर के वैक्सीन के इस्तेमाल के लिए साफ तौर पर मना सकता है। ऐसे में फाइजर को पहले भारत में तीसरे फेज का ट्रायल करना होगा जिसके डाटा को देखने के बाद ही इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मिलेगी। जैसा कि रूस की स्पुतनिक-पांच वैक्सीन के मामले में हो रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अभी तक सरकार में सभी इस बात को लेकर एकमत हैं कि भारत में किसी भी वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाजत देने के पहले उसका यहां के लोगों पर ट्रायल जरूर होना चाहिए। दो दिन पहले डीसीजीआइ के प्रमुख डीजी सोमानी ने साफ कर दिया कि किसी भी वैक्सीन की इजाजत देने के पहले उसकी कारगरता के साथ ही सुरक्षित होना उनकी पहली प्राथमिकता है।
फाइजर की वैक्सीन कोरोना संक्रमण को रोकने में 95 फीसद कारगर रही है और इसका कोई साइड-इफेक्ट भी देखने को नहीं मिला है। लेकिन दूसरे देशों हुए ट्रायल का नतीजा भारत में भी वही रहेगा, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश की जरूरत के हिसाब से फाइजर बड़ी मात्रा वैक्सीन सप्लाई करने की स्थिति में नहीं है। हालांकि वह कई देशों के साथ करोड़ों डोज वैक्सीन सप्लाई करने का समझौता पहले कर चुकी है।
वैक्सीन को -70 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर अल्ट्रा डीप फ्रीजर में रखना अनिवार्य है। यह एक बड़ी समस्घ्या भी है। मालूम हो कि भारत में आक्सफोर्ड और अस्ट्राजेनेका और भारत बायोटेक-आइसीएमआर की वैक्सीन तीसरे फेज के ट्रायल में भी एडवांस स्टेज में है। इसके साथ ही स्पुतनिक-पांच का तीसरे चरण का ट्रायल शुरू हो चुका है। यही नहीं कैडिला की वैक्सीन के तीसरे फेज के ट्रायल की इजाजत मिल गई है।
गौर करने वाली बात यह भी है कि फाइजर की वैक्घ्सीन को छोड़कर सभी को फ्रीज के सामान्य तापमान दो से आठ डिग्री पर रखा जा सकता है। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही साफ कर चुके हैं कि देश में निर्मित वैक्सीन चंद हफ्ते में उपलब्ध हो जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसे में बिना ट्रायल के फाइजर की वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत देना समझदारी का काम नहीं होगा।

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