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ग्रामीणों के लिए स्वरोजगार का शानदार मॉडल पेश किया महेन्द्र ने

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गोपेश्वर। चमोली जिले के दशोली ब्लॉक स्थित सरतोली गांव निवासी महेंद्र सिंह बिष्ट ने कोरोना काल को खुद के लिए तो अवसर में बदला ही, ग्रामीणों के लिए भी स्वरोजगार का शानदार मॉडल पेश किया है। बीते दस सालों से खाली पड़ी दस नाली पुश्तैनी व अन्य ग्रामीणों की 200 भूमि पर सब्जी व मसाला उत्पादन कर वह बीते आठ माह में पांच लाख रुपये से अधिक की कमाई कर चुके हैं। साथ ही छह ग्रामीणों को भी स्थायी रोजगार दे रहे हैं। ग्रामीणों से भूमि उन्होंने 20 साल की लीज पर ली है।
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान उद्योगों के बंद होने से बड़ी तादाद में कर्मचारी-अधिकारियों को रोजगार गंवाना पड़ा। इन्हीं में सरतोली निवासी 41-वर्षीय महेंद्र बिष्ट भी शामिल हैं। लेकिन, इन हालात में निराशा होने के बजाय उन्होंने गांव लौटकर स्वरोजगार का ऐसा मॉडल पेश किया, जो आज पूरे क्षेत्र के लिए अनुकरणीय बन गया है। वर्ष 2002 में श्रीनगर-गढ़वाल से पालीटेक्निक करने के बाद महेंद्र ने वर्ष 2010 में कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल में बीटेक की डिग्री हासिल की। फिर उन्होंने कई नामी-गिरामी कंपनियों में मैकेनिकल इंजीनियर के रूप में सेवाएं दी। इनमें ओमेक्स आटो लिमिटेड, बेंगलुरु भी शामिल है। नौकरी गंवाने के बाद महेंद्र के पास गांव सरतोली वापस लौटने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन, वह टूटे नहीं, बल्कि लॉकडाउन को अवसर में बदलने की ठानी और गांव के जैंथा तोक में वर्षो से खाली पड़ी पुश्तैनी व अन्य ग्रामीणों की 210 नाली (453600 वर्ग फीट) भूमि को आबाद कर किस्मत संवारने में जुट गए।
महेंद्र बताते हैं कि इस जमीन को खेती योग्य बनाकर उन्होंने ऑफ सीजन सब्जी का उत्पादन शुरू किया। सिंचाई के लिए प्राकृतिक स्रोत से खेतों तक पानी पहुंचाया गया। साथ ही उद्यान विभाग की मदद से पॉलीहाउस व सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर लगाया। नतीजा आठ महीने के कम समय में ही आलू, प्याज, मटर, भिडी, फ्रासबीन, अदरक, गोभी, शिमला मिर्च, टमाटर, लौकी, कददू व तोरी से उन्हें पांच लाख से अधिक की आय हो चुकी है।
महेंद्र बताते हैं कि वह 25 किमी दूर चमोली बजार में अपने उत्पाद बेचते हैं। क्षेत्र में मसाला उत्पादों की सबसे अधिक डिमांड है। इसलिए 20 नाली भूमि पर वह अदरक, मिर्च, लहसुन, धनिया, बड़ी इलायची की खेती कर रहे हैं।
जिला उद्यान अधिकारी, चमोली तेजपाल सिंह, का कहना है कि मैंने स्वयं महेंद्र की बागवानी का निरीक्षण किया। उनकी इस प्रगतिशील सोच ने ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने की राह खोल दी है। जैविक होने के कारण उनके उत्पाद हाथों-हाथ उठ जा रहे हैं।

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