क्या भारत को लेकर चीन के रुख में आया बड़ा बदलाव? चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा के मायने
नई दिल्ली, एजेंसी। रूस यूक्रेन संघर्ष के बीच भारतीय विदेश नीति की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही है। भारत की तटस्थ नीति को लेकर अमेरिका और उसके मित्र राष्घ्ट्रों ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अमेरिका के सहयोगी देश भारत पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाए हुए हैं। खासकर क्घ्वाड देशों ने भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अब चीन के विदेश मंत्री वांग की भारत यात्रा के बाद यह सुगबुगाहट तेज हो गई है कि चीन भारत के साथ संबंधों को सामान्घ्य करने का इच्छुक है। क्या चीनी विदेश मंत्री की यात्रा के तार रूस यूक्रेन जंग से जुड़े हैं। क्घ्वाड की बैठक के ठीक बाद चीनी विदेश मंत्री की भारत दौरे के क्घ्या मायने हैं? क्या क्घ्वाड देशों के बाद चीन ने भी भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है? क्घ्या चीनी विदेश मंत्री की यात्रा को इसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए?
प्रो़ हर्ष वी पंत का कहना है कि निश्चित रूप से यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस को घेरने में जुटे अमेरिका व इसके सहयोगी देश भारत पर भी लगातार दबाव बनाने की रणनीति अपनाए हुए हैं। क्घ्वाड के दूसरे वर्चुअल शिखर बैठक के दौरान आस्घ्ट्रेलिया और जापान ने भारत पर रूस के विरोध में दबाव बनाए हुए हैं। इसी क्रम में चीन ने भी क्वाड देशों के दबाव को कम करने के लिए भारत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। चीन के विदेश मंत्री वांग की नई दिल्घ्ली की यात्रा को इसी कड़ी के रूप में जोड़कर देखा जा रहा है। विदेश मामलों के जानकार प्रो पंत ने कहा कि भारत ने रूस यूक्रेन जंग के दौरान अपनी स्वतंत्र व तटस्घ्थ कूटनीति का पालन किया है। यही कारण रहा कि संयुक्घ्त राष्घ्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत किसी भी वोटिंग में मौजूद नहीं रहा। इतना ही नहीं वह रूस के साथ कच्घ्चे तेल की खरीद भी कर रहा है। यह बात शायद क्वाड देशों को हजम नहीं हो रहा है। उन्घ्होंने कहा कि इसके बड़े कारण है। भारत अपनी रक्षा जरूरतों का एक बड़ा हिस्घ्सा रूस से लेता है। देश में करीब 60 फीसद हथियार रूस के हैं। सैन्य क्षेत्र में भारत की रूस के प्रति आत्मनिर्भरता है।
भारत ने इस रूस यूक्रेन जंग में तटस्थता की नीति अपना रखी है। इस युद्घ में भारत खुल कर किसी का पक्ष नहीं ले रहा है। भारत ने यदि रूस के विरोध में या फिर यूक्रेन के समर्थन में कुछ कहा तो इसका असर भारत और रूस के संबंधों पर पड़ेगा। अब भारत के समक्ष एक बड़ी चुनौती है कि वह अमेरिका समेत क्वाड देशों को किस तरह से साधता है। क्घ्वाड देशों के दबाव को कम करने के लिए चीन के विदेश मंत्री भारत में हैं। उन्होंने अपने समकक्ष भारतीय विदेश मंत्री और एनएसए प्रमुख अजीत डोभाल से भी मुलाकात किया।उनकी यात्रा के यह संकेत है कि भारत रूस यूक्रेन मामले में तटस्घ्थता नीति पर कायम रहे। दुनिया में उपजी नए सामरिक समीकरण को देखते हुए भारतीय विदेश नीति के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। हालांकि, प्रो पंत ने माना कि अमेरिका बहुत कुछ भारत की मजबूरियों को समझता है। यही कारण है कि उसने प्रत्घ्यक्ष रूप से भारत पर दबाव नहीं डाला है। उसने अभी तक ऐसा कोई स्घ्टैंड नहीं लिया है कि जिससे भारत और अमेरिका की दोस्ती में दरार आए। फिलहाल इस समय भारत अमेरिका से भी दुश्मनी मोल लेने की स्थिति में नहीं है।