जोशीमठ भू-धंसाव: पीएमओ में उच्चस्तरीय बैठक, पीएम मोदी के प्रमुख सचिव, केंद्र-उत्तराखंड के अफसर हुए शामिल
जोशीमठ । जोशीमठ भू धंसाव मामले पर पीएमओ में हाई लेवल मीटिंग हो रही है। इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव ड़ पीके मिश्रा कर रहे हैं। इस बैठक में कैबिनेट सचिव, केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारी और नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथरिटी के सदस्य भी शामिल हुए। इनके अलावा जोशीमठ जिला प्रशासन के अधिकारी भी वीडियो कन्फ्रेंसिंग के जरिए इस बैठक से जुड़े।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा की उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक के बाद कई निर्णय लिए गए। बैठक के दौरान राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, आईआईटी रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट अफ हिमालयन जियोलजी, नेशनल इंस्टीट्यूट अफ हाइड्रोलजी एंड सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट से कहा गया कि वे विशेषज्ञों की टीम के जरिए अध्ययन करें और सिफारिशें दें। सीमा प्रबंधन सचिव और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कल उत्तराखंड का दौरा करेंगे और जोशीमठ की स्थिति का जायजा लेंगे।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव अध्यक्षता में समीक्षा बैठक के दौरान मुख्य सचिव उत्तराखंड ने जोशीमठ से प्रधानमंत्री कार्यालय को जानकारी दी। पीके मिश्रा को जोशीमठ समीक्षा बैठक में अवगत कराया गया कि भारत सरकार की एजेंसियां और विशेषज्ञ लघु, मध्यम और दीर्घकालिक योजना तैयार करने में राज्य सरकार की सहायता कर रहे हैं। एनडीआरएफ की एक टीम और एसडीआरएफ की चार टीमें पहले ही जोशीमठ पहुंच चुकी हैं।
इस बीच जोशीमठ की जमीन में दरारें बढ़ती जा रही हैं। आपता प्रबंधन विभाग के सचिव रंजीत सिन्हा के नेतृत्व में आठ सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल ने स्थिति का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकार को भेज दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस रिपोर्ट में दरक रहे घरों को तोड़ने की सिफारिश की गई है। जोशीमठ के 25 फीसदी इलाके इस भू धंसाव से प्रभावित बताए जा रहे हैं। इमारतों और अन्य स्ट्रक्चर में नुकसान की तीव्रता का पता लगाने के लिए भी सर्वेक्षण चल रहा है।
वहीं जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस मामले में याचिका दाखिल की है। याचिका में मांग की गई है कि प्रभावित लोगों को आर्थिक सहायता दी जाए और उनकी संपत्ति का बीमा करवाया जाए। याचिका में आदि शंकराचार्य ने कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को नष्ट होने की आशंका भी जाहिर की है।
उत्तराखंड के सीएम पुष्कर धामी ने हाल ही में जोशीमठ का दौरा किया था और वहां उन्होंने प्रभावित लोगों से मुलाकात कर स्थिति का जायजा लिया था। वहीं राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत रविवार को जोशीमठ का दौरा करेंगे। ऐसी खबरें आ रही हैं कि सोमवार को आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधिमंडल भी जोशीमठ का दौरा कर सकता है।
जोशीमठ में भू धंसाव की समस्या से लोग परेशान हैं, अब खबर आ रही हैं कि उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में भी करीब 50 घरों में दरारें आ गई है। कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर में मौजूद घरों में यह दरारें आई हैं। इससे इलाके के लोग दहशत में हैं और उन्होंने प्रदेश सरकार से मदद की गुहार लगाई है।
पानी के दस्तखत बताएंगे टनल से रिसाव की हकीकत, तपोवन सुरंग के नीचे देख चौंक गए विशेषज्ञ
जोशीमठ । हरी भरी वादियों के बीच बसे जोशीमठ की पथरीली जमीन और पहाड़ के किनारों से जिस तरह पानी का रिसाव हो रहा है ठीक वैसा ही रिसाव एनटीपीसी की तपोवन टनल के नीचे देख विशेषज्ञ चौंक गए। जोशीमठ से करीब 18 किमी़ दूर इस टनल के बाहर यह रिसावाषिगंगा नदी के मुहाने पर हो रहा है। रिसाव का पानी टनल का है।
हाइड्रोलजी के वैज्ञानिकों ने पानी के नमूने ले लिए हैं। अब वे दोनों जगह के नमूनों के सिग्नेचर का मिलान करेंगे। इससे पता चलेगा कि जोशीमठ में रिसाव का इस टनल से कोई कनेक्शन है या नहीं। जोशीमठ में तेजी से हो रहे भू-धंसाव के पीटे स्थानीय लोग एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की टनल निर्माण को जिम्मेदार मान रहे हैं।
उनका यह भी आरोप है कि टनल की वजह से ही पानी उनके घरों तक पहुंच गया है। जोशीमठ के लोगों के टनल की वजह से भू-धंसाव के आरोपों से एक सप्ताह में पर्दा हट जाएगा। रुड़की के राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिक डा. गोपाल ष्ण, ने बीते दो दिन जोशीमठ, टनल और दोनों के बीच दो अन्य रिसावों के सैंपल एकत्र किए।
एनआईएच के वैज्ञानिकों ने इसका अध्ययन भी शुरू कर दिया है। इस संस्थान का मकसद ही जलविज्ञान के समस्त पहलुओं पर वैज्ञानिक कार्यों में सहयोग देना और व्यवस्थित रूप से इनका समन्वयन करना है।
इसी एनएचआई की टीम ने जोशीमठ के मकानों से रिस रहे पानी और टनल के भीतर जाकर वहां के पानी, बाहर बह रहे पानी के अब तक कोई आधा दर्जन सैंपल लिए हैं।
एनआईएच के वैज्ञानिक ड. गोपाल ष्ण ने अमर उजाला को बताया कि चारों सैंपल का अध्ययन किया जाएगा। इनका पीएफ और आईसोटप देखे जाएंगे, जिससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि टनल से बहने वाले पानी और जोशीमठ के मकानों में आ रहे पानी में कोई समानता है या नहीं।
अगर इसमें समानता मिलती है तो निश्चित तौर पर यह तय माना जाएगा कि टनल का पानी वहां तक पहुंच रहा है। उन्होंने बताया कि अमूमन सप्ताह भर में वटर सिग्नेचर मैचिंग की रिपोर्ट आ जाती है।
वटर या हाइड्रोलजिक सिग्नेचर क्वांटिटेटिव इंडेक्स हैं जो हाइड्रोलजिक डेटा सीरीज के गतिशील गुणों का वर्णन करते हैं। ये एक तरह से पानी का डीएनए जांच लेते हैं। टनल और जोशीमठ के रिसाव का डीएनए अगर मैच हो गया तो इस विपदा का पूरा ठीकरा एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना पर फूटना तय है।