संपादकीय

लोकतत्र सेनानी अमर पत्रकार : स्व नरेन्द्र उनियाल

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-प्रोफेसर नन्दकिषोर ढौडियाल ‘अरुण’
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पुण्य तिथी पर विशेष
पत्रकार समाज का सबसे बड़ा जागरूक व्यक्ति होता है। ऐसा व्यक्ति, जिसको अपने अधिकार और कत्र्तव्यों का पूर्ण बोध होता है। इसी जागरूकता के कारण वह जहाँ अपने स्वयं के प्रति उत्तरदायी होने का संकल्प लेता है, वहाँ समाज के अन्य लोगो से भी अपेक्षा करता है कि वे भी अपने प्रति जागरूक रहें। उसके इसी संदेश के फलस्वरूप समाज का प्रत्येक व्यक्ति जागरूकता की नयी परिभाषाएं गढ़ता है। पत्रकार की लेखनी एक ऐसी सेतू होती है जो एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करती है। इसी के बल पर व्यक्ति, व्यक्ति को समझता और समझाता है। कहने का आशय यह है कि पत्रकार होने का अर्थ है समाज के सुखों-दु:खों को एक दूसरे तक पहुँचाने वाला बुद्घिजीवी।
जागरूकता के अतिरिक्त पत्रकार का एक जो दूसरा प्रधान गुण होता है वह है निर्भीकता। पत्रकार स्वभाव से निर्भीक होना चाहिए। इसी निर्भीकता के बल पर वह समाज में घटने वाली घटनाओं उनके कारणों पर न्याय संगत टिप्पणी कर सकता है। इसी निर्भीकता के बल पर वह बिना किसी दबाव के अपनी बात को पाठको तक पहुँचा सकता है। भय के लिए पत्रकारिता में कोई स्थान नहीं होता, यदि पत्रकार डरपोक है तो उसको पत्रकारिता जगत में प्रवेश ही नहीं करना चाहिए क्योकि पत्रकार को तो खतरों से खेलना पड़ता है। उसके निर्भीक टिप्पणीयों, समाचारों लेखों और सम्पादकीओ के कारण कभी-कभी उसे हिंसा और सामाजिक, राजनैतिक दबावों का भी शिकार बनना पड़ता है। निष्पक्षता पत्रकार का तीसरा गुण होता है। उसका समाज के सभी तबको के प्रति समानता का व्यवहार और बिना किसी अपनत्व और परत्व की भावना से परिपूर्ण होना चाहिए। यदि पत्रकार निष्पक्ष नहीं है तो उसका पत्रकारिता जगत में कोई स्थान नहीं होता। वह अपनी लेखनी जिस विषय पर भी चलाये, उस विषय के उभय पक्षों को केन्द्र में नही रखता है तो वह समाज के साथ बड़ा अन्याय करता है। उसके द्वारा किये गये पक्षपात पूर्ण व्यवहार के कारण कभी-कभी निर्दोष भी दोषी घोषित हो सकता है इसलिए वह इस बात से सतर्क रहे कि ‘‘कही उसकी लेखनी या जाँच पड़ताल के द्वारा कोई व्यक्ति, संस्था या क्षेत्र अन्याय का शिकार तो नहीं हो रहा है।’’
पत्रकार को पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। यदि वह पूर्वाग्रही है तो वह पत्रकारिता जगत को अपयश के अतिरिक्त कुछ नहीं दे सकता। इस पूर्वाग्रह का पोषक हमेशा वाद वादी होता है ये वाद चाहे क्षेत्रवाद हो या जातिवाद किसी एक विचार धारा के प्रति समर्पित हो या विरोधी, ये सभी तथ्य पत्रकारिता के लिए ही नहीं अपितु पत्रकार के लिए भी अभिशप्त होते हंै। इस संदर्भ में पत्रकार यदि किसी वाद से ग्रस्त है तो उसके अन्दर बैठा हुआ उसका नीरक्षीर विवेक कभी भी जागृत नहीं हो सकता, यदि वह पूर्वाग्रही है तो वह जो कुछ भी देखेगा या लिखेगा उसकी दृष्टि सावन के अन्धे की जैसी हो जाती है जिसे चारों ओर हरा ही हरा दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त वह महत्वकांशी, लोभी या लालची न हो, यदि ऐसा हो तो वह पत्रकारिता जगत के लिए अभिशाप बन जायेगा। इसी से वह पीत पत्रकारिता का शिकार बन जायेगा। इससे वह लोगो की अंगुलियों में नाचना शुरू कर देगा। एक अच्छा पत्रकार, सफल समीक्षक लेखनी का धनी, भाषा और भावों को सुगमता से ग्रहण करने वाला होना चाहिए। इसी से वह अपनी बात को सरलता और सुगमता से अभिव्यक्त कर सकता है। अध्ययनशील होना भी एक पत्रकार को सफलता की ऊँचाई तक ले जाने वाला होता है भले ही वह किसी भी क्षेत्र का पत्रकार क्यों न हो बिना अध्ययन और विषय पर पकड़ न होने पर वह कुछ न लिखे।
वर्तमान में पत्रकारों के कई रूप है सम्पादक, सम्वाददाता, पाठक, प्रूफ रीडर, समीक्षक, लेखक, कवि, स्तम्भकार आदि-आदि।
यदि हम पत्रकारिता और पत्रकार के उपरोक्त गुणों और विशेषताआें पर स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल की पत्रकारिता को कसें तो यह पत्रकारिता की कसौटी पर खरी उतरती है। स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल एक निर्भीक पत्रकार थे। उन्होने हमेशा भयहीन पत्रकार की भूमिका का निर्वाहन किया। इसी का परिणाम था कि उन्हे कई बार ऐसे समाजिक गुण्डों की हिंसा का भी शिकार होना पड़ा जिनकी करनी को उनकी लेखनी का विषय बनने के लिए बाय होना पड़ता था। इस निर्भीकता के बीज उनके अन्दर छात्र जीवन से ही पड़ चुके थे। यही कारण था कि भारतीय लोकतंत्र को कुचलने के लिये लागू किये गये आपातकाल का विरोध करने जब वे कारावासी का जीवन व्यतीत कर रहे थे, तो वहां भी जेल की अव्यवस्थाओं के प्रति मुखर हो जाते थे जिसके कारण इन्हें जेलकर्मियों के अत्याचारों का भी शिकार होना पड़ता था।
इसी निर्भीकता का परिचय उन्होने पत्रकारिता में भी दिया। ये अपने पत्र ‘धकता पहाड़’ और ‘जयन्त’ में जो कुछ भी लिखते थे निर्भीक होकर के लिखते थे। यह लेखन चाहे सरकार के कृत्यों पर आधारित हो या सरकारी अवस्थाओ पर ये अपने सम्पादकीयों में उन पर बेबाक टिप्पणी किया करते थे।
निष्पक्ष पत्रकारिता करना स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल का ध्येय था। उनके अन्दर उच्च कोटी के पत्रकारिता करने की सेवा भावना थी और ऐसी पत्रकारिता वही पत्रकार कर सकता है जो स्वयं में निष्पक्ष हो। राष्ट्रीय स्वयं सेवक होने पर भी इन्होने कभी किसी दल या विचारधारा का पक्ष नहीं लिया। शुद्घ राष्ट्रवाद के विचारक इस पत्रकार को यह गुण पत्रकारिता के लिए शहीद हो जाने वाले अमर पत्रकार स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी से प्राप्त हुआ था। इन्होंने अपने पत्रों के माध्यम से न तो क्षेत्रवाद की जड़ो में पानी डाला और नहीं जातिवादी के। ये जो कुछ देखते थे वही लिखते थे।
स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल ने ‘‘जथालाभ सन्तोष तदा सुख काहू से कुछ न चहै हों’’ के सिद्घान्त का अनुकरण करते हुए कभी अपनी महत्वाकाक्षाओं को हवा नहीं दी।
तत्कालीन स्थानीय पत्र पत्रिकाएं वर्तमान की भाँति ही, आर्थिक संकट से संघर्ष कर रही थी। उस स्थिति में अपने अखबारों के लिए स्वतन्त्र प्रेस की स्थापना करने के लिए इन्होने अपना सर्वस्व लुटा दिया। जिसे हम एक बहुत बडे त्याग का अद्वितीय उदाहरण कह सकते है। स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल ने ‘जयन्त प्रिंटिग प्रेस’ की स्थापना कर यह सिद्घ कर दिया कि ‘‘व्यक्ति चाहे जिस क्षेत्र से भी राष्ट्र या लोक सेवा करना चाहे पूर्णरूप से समर्पित हो जाय’’ इसी सूक्ति का समर्थन करता है।
ईमानदारी अर्थात् सत्यनिष्ठा के प्रतीक स्वर्गीय उनियाल ने अपनी खोजी पत्रकारिता को एक नई खाद दी। ‘‘धधकता पहाड’’ इसका एक उदाहरण है ‘धधकता पहाड’ के मायम से स्वर्गीय उनियाल ने अपने इस सद्गुण की श्रीवृद्घि की जिसकी छाप आज भी ‘जयन्त’ पर दिखाई देती है। इसी सत्यनिष्ठा, त्याग व बलिदान के कारण उनका साप्ताहिक पत्र ‘जयन्त’ आज दैनिक समाचार पत्र बनकर बड़े-बड़े व्यवसायिक समाचार पत्रों के समक्ष अंगद के पैर के समान अडिग है। इसके अडिग होने के पीछे स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल के अनुज श्री नागेन्द्र उनियाल की भी बहुत बड़ी भूमिका है।
एक समय था कि कोटद्वार नगर पत्रकारों का नगर माना जाता था। स्वतन्त्रता से पूर्व और सन् 1990 तक इस नगर में कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती थी लेकिन इन्हे कुछ समय पश्चात् बड़ी मछलियाँ अपना ग्रास बनाने लगी और अब ये यहाँ नाम मात्र ही रह गयी लेकिन जयन्त ने अपने जन्म के समय जो कलेवर लिया था वर्तमान में वह उससे भी और अच्छी अवस्था में प्रकाशित होकर विज्ञ पाठको के हाथो में पहुँच रहा है। इस सबके पीछे स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल का त्याग, सत्यनिष्ठा और बलिदान तथा वर्तमान सम्पादक और स्वामी श्री नागेन्द्र उनियाल की कत्र्तव्यनिष्ठा और अपने अग्रज स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल के प्रति श्रद्घा का भाव कार्य कर रहा है।
अब जबकि स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल को हम स्वर्गीय रूप में याद कर रहे हैं। तब हमें उनके सच्चे पत्रकार होने का भान हो रहा है क्योंकि आज की पत्रकारिता और सत्तर-अस्सी के दशक की पत्रकारिता में जमीन आसमान का अन्तर आ गया है। तब उनके पास इतने साधन नहीं थे, जितने कि वर्तमान में, लेकिन मात्र अन्तर इतना है कि तब के पत्रकार बड़े सम्मानित और समाज की अग्रपंक्ति में खड़े दिखाई देते थे और आज जब पत्रकारों में सुख साधन भोगने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी है तब ये मात्र इसे आजीविका का साधन बनाये हुए हैं। इन्हे इतना सम्मान नहीं मिलता जितने सम्मान के ये अधिकारी है। स्वर्गीय नरेन्द्र उनियाल अमर और उनका पत्र जयन्त दीर्घजीवी हो हम प्रभु से यही प्रार्थना करते है।

कविता

किसको याद करें हम?
उसको जिसने राष्ट्रवाद की, सबको याद दिलाई।
उसको जिसने देशप्रेम की, अमृत घूँट पिलायी।
उसको जिसने कारागृह में, बिगुल क्रान्ति का फूँका।
उसको जिसने पुतला जन-मन, कुटिल भ्राँति का फूँका॥

किसको याद करे हम?
जो कि लोक हित में मंचो पर, सिंह सदृश था गर्जा।
उसको जिसने राष्ट्रवाद का, नया मंत्र था स्रजा।
उसको जिसने हर पल हर क्षण, तन-मन त्याग किया था।
भारत माता के चरणों में, नित अनुराग किया था॥

किसको याद करे हम?
उसको जो था पत्रकार, पत्रों का जीवनदाता।
जिसकी यश गाथा को अब तक, जन-जन मन है गाता।
स्वस्थ पत्रकारिता में जिसका, नाम प्रथम है आता।
जो पाठक था और वीर रस का जैसे उद्गाता॥

किसको याद करे हम?
उसको जिसका नाम नरेन्द्र, था नरेन्द्र सा बल।
जिसके आगे कभी न टिकता, था कोई भी बल छल।
उस नरेन्द्र को याद करे हम, श्रद्घाभाव से अक्सर।
कभी न देखा जिस नरेन्द्र ने ,पीछे थोड़ा मुडकर॥

उसको याद करे हम, उसको नमन करे हम।
परहितरत रहता था जो नर, प्रतिपल प्रति क्षण हरदम॥
प्रोफेसर नन्दकिषोर ढौंडियाल ‘अरुण’
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