Uncategorized

एमकेपी दून में घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तत्कालीन सचिव की एसएलपी खारिज

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

नैनीताल। महादेवी कन्या पाठशाला देहरादून में यूजीसी से मिली 45 लाख के घोटाले के मामले में तत्कालीन सचिव जितेंद्र नेगी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हाईकोर्ट ने मामले में राज्य सरकार, यूजीसी, तत्कालीन निदेशक और प्राचार्य को नोटिस देकर उच्च स्तरीय जांच करने के निर्देश दिए थे। साथ ही कार्यवाही करने के निर्देश देते हुए याचिका को निस्तारण कर दिया था। अब हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका में तत्कालीन सचिव नेगी को निराशा हाथ लगी है। सर्वोच्च न्यायालय ने जितेंद सिंह नेगी की एसएलपी याचिका खारिज कर दिया है।
एमकेपी की पूर्व छात्र सोनिया बेनीवाल द्वारा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका पर दायर की गई थी। उच्च न्यायालय ने यूजीसी द्वारा 2012-2013 में 45 लाख गबन के मामले पर राज्य सरकार, यूजीसी, तत्कालीन सचिव जितेंद्र सिंह नेगी और प्राचार्य ड किरन सूद को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिए थे। 45 लाख रुपए की ग्रांट एमकेपी में छात्राओं की शिक्षा में सहूलियत के लिए जारी की गई थी लेकिन 2012-2013 में इस रकम का उपयोग एप्पल के महंगे उपकरण खरीदने में किया गया और ऐसे कई उपकरण 2019 तक के परीक्षण में पाए ही नहीं गए। टेंडर न करते हुए केवल कोटेशन के आधार पर पैसों की बन्दर बांट की गई। एक जगह आर्डर कि डेट के बाद का कोटेशन लगाया गया।
राज्य सरकार द्वारा कराए अडिट में सरासर गलत पाया गया और ड सूद और जितेंद्र नेगी से वसूली की बात की गई। 2016-2017 में इस मामले में एफ आई आर भी दर्ज हुई। 2019 जनवरी में शासन के स्थलीय निरक्षण के दौरान भी 768000 की सामग्री पाई ही नहीं गई। इस वजह से यूजीसी ने एमकेपी को अगले पंचवर्षीय योजना में शून्य रुपए दिए।
मामले में उच्च शिक्षा और पुलिस केशपथपत्र में अलग अलग बातें सामने आईं। पुलिस ने जितेंद्र सिंह नेगी को क्लीन चिट देने का प्रयास किया जबकि सचिव उच्च शिक्षा ने नेगी को इस वित्तीय गड़बड़झाले का दोषी करार दिया। हाई कोर्ट ने जितेंद्र सिंह नेगी की पैरवी को अस्वीकार करते हुए, उच्च शिक्षा विभाग से ही नेगी को नोटिस देकर, उसका पक्ष जानकर यदि वह फिर से दोषी साबित होने पर दण्डात्मक कार्यवाही करने का आदेश दिया।
गौरतलब है इसी मामले में उच्च शिक्षा विभाग पहले ही रजिस्ट्रार अफ सोसाइटीज को पिछले वर्ष चिट्ठी लिख कर नेगी के खिलाफ कार्यवाही करने को कह चुका है और उच्च शिक्षा सचिव ने कोर्ट के सामने प्रस्तुत अपने शपथपत्र पर नेगी को बंदरबांट का दोषी पाया है। अंत में नेगी की ओर से सारा ठीकरा तत्कालीन प्रधानाचार्या ड किरण सूद पर डालने की कोशिश की गई, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया की दोनों, तत्कालीन सचिव (जितेंद्र सिंह नेगी) और तत्कालीन प्रधानाचार्य, (ड किरण सूद) पर यह जांच होगी। इस मामले में हाईकोर्ट की याचिकाकर्ता सोनिया बेनीवाल की पैरवी अधिवक्ता अभिजय नेगी एवं सुजय चटर्जी ने पैरवी की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!