कोटद्वार-पौड़ी

गढ़वाल मण्डल के एन0एस0एस0 आच्छादित शिक्षण संस्थाओं में तैयार होगी च्यूरा की नर्सरियां

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जयन्त प्रतिनिधि
कोटद्वार। गढ़वाल मण्डल के एन0एस0एस0 आच्छादित शिक्षण संस्थाओं में च्यूरा की नर्सरी तैयार करवायी जा रही है। प्रथम चरण में पौड़ी, रूद्रप्रयाग, चमोली और टिहरी में यह अभियान शुरू किया गया है। यह जानकारी एन0एस0एस0 के कार्यक्रम मण्डलीय समन्वयक पुष्कर सिंह नेगी द्वारा विकास खण्ड एकेश्वर के अन्तर्गत पब्लिक इण्टर कॉलेज सुरखेत में एन0एस0एस0 की पहल पर कल्पवृक्ष नर्सरी तैयार करने के लिए च्यूरा के बीजों का रोपण के अवसर पर कही।
एन0एस0एस0 के गढ़वाल मण्डल कार्यक्रम समन्वयक पुष्कर सिंह नेगी तथा प्रधानाचार्य हीरा सिंह तोमर के मार्गदर्शन में विद्यालय परिसर में निर्मित पॉलीहाउस में स्वयंसेवियों ने क्यारियाँ बनाकर तथा पॉलीथीन की थैलियों में च्यूरा के बीज रोपकर नर्सरी तैयार की।
स्वयंसेवकों को जानकारी देते हुए कार्यक्रम समन्वयक पुष्कर सिंह नेगी ने बताया कि च्यूरा को अंग्रेजी में इण्डियन बटर ट्री कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा ब्यूटीगैसिया है। मूलरूप में यह पेड़ नेपाल में काली नदी घाटी में पाया जाता है। उत्तराखण्ड में पिथौरागढ़ और चंपावत जनपदों में कुछ मात्रा में यह पेड़ मौजूद है। इस पेड़ की लकड़ी, छाल, पत्ती, फूल और फल सभी उपयोगी होते हैं। बहुउपयोगी इस वृक्ष को अभी तक सरकार एवं पर्यावरणविदे का संरक्षण न मिलने के कारण जनमानस को इसकी उपयोगिता की अधिक जानकारी नहीं है।
गढ़वाल मण्डल में च्यूरा के पौधों को उगाने के लिए एच0एन0बी0 गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर के रसायन विभागाध्यक्ष तथा स्पर्शगंगा बोर्ड उत्तराखण्ड के पूर्व विशेष कार्याधिकारी डॉ0 प्रभाकर बड़ोनी की पहल पर एन0एस0एस0 के कार्यक्रम समन्वयक पुष्कर सिंह नेगी द्वारा एन0एस0एस0 आच्छादित शिक्षण संस्थाओं में च्यूरा की नर्सरी तैयार करवायी जा रही है। प्रथम चरण में पौड़ी, रूद्रप्रयाग, चमोली और टिहरी में यह अभियान शुरू किया गया है। नर्सरी तैयार हो जाने के बाद अगले एक-दो वर्षों में तैयार इसके पौधों को शिक्षण संस्थाओं तथा उनके सेवित गाँवों में रोपित किये जायेंगे। उन्होंने जानकारी दी कि गढ़वाल मण्डल में च्यूरा रोजगार का एक बेहतर विकल्प बन सकता है। च्यूरा से शहद, तेल, घी, साबुन, धूप व अगरबत्ती बनायी जाती हैं। च्यूरा के फूलों से शहद बनता है। इसके फूलों में दोनों तरफ पराग होता है। इस कारण इससे बनने वाले शहद की मात्रा काफी अधिक रहती है। च्यूरा के पेड़ों के आसपास मौन पालन का रोजगार भी किया जा सकता है। च्यूरा के फल बेहद मीठे और रसीले होते हैं। फलों की गुठली (बीज) में वसा की मात्रा बहुत अधिक होने से वनस्पति घी और तेल बनता है। इसकी खली जानवरों के लिए बहुत पौष्टिक मानी जाती है। इसे जलाकर इसके धुएँ से मच्छर भगाये जाते हैं। च्यूरा धार्मिक आस्था से जुड़ा वृक्ष भी है। गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों में च्यूरा के पत्तों की माला बनाकर मकान के चारों तरफ लगाने की प्राचीन परम्परा रही है। च्यूरा के वृक्ष 10 से 15 मीटर तक ऊंचे होते हैं तथा इसकी जड़े जमीन में बहुत गहरी जाती हैं जिसके कारण यह भू-क्षरण रोकने में अत्यधिक सहायक है। इसके पेड़ समुद्रतल से लेकर 4000 फीट की ऊंचाई तक आसानी से पनप जाते हैं। बहुउपयोगी गुण के कारण इसे कल्पवृक्ष भी कहा जाता है।
इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक प्रमोद रावत, महेन्द्र रमोला, संजय कुमार, सतीश चन्द्र शाह, सरोज रावत, विजेता, कार्यालय कार्मिक प्रेम सिंह रावत, मनवर चौहान, सतेन्द्र रावत के साथ ही स्वयंसेवी कु0 अमीषा, साक्षी, शिवानी, करिश्मा, कोमल, मीत चौहान, शिवम, प्रफुल्ल राणा, मोहित सिंह, रौनक, रोबिन रमोला, रोहित, अरूण, करण, अवनीश उपस्थित रहे।

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