विरासत

निर्भीक, निष्पक्ष तथा प्रखर राष्ट्रवादी सोच के जननायक पत्रकार थे नरेन्द्र उनियाल

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(70वें जन्मदिवस पर भावपूर्ण स्मरण)
भारत, भारती तथा भारतीयता से ओत-प्रोत मध्य हिमालयी क्षेत्र का भू-भाग उत्तराखण्ड भारत का ऐसा भू-भाग है जहां समय-समय पर अनेक महापुरूषों ने जन्म लेकर समाज हित के कार्यों तथा ज्ञान के प्रकाश के द्वारा समस्त विश्व को आलौकित किया है। अनेक महापुरूषों की जन्म व तपस्थली उत्तराखण्ड की भूमि धन्य है जिसने समय-समय पर अनेकों महापुरूषों को पोषित-पल्लवित कर मानवता का आधार स्तंभ तैयार किया है। भले ही ऐसे समाज सुधारक, ज्ञानवान वीरों की राह फूलों की सेज नहीं बल्कि सदा काटों भरी कंकरीली-पथरीली तथा धधकती ज्वालाओं का अग्निपथ रहा है। फिर भी मानवता की मूर्ति इन ज्ञानवान वीरों ने स्वंय को इन धधकती ज्वालाओं में तपाकर सम्पूर्ण विश्व में अपनी स्वर्णिम आभा की चमक को बिखेरा है। इसीलिए ऐसे महापुरूषों का हर कदम जीवन की एक अनुकरणीय पाठशाला के रूप में मानव समाज में सदा के लिए अंकित हो चुका है।
ऐसे ही महान विभूतियों में एक विभूति थे क्रांतिकारी पत्रकार नरेन्द्र उनियाल। नरेन्द्र उनियाल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं बल्कि उनका जीवन पथ ही उनका वास्तविक जीवन परिचय है। उत्तराखण्ड की पावन-पुण्य धरती पर जन्म लेने वाले निर्भीक, निष्पक्ष तथा प्रखर राष्ट्रवादी सोच के जननायक ने मात्र 29 वर्ष की आयु में ही शिक्षा, निर्भीक, निष्पक्ष पत्रकारिता तथा लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में ऐसे कीर्तिमान स्थापित किये जिसके कारण वे आज भी पत्रकारिता के एक अग्रणी स्तम्भ के रूप में विद्यमान हैं। वत्र्तमान दौर में जबकि पत्रकारिता का निरन्तर हा्रस हो रहा है तो ऐसे समय में निर्भीक, निष्पक्ष पत्रकार नरेन्द्र उनियाल जैसे व्यक्तित्व का महत्व और भी बढ़ जाती है। आओ ऐसे महान व्यक्तित्व का भावपूर्ण स्मरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके पथ का अनुशरण करने की शपथ लेते हैं।

जन्म

नरेन्द्र उनियाल का जन्म 12 मार्च 1952 को टिहरी नरेन्द्र नगर में हुआ था। आपकी माता का नाम भुवनेश्वरी तथा पिता का नाम आदित्यराम उनियाल था। छ: भाई-बहिनों में नरेन्द्र उनियाल दूसरे नम्बर के थे। ग्राम-सकनोली, पट्टी-असवालस्यूॅ, जिला-पौड़ी गढ़वाल के मूल निवासी नरेन्द्र बाल्यकाल से ही प्रखर बुद्धि के थे। शारीरिक रूप से कृश परन्तु बुद्धि बल में बलवान नरेन्द्र बचपन से ही परोपकार की भावना से ओत-प्रोत थे। बालक नरेन्द्र के अन्दर कर्तव्यनिष्ठा, देश-प्रेम तथा स्वयं सेवक के गुणों का उदय जीवन के प्रारम्भिक काल में ही हो गया था। अपने बाल्यकाल से ही आपने अपने बाल सखाओं के साथ मिलकर एक संगठन तैयार किया जो अपने तथा आस-पास के गांवों में स्वप्रेरित होकर समाज हित के कार्य करता था। श्रमदान से रास्तों का निर्माण हो या किसी जरूरतमंद की मदद आपका बाल संगठन सदैव तत्पर रहता था।

शिक्षा

बहुआयामी तथा विलक्षण व्यक्तित्व के धनी नरेन्द्र सदा अपनी कक्षा में प्रथम आते थे। नरेन्द्र के पिता राजकीय पुलिस विभाग में सेवारत थे। पिता के बार-बार स्थानान्तरण के कारण बालक नरेन्द्र की शिक्षा अनेक स्कूलों से सम्पन्न हुई। नार्मल स्कूल पौड़ी से प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने वाले नरेन्द्र ने आठवीं कक्षा अपने मूल गांव के निकट मुण्डनेश्वर से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। आपने हाईस्कूल डी0ए0वी0 स्कूल पौड़ी से तथा इण्टमीडिएट की परीक्षा मेसमोर इण्टर कालेज पौड़ी से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मेधावी छात्र नरेन्द्र ना सिर्फ पढ़ाई में होशियार थे, बल्कि स्कूल में सम्पन्न होने वाले अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी प्रमुख भूमिका निभाते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये नरेन्द्र ने देहरादून का रूख किया। परन्तु अड़चनें तो महापुरूषों की राह में आती ही है दरअसल नरेन्द्र जब स्नातकोत्तर महाविद्यालय डी0ए0वी0 में प्रवेश लेने लगे तो उस समय प्रवेश बन्द हो चुके थे। ऐसे में यदि कोई साधारण छात्र होता तो मन मसोसकर सीधे घर का रूख कर देता परन्तु पूर्ण प्रयास करना विलक्षण प्रतिभा के धनी असाधारण महापुरूषों का काम है। नरेन्द्र ने हिम्मत नहीं हारी तथा तत्कालीन प्राचार्य मातावक्श के पास पहुंच गये। मातावक्श की छवि एक कड़ी प्राचार्य की थी। कॉलेज में सभी लोग उनकी छवि के कारण भय खाते थे इसी कारण आसानी से कोई भी उनके केबिन की ओर रूख नहीं कर सकता था। नरेन्द्र के सीधे केबिन में प्रवेश करने के कारण प्राचार्य मातावक्श दुबले-पतले युवक के साहस पर आश्चर्य से देखते रहे और फिर कड़क आवाज में बोले क्यों आए हो ? युवा नरेन्द्र ने बेहिचक दृढतापूर्वक उत्तर दिया सर! आप मुझे प्रवेश दें या ना दें यह आपकी इच्छा पर निर्भर करता है परन्तु एक बार मेरी माक्र्स सीट तो देख लीजिए प्राचार्य के सम्मुख अभिलेख रख दिये। माक्र्ससीट्स को देखते हुए उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर रहे थे। वे हतप्रभ थे कि यह दुबला पतला क्षीण तन वाला बालक इतना कुशाग्र बुद्धि का है। उन्होंने तुरन्त लिपिक को बुलाकर आदेश दिया कि इस छात्र को प्रवेश देने की प्रक्रिया पूर्ण की जाय। युवा नरेन्द्र को बी0एस0सी0 में प्रवेश मिल गया फिर क्या था, युवा नरेन्द्र लग्न और मेहनत के साथ अध्ययनरत हो गये तथा बी0एस0सी0 की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।


विचारधारा

आपकी विचारधारा पं0 दीनदयाल उपाध्याय से प्रभावित थी। पं0 दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय राजनीति में एक युग प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। जन संघ के निर्माता पं0 दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से प्रभावित होकर नरेन्द्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में शामिल हुए तथा जीवन पर्यन्त संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता बने रहे। शैक्षणिक प्रवास के दौरान नरेन्द्र का रहन-सहन भी देहरादून स्थित संघ कार्यालय में ही था। सन 1969 में आपने अपने सहपाठियां को प्रेरित कर विद्यार्थी परिषद का गठन किया तथा छात्रों की समस्याओं को हल करने के लिए महाविद्यालय प्रशासन निरन्तर संवाद बनाये रखा।

समाज में योगदान
स्व0 नरेन्द्र उनियाल अल्पायु में ही समाज में अविस्मरणीय योगदान के लिये सदैव याद किये जायेंगे चाहे गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्थापना में आपका योगदान हो या सा0 समाचार पत्र ‘धधकता पहाड़’ के माध्यम से वैचारिक क्रान्ति की या जे0पी0 आन्दोलन को गढ़वाल में प्रचारित-प्रसारित करने में अग्रणी भूमिका निभाने की हो या फिर 1973 में उत्तराखण्ड आन्दोलन में जेल भरो आन्दोलन की जिसके कारण आप तीन दिन तिहाड़ सेन्ट्रल जेल में रहे देश-समाज हित में जो भी भूमिका आपको मिली। आप प्रत्येक भूमिका में खरे उतरे तथा सदैव समाज हित व राष्ट्र हित को समर्पित रहे। गरीबी, शोषण, अन्याय, भ्रष्टाचार तथा कुशासन के खिलाफ आपकी तीक्ष्ण व पैनी लेखनी ने तत्कालीन शासन-प्रशासन को इतना बेचैन कर दिया था कि 25 जून 1975 को जैसे ही आपातकाल की घोषणा हुई तो सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलने तथा लिखने वालों को ढूंढ-ढूंढ कर जेल में ठूंसना प्रारम्भ कर दिया गया था। नरेन्द्र उनियाल का सा0 समाचार पत्र धधकता पहाड़ तब गढवाल क्षेत्र में बुलन्दी पर था। इसी कारण आपकी खोज भी प्रारम्भ हो गयी। आर0एस0एस0 तथा जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता स्व0 उनियाल ने 1974 में जे0पी0 आनदोलन के दौरान गढ़वाल की राजनीति में भूचाल ला दिया था। स्व0 उनियाल समाज हित में सक्रिय कार्यकर्ता थे आपने स्वयं गढ़वाल क्षेत्र में पहली गिरफ्तारी थी। आपातकाल के दौरान स्व0 उनियाल गढ़वाल क्षेत्र में लोकतन्त्र के पहले ऐसे प्रहरी थे जिन्हें सर्वप्रथम गिरफ्तार किया गया
सन 1971 में शुरू किया गया सा0 समाचार पत्र ‘धधकता पहाड़’ का प्रकाशन स्व0 उनियाल के उन्नीस महीने जेल में रहने के कारण प्रकाशन स्थगित रहा। इस बीच ‘धधकता पहाड़’ का प्रकाशन नहीं हो पाया। स्व0 उनियाल ने 7 मई 1979 के एक दूसरे सा0 समाचार पत्र ‘जयन्त’ का प्रकाशन आरम्भ किया। वर्तमान में ‘जयन्त’ का दैनिक प्रकाशन उनके छोटे भाई नागेन्द्र उनियाल द्वारा किया जा रहा है। जयन्त एक लोकप्रिय दैनिक के रूप में निरन्तर समाज हित में प्रकाशित हो रहा है। स्वाभिमानी स्वभाव, समाज हित चिंतक, प्रतिभावान, दूरदर्शी सोच, पत्रकारिता एवं राजनीतिक ज्ञान के कारण स्व0 उनियाल का सम्बन्ध भारतीय जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी, सुन्दर सिंह भण्डारी जैसे राष्ट्रीय नेताओं से सीधा सम्पर्क था। शारीरिक रूप से कृश तथा निरन्तर गिरते स्वास्थ्य के कारण भी नरेन्द्र कभी भी कर्तव्यपथ से विमुख नहीं हुए तथा निरन्तर जीवटता के साथ अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढते गये। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इलाज का भरोसा दिलाया परन्तु वह भी मात्र भरोसा ही साबित हुआ। 23 जुलाई 1981 को पत्रकारिता का यह जगमगाता सितारा एक निजी अस्पताल से सदा अलविदा का सन्देश लिख चुका था। परन्तु समाज हित में किये गये कार्यों के लिये ऐसे महापुरूषों की सदा अमिट छवि बनी रहेगी।

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