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स्कूल न खोलना भी उतना ही खतरनाक, जितना उन्हें खोलना, बिगड़ रहा है परिवार के भीतर का वातावरण

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नई दिल्ली, एजेंसी। कोविड-19 महामारी से बचाव के लिए स्कूलों को न खोलना भी कमोबेश उतना ही खतरनाक है जितना कि उनको खोलना। स्कूलों के न खुलने से न केवल परिवार के भीतर का वातावरण बिगड़ रहा है बल्कि बच्चों की घरेलू कामकाज में भागीदारी भी बढ़ रही है। इसके चलते वे पढ़ाई से दूर होते जा रहे हैं। यह बात विनय पी सहस्त्रबुद्घे की अध्यक्षता वाली शिक्षा, महिला, युवा, बच्चों और खेल पर गठित संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल से ज्यादा समय से स्कूलों की बंदी ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाला है। बड़े बच्चों का घर की चारदीवारी के भीतर लगातार रहना माता-पिता के साथ उनके रिश्तों पर असर डाल रहा है। माता-पिता और बच्चों के बीच के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि खासकर लड़कियों की कम उम्र में शादी हो रही है या उन पर घर के कामकाज की जिम्मेदारी बढ़ रही है। इससे लड़कियों की पढ़ाई हमेशा के लिए टूट रही है या फिर वे पढ़ाई में कमजोर हो रही हैं। आमतौर पर ऐसा निम्न मध्यमवर्गीय और गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों में देखने को मिल रहा है। इसलिए स्कूलों को खोलने के लिए होने वाली चर्चा में इन स्थितियों को भी ध्यान में रखा जाए।
विनय पी सहस्रबुद्घे के नेतृत्व में इस सप्ताह शिक्षा, महिला, बच्चे, युवा और खेल संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की कि स्कूल लकडाउन के कारण बच्घ्चों में सीखने की कमी को दूर करने की योजना के साथ-साथ अनलाइन और अफलाइन निर्देशों और परीक्षाओं की समीक्षा और स्कूलों को फिर से खोलने की योजना बना रहे हैं। पैनल ने सिफारिशों में कहा कि मामले की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और स्कूलों को खोलने के लिए संतुलित तर्कपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

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