उत्तराखंड

बाघ ही नहीं गुलदार भी बड़े पैमाने पर ले रहे लोगों की जान, सीएम से मिलेगा शिकारियों का पैनल

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देहरादून । उत्तराखंड वन विभाग ने प्रदेश में वर्ष 2006 से चली आ रही शिकारियों के पैनल की व्यवस्था को खत्म कर दिया है। इसके लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की गाइडलाइन का हवाला दिया जा रहा है। जबकि, एनटीसीए की ओर से यह गाइडलाइन वर्ष 2019 में जारी की गई थी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि तीन साल बाद अचानक अब एनटीसीए की गाइडलाइन की याद वन विभाग को क्यों आई है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाली केंद्रीय संस्था है, जिसमें बाघों के संबंध में नियम-कानून लागू होते हैं। जबकि, उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष के बीच केवल बाघ ही नहीं गुलदार भी एक बड़ी समस्या हैं। ये आए दिन निवासियों पर घात लगाकर हमला करते रहते हैं।
वन विभाग का कहना है कि अब वह इस काम के लिए वनकर्मियों को ट्रेंड करेगा और पुलिस बल की भी मदद लेगा। दूसरी तरफ जानकारों का कहना है कि यह पुलिसिंग से बिल्कुल अलग तरह का मामला है। इसकी विशेषज्ञता हासिल करने में वर्षों लग जाते हैं। ऐसे में पुलिस कैसे आदमखोर बाघों की पहचान कर उनका शिकार या ट्रैंकुलाइज करने में मदद कर पाएगी। छोटी-सी चूक आदमखोर को छोड़ किसी दूसरे वन्यजीव को नुकसान पहुंचा सकती है।
सामाजिक कार्यकर्ता अनु पंत ने भी वन विभाग के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि वाइल्डलाइफ राज्य का विषय है, इसमें केंद्र की एजेंसी गाइडलाइन तो जारी कर सकती है, लेकिन उन्हें अपने यहां की परिस्थितियों को देखते हुए कैसे लागू करना है, यह राज्य को तय करना चाहिए। वहीं, इस मामले में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ समीर सिन्हा का कहना है कि यह कार्रवाई एनटीसीए की स्पष्ट गाइडलाइन के अनुरूप की गई है। भविष्य में यदि विभाग को विशेषज्ञों की जरूरत पड़ती है तो इसके भी विकल्प खुले हैं।
’लाइसेंसी शिकारी आशीष दास गुप्ता, राजीव सोलोमन, हरनिहाल सिंह सिद्धू, अली बिन हादी, राव तल्हा ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि उत्तराखंड में लाइसेंसी शिकारियों ने कई ऑपरेशन चलाकर हजारों लोगों की जान बचाई है। कई मौकों पर जब वन विभाग ने हथियार डाल दिए, तब शिकारियों का यही पैनल मनुष्यों और आदमखोर वन्यजीवों के बीच खड़ा हुआ है। लाइसेंसी शिकारी सिर्फ गोली मारने के लिए नहीं होते, वह समस्या की तह तक जाते हैं और फिर उसका निदान करते हैं।
शिकारियों के पैनल पर सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं होता है। वरिष्ठ वन्य जीव विशेषज्ञ और शिकारी आशीष दास गुप्ता का कहना है कि शिकारी वन विभाग के अनुरोध पर अपने खर्च पर स्पेशल ऑपरेशन पर जाते हैं, जहां वन विभाग की ओर से इसके लिए उन्हें कोई रकम या प्रोत्साहन राशि नहीं दी जाती है। वह अपनी जान पर खेलकर ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।
शिकारियों के संयुक्त पैनल ने बताया कि उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखकर मिलने का समय मांगा है, लेकिन अभी तक वहां से कोई जवाब नहीं आया है। वह बुलावे का इंतजार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री से मिलकर पूरे मामले में अपनी बात रखेंगे।

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