पर्यटन नगरी के बाईपास में रोड़ा बनी वनभूमि
अल्मोड़ा। कैंट की वन भूमि के महज आठ सौ मीटर टुकड़े ने पिछले चार दशकों से पर्यटन नगरी के बाईपास मार्ग की राह रोकी है। बाईपास के मिलान स्थल पर वन भूमि आड़े आने से लोअर सड़क का लाभ नहीं मिल रहा है। बाईपास के अभाव में नगर की यातायात व्यवस्था भी पटरी से उतरी हुई है। कैंट बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष मोहन नेगी ने डीएम को ज्ञापन भेजकर वन भूमि निस्तारण संबंधी कार्रवाई करने की मांग की है। नगर की यातायात व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से करीब चार दशक पहले नगर के निचले हिस्से में बाईपास मार्ग को स्वीकृत मिली। इसके बाद जल्द ही रायस्टेट के पास से ग्राम खनिया, इंदिरा बस्ती, राजपुर होते हुए किलकोट गांव तक करीब साढ़े तीन किमी सड़क बनकर तैयार भी हो गई। बाईपास का पीजी कालेज के पास जालली-मासी मोटर मार्ग में मिलान होना प्रस्तावित है। लेकिन किलकोट गांव से आगे बाईपास के मिलान स्थल पर कैंट की वन भूमि का पेंच फंस गया। वन भूमि के इस आठ सौ मीटर हिस्से की क्लीयरेंस के लिए कई स्तरों से प्रयास किए जा चुके हैं। कैंट बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष मोहन नेगी ने कहा कि इसके लिए लोनिवि, छावनी परिषद तथा रक्षा संपदा विभाग बरेली को कई पत्र भेजे जा चुके हैं। लेकिन रक्षा भूमि व वन भूमि होने से उक्त मामला अर्से से लंबित है। जबकि भूमि की क्लीयरेंस के लिए रक्षा संपदा विभाग बरेली द्वारा भी रक्षा मंत्रालय को पत्र प्रेषित किए जा चुके हैं, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। नेगी ने जिलाधिकारी से समस्या के समाधान के लिए विभागों को पत्र प्रेषित करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि बाईपास मार्ग के अस्तित्व में नहीं आने से नगर में यातायात व्यवस्था बिगड़ती जा रही है। वाहनों के अत्यधिक दबाव होने से अव्यवस्था व जाम की समस्या आम हो गई है।