उत्तराखंड

गोरी गंगा नदी की घाटी में तेजी से घट रहा स्थायी हिमक्षेत्र

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नैनीताल। पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी तहसील में बहने वाली नदी गोरी गंगा की घाटी में तेजी से स्थायी हिमक्षेत्र घट रहा है। इसी रफ्तार से स्नोलाइन भी ऊपर की ओर शिफ्ट हो रही है। कुमाऊं विवि के ताजा शोध में यह परिणाम सामने आए हैं। यदि इसी तेजी से स्नो कवर में गिरावट होती रही तो 2040 तक गोरी गंगा वाटरशेड में स्थायी हिम खत्म हो जाएगा।
पिछले 26 वर्षों की गतिविधियों पर किए गए शोध में जलवायु परिवर्तन का खासा असर देखने को मिला है। साथ ही मानवीय क्रियाएं भी इसे प्रभावित कर रही हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के सहायक प्राध्यापक ड़ देवेंद्र सिंह परिहार ने गोरी गंगा वैली में हिम और वनस्पति पर तापमान के असर को लेकर शोध किया। उनके शोध का विषय स्पेशल टेंपोरल चेंज अफ स्नो एंड वेजिटेशन कवर इन गोरी गंगा वाटर शेड, कुमाऊं हिमालया बाइ यूजिंग रिमोट सेसिंग एंड जीआइएस टेक्निक्स रहा। गोरी गंगा क्षेत्र के 2191़93 वर्ग किमी में सैटेलाइट फोटोग्राफी एवं फील्ड सर्वे के माध्यम से अध्ययन किया गया। शोध में यह पता चला कि 1990 में जहां 30 फीसदी हिस्सा बर्फ से ढका था। यह वर्ष 2016 में यह घटकर मात्र 15 फीसदी रह गया है। सन 1930 से 1990 तक कुल 104़64 वर्ग किमी क्षेत्रफल करीब 11़63 वर्ग किमी प्रतिवर्ष की दर से घटा है। वर्ष 1990 से 2016 तक कुल 348़43 वर्ग किमी, प्रति वर्ष 13़40 वर्ग किमी क्षेत्रफल की दर से कम हुआ है।
विशेषज्ञों ने इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर माना है। विशेषज्ञों के मुताबिक आने वाले वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव इसी दर से बढ़ता रहा तो 2040 तक गोरी गंगा वाटरशेड में स्थाई हिम खत्म हो जाएगा।
स्नोलाइन लगातार हो रही ऊंचाई पर शिफ्ट
शोधकर्ता के अनुसार बर्फ आच्छादित क्षेत्र घटने के साथ ही क्षेत्र में स्थायी हिम रेखा भी ऊंचाई की ओर स्थानांतरित हो रही है। 1990 में स्थायी हिम रेखा 4665़02 मीटर, 1999 में 4764़97 मीटर व 2016 में 5068़95 मीटर की औसत ऊंचाई में पाई गई। जोकि निरंतर ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रही है। वर्ष 1990 से 1999 तक कुल 99़95 मीटर स्थायी हिम रेखा 11़1 मीटर प्रतिवर्ष 1999 से 2016 तक 303़98 मीटर, 17़88 मीटर प्रतिवर्ष की दर से स्थानांतरित हुई है। वर्ष 1990 से 2016 तक 26 वर्षों में 403़93 मीटर हिम रेखा स्थानांतरित हुई है। जिसकी औसत दर 15़33 मीटर प्रतिवर्ष रही है।
शोधार्थी की बातरू ड़ डीएस परिहार ने बताया कि यह हिमालयी क्षेत्र होने के कारण बेहद संवेदनशील है, जोकि भौतिक व भूगर्भिक कारकों का परिणाम भी है। यहां पर सक्रिय मानवीय अनियोजित विकास कार्यक्रम या मनमाने तरीके से प्रातिक संसाधनों का दोहन इस संवेदनशीलता पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। जिनका प्रभाव यहां की षि व वानिकी पर पड़ रहा है। गोरी गंगा क्षेत्र में मौसम संबंधी प्रातिक आपदाएं और मानव जनित आपदाओं की घटित होने की प्रवृत्ति में तेजी आई है। इसमें बादल फटना, त्वरित बाढ़, भू-स्खलन, बोल्डर गिरना शामिल है।

 

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