संयुक्त सचिव भर्ती मामले में केंद्र ने दिल्ली स्थानांतरित करने को दायर की याचिका
नैनीताल। केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव पद पर भर्ती मामले में हुए कथित घपले के मामले में आईएफएस संजीव चतुर्वेदी की याचिका की सुनवाई में नया मोड़ आ गया है। संजीव ने फरवरी में सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल की इलाहाबाद बेंच में याचिका दाखिल की थी। पिछले आठ माह से कैट में सुनवाई हो रही है। इसी बीच केंद्र सरकार ने अचानक 13 अक्टूबर इस मामले की सुनवाई दिल्ली स्थानांतरित करने करने के लिए दिल्ली स्थित कैट के चेयरमैन जस्टिस एल नरसिम्हन रेड्डी के समक्ष याचिका दायर की है। कैट चेयरमैन ने उत्तराखंड कैडर के आईएफएस व मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। दिलचस्प यह है कि जस्टिस रेड्डी ने अपने व संजीव के मध्य मुकदमों को देखते हुए संजीव द्वारा दाखिल मामलों से खुद को अलग कर लिया था।
दरअसल जुलाई 2018 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी करते हुए संजीव के मामले में जस्टिस रेड्डी द्वारा पारित प्रतिकूल निर्णय को रद कर दिया था।साथ ही केंद्र सरकार पर 25 हजार जुर्माना लगाया था।इस आदेश को बरकरार रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखते हुए जुर्माने की रकम बढ़ाकर 50 हजार कर दी थी। इसके बाद पिछले साल फरवरी में संजीव द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कैट चेयरमैन जस्टिस रेड्डी को नोटिस जारी किया था। इन परिस्थितियों को देखते हुए कानून के जानकारों का कहना है कि यह बहुत विचित्र स्थिति है कि कोई व्यक्ति एक साथ जज व वादी दोनों के रूप में हो।
इस साल फरवरी में आईएफएस संजीव की ओर से केंद्र सरकार द्वारा सीधी भर्ती से नियुक्त किये गए नौ संयुक्त सचिवों की नियुक्ति में घपले का आरोप लगाते हुए इलाहाबाद कैट में याचिका दायर की थी। इसका आधार केंद्र के कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय के उन अधिकारियों की फाइल नोटिंग को बनाया था, जिसमें उन्होंने साफ लिखा था कि इनमें से कई नियुक्तियां उन लोगों की हुई हैं, जो विज्ञापन में प्रकाशित मूलभूत अहर्ता पूरी नहीं करते। इसमें अभिनेता मनोज बाजपेयी के छोटे भाई का प्रकरण भी शामिल था। कुल 21 पदों में से दस पदों पर नियुक्ति हुई थी।
वर्चुअल सुनवाई में केस ट्रांसफर का औचित्य नहीं
इलाहाबाद कैट ने फरवरी में दाखिल याचिका पर सात अगस्त को सुनवाई की तो केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने सरकार से निर्देश लेने के लिए एक माह का समय मांगा था। दोबारा सुनवाई होने पर केंद्र के अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि याचिका की पोषणीयता को लेकर आपत्ति दाखिल की जाएगी। इसके बाद कोर्ट ने पोषणीयता के संबंध में फैसला लेने के लिए 22 सितंबर की तिथि नियत की मगर जवाब दाखिल नहीं करने पर तिथि आगे बढ़ाकर 15 अक्टूबर नियत की। इसी बीच केंद्र ने मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने को याचिका डालकर मामले को 18 नवंबर तक स्थगित करा लिया। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संदीप तिवारी का कहना है कि जब अदालतों में वर्चुअल सुनवाई हो रही है तो केस ट्रांसफर के लिए याचिका का औचित्य नहीं है।