शिवालिक एलिदेंट रिजर्व के शासनादेश पर भी रोक, हाई कोर्ट ने केंद्र, राज्य व अन्य पक्षकारों से मांगा जवाब
नैनीताल । हाई कोर्ट ने शिवालिक एलिदेंट रिजर्व के शासनादेश पर भी रोक लगा दी है। कोर्ट इस मामले में राज्घ्य वन्यजीव बोर्ड के आदेश पर भी पहले ही रोक लगा चुका है। अब केंद्र, राज्घ्य सरकार, जैव विविधता बोर्ड, स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
24 नवम्बर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिये शिवालिक एलिदेंट रिजर्व को डिनोटिफाई करने का निर्णय लिया गया था। इधर, देहरादून की एक्टिविस्ट रीनू पाल ने इस मामले में नई जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एलिदेंट रिजर्व घोषित करने के आदेश पर रोक लगा दी थी।
इस बीच आठ जनवरी को सरकार की ओर इसका बकायदा शासनादेश भी जारी कर दिया गया तो याचिकाकर्ता की ओर से प्रार्थना पत्र दाखिल कर इसको चुनौती दी गई। सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र सिंह चौहान व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की। सरकार की ओर से महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने कहा कि सरकार ने यह नीतिगत फैसला लिया है। जबकि याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि भारत सरकार की अनुमति के बिना यह निर्णय लिया गया। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद फिलहाल शासनादेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी।
बता दें कि प्रोजेक्ट एलिदेंट के तहत राच्य सरकार ने 2002 में शिवालिक एलिदेंट रिजर्व की अधिसूचना जारी की थी। जिसमें कुल 14 एलिदेंट करिडोर हैं। जिसका राच्य में क्षेत्रफल 5200 वर्ग किलोमीटर है।
महाकुंभ में भीड़ नियंत्रण व प्रबंधन का प्लान बताए सरकार : हाईकोर्ट
नैनीताल । हाई कोर्ट ने हरिद्वार महाकुंभ में भीड़ प्रबंधन व नियंत्रण तथा अन्य व्यवस्थाओं को लेकर सचिव स्वास्थ्य, मेलाधिकारी व डीएम को मंगलवार का बैठक करने के निर्देश दिए हैं। बैठक के निर्णय व कार्ययोजना पर आधारित रिपोर्ट 13 जनवरी को कोर्ट में पेश करनी होगी। इसके अलावा मुख्य सचिव, सचिव स्वास्थ्य, मेलाधिकारी व डीएम हरिद्वार से 13 को कोर्ट में सुनवाई के दौरान मौजूद रहने को भी कहा है। महाकुंभ को लेकर एसओपी, गाइडलाइन भी पेश करनी होगी।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र सिंह चौहान व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ में अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली, सच्चिदानंद डबराल व अन्य की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया था कि क्वारंटाइन सेंटर व कोविड केयर सेंटर बदहाल स्थिति में हैं। जबकि राज्य लौट रहे प्रवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल रही है। इसके बाद जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से क्वारंटाइन सेंटरों में सुविधाओं की कमी होने का उल्लेख किया गया था। जिसका संज्ञान लेते हुए डीएम की अध्यक्षता में हर जिले में कमेटी गठित कर दी गई हैं।
सोमवार को सुनवाई के दौरान जिलों की निगरानी कमेटी की ओर से सुझाव पेश किए गए। तीन जिलों की रिपोर्ट पेश नहीं हुई तो उन्हें भी 13 जनवरी को रिपोर्ट पेश करने को कहा गया। खंडपीठ ने महाकुंभ पर फोकस करते हुए राज्य सरकार को भीड़ नियंत्रण व प्रबंधन पर विस्तृत प्लान 13 जनवरी को अगली सुनवाई के दौरान पेश करने के निर्देश दिए। इस बार पहला महाकुंभ में पहला स्घ्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन है।
गंगा में पानी छोड़ने के मामले के प्रत्यावेदन पर तीन माह में निर्णय ले जल शक्ति मंत्रालय: हाई कोर्ट
नैनीताल । हाई कोर्ट ने गंगा नदी पर स्थापित जल विद्युत एवं सिंचाई परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर दायर की गयी याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर्यावरणविद भरत झुनझुनवाला को अपना प्रत्यावेदन जल शक्ति मंत्रालय को प्रस्तुत करने को कहा। साथ ही मंत्रालय को तीन माह के अन्दर मामला निस्तारित करने के निर्देश दिए।
प्रसिद्घ सामाजिक कार्यकर्ता भरत झुनझुनवाला ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि जल शक्ति मंत्रालय ने वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी एवं जल शक्ति मंत्रालय की तमाम रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए पर्यावरण प्रभाव की मात्रा को निर्धारित कर लिया है। सिंचाई परियोजनाओं द्वारा छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा निर्धारित करने में कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं लिया गया। इन परियोजनाओं से लगभग 50 फीसद पानी छोडने की बात कही गयी थी, जिससे गंगा में पाई जाने वाली मछलियां जीवित रहें और गंगा कि सांस्तिक अस्मिता बनी रहे। बावजूद इसके जल शक्ति मंत्रालय ने केवल 20 से 30 प्रतिशत पानी छोडने की अधिसूचना जारी की।
इस मात्रा को निर्धारित करने में जल शक्ति मंत्रालय ने सेंट्रल वाटर कमीशन की एक रिपोर्ट को आधार बनाया था, लेकिन सेंट्रल वाटर कमीशन की उस रिपोर्ट तैयार करने वाले दो सदस्य एके गुसाईं और शरद जैन पहले ही 50 प्रतिशत पानी छोडने की वकालत कर चुके थे। इसलिए वह रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं कही जा सकती। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र सिंह चौहान व न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की खंडपीठ में हुई।