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स्वतंत्रता सेनानियों की तलाकशुदा बेटियों को पेंशन मिलने की उम्मीद, सुको ने केंद्र से पूछा- कितना बढ़ेगा बोझ

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नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों की अविवाहित या विधवा बेटियों की तरह उनकी तलाकशुदा बेटियों को भी पारिवारिक पेंशन दी जाती है तो कितना वित्तीय बोझ आएगा।
जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने यह सवाल उस समय किया जब केंद्र ने कहा कि अगर अदालत ने स्वतंत्रता सेनानियों की अविवाहित या विधवा बेटियों के अलावा तलाकशुदा बेटियों को भी पारिवारिक पेंशन देने की अनुमति दी तो इससे वित्तीय बोझ बढ़ेगा और नए विवादों का पिटारा खुल जाएगा।
इस पर पीठ ने कहा, श्कितना वित्तीय बोझ पड़ेगा? तलाकशुदा बेटियों का मामला बहुत कम है और इस प्रकार न्यूनतम बोझ आएगा। देश में तलाकशुदा बेटियों की संख्या बहुत ही कम है।श्
शीर्ष अदालत इस मसले पर सुनवाई कर रही थी कि क्या तलाकशुदा बेटियां उसी तरह अपने स्वतंत्रता सेनानी पिता के पारिवारिक पेंशन की हकदार हैं जिस तरह से अविवाहित या विधवा बेटियां होती हैं। इस मामले में दो हाई कोर्ट ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं।
हिमाचल प्रदेश की रहने वाली तुलसी देवी (57) ने यह मामला शीर्ष अदालत के संज्ञान में लाया है। उन्होंने पिछले साल के हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसने इस आधार पर उन्हें स्वतंत्रता सेनानी पारिवारिक पेंशन देने की याचिका खारिज कर दी कि नियमों में ऐसा प्रावधान नहीं है।
तुलसी देवी की तरफ से पेश हुए वकील दुष्यंत पाराशर ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी की तलाकशुदा बेटी को विधवा या अविवाहित बेटी की तरह माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल के पिता ने देश के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया और आय का स्त्रोत नहीं होने के कारण वह सुगम जीवन नहीं व्यतीत कर पा रही हैं।
केंद्र की तरफ से पेश हुईं अतिरिक्त सलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने कहा कि अगर पारिवारिक पेंशन की अनुमति दी जाती है तो इससे वित्तीय बोझ बढ़ेगा और नए विवाद शुरू हो जाएंगे। उन्होंने इस मुद्दे पर और दस्तावेज पेश करने के लिए समय मांगा।
शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों को अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने की छूट दे दी और मामले का अंतिम निस्तारण उपयुक्त पीठ के समक्ष अप्रैल के दूसरे हफ्ते में करने के लिए सूचीबद्घ कर दिया।

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