प्रदेश सरकार ने की लैंड फ्रॉड समन्वय समिति की रिपोर्ट हाईकोर्ट के समक्ष पेश

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– उत्तराखंड में लैंड फ्रॉड समन्वयक समिति के पास 426 शिकायतें दर्ज
नैनीताल। राज्य सरकार ने लैंड फ्रॉड समन्वय समिति की रिपोर्ट हाईकोर्ट के समक्ष पेश की है। इसमें सरकार ने बताया कि समिति के पास अभी तक 426 शिकायतें आईं हैं, जिनकी सुनवाई भी की है। इस समिति का गठन 2014 में किया गया गया था। सरकार की इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य में भूमि की धोखाधड़ी एवं अवैध खरीद-फरोख्त पर अंकुश लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति रितु बाहरी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में हुई। पिछली तिथि पर कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि 2014 में जो लैंड फ्रॉड समवन्य समिति गठित की थी वो किस तरह से कार्य कर रही है? अभी तक कमेटी के पास लैंड फ्रॉड से संबंधित कितनी शिकायतें आई हैं, इसकी रिपोर्ट पेश करें। सरकार की ओर से मंगलवार को हाईकोर्ट में यह रिपोर्ट पेश की गई।
देहरादून निवासी सचिन शर्मा ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने 2014 में प्रदेश में लैंड फ्रॉड एवं जमीन से जुड़े मामलों में होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिए लैंड फ्रॉड समन्वय समिति का गठन किया था। इसके पदेन अध्यक्ष कुमाऊं एवं गढ़वाल मंडल के कमिश्नर हैं। समिति में दोनों पुलिस रेंज के डीआईजी/आईजी, अपर आयुक्त, संबंधित वन संरक्षक, संबंधित विकास प्राधिकरण प्रमुख, संबंधित क्षेत्र के नगर आयुक्त एवं एसआईटी के अधिकारी भी शामिल होते हैं। समिति का कार्य राज्य में हो रहे लैंड फ्रॉड एवं धोखाधड़ी के मामलो की जांच करना, जरूरत पड़ने पर उसकी एसआईटी से जांच कराकर मुकदमा दर्ज कराना था। लेकिन अब तक इस संबंध में जितनी भी शिकायतें पुलिस को मिल रही हैं, पुलिस खुद ही अपराध दर्ज कर रही है। जबकि, शासनादेश के अनुसार ऐसे मामलों को समिति के पास जांच के लिए भेजा जाना चाहिए था। जनहित याचिका में कहा गया था कि पुलिस को न तो जमीन से जुड़े मामलों के नियम पता हैं और न ही ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज करने का अधिकार है। ऐसे मामलों की केवल समिति ही जांच करेगी और यदि कोई फ्रॉड हुआ है तो समिति ही संबंधित थाने को मुकदमा दर्ज करने का आदेश भी देगी। याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में समिति का कार्य थाने से संचालित हो रहा है, जो शासनादेश में दिए निर्देशों के विरुद्ध है। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।

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