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मानसून सत्र में साफ होगा विपक्षी एकता का सही रंग रूप, चुनाव परिणाम भी बनेंगे कारक

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नई दिल्ली, एजेंसी। मानसून सत्र की शुरूआत 7 दिसंबर से हो रही है और दूसरे ही दिन गुजरात, हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ-साथ दिल्ली एमसीडी (डब्क्) के फैसले भी आने वाले हैं। इन तीनों चुनावों में समानता एक ही है- हर दल की लड़ाई भाजपा से है। भाजपा तीनों स्थानों पर सत्ता में है। जाहिर तौर पर भाजपा के लिए यह अहम है। छह महीने पहले जिस तरह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में दोबारा सत्ता में आकर इतिहास रचा था, वैसा हुआ तो विपक्ष का नैतिक बल थोड़ा और कमजोर होगा। अगर स्थिति बदली तो विपक्ष उत्साहित तो होगा लेकिन विपक्षी एकता में खिंचाव भी तेज हो सकता है।
मानसून सत्र में विपक्षी एकजुटता को लेकर चल रही कवायद का सही रंग रूप दिख सकता है। हिमाचल प्रदेश में लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है। गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के साथ साथ तीसरा खिलाड़ी आप है तो दिल्ली में मुख्य प्रतिद्वंद्विता भाजपा और आप के बीच है। यूं तो कांग्रेस और आप दोनों विपक्ष में है लेकिन इनके बीच आपसी खटास किस स्तर पर है यह सार्वजनिक है। गुजरात में आप कुछ सीटें पाने या छह फीसद वोट पाने में कामयाब हो जाती है तो उसे भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा होगा।
विपक्ष के बीच कांग्रेस, बसपा और माकपा को छोड़ बाकी सभी क्षेत्रीय दल हैं। यानी पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद विपक्ष में जो खुद को आगे करने की जो होड़ शुरू हुई थी वह एक कदम और आगे बढ़ती दिख सकती है। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की लगातार तीसरी जीत के बाद कुछ दिनों तक केंद्र में भी एकजुटता का नारा दिया गया था लेकिन उसके साथ ही यह संदेश देने की भी कोशिश शुरू हो गई थी कि तृणमूल किसी का नेतृत्व मानने को तैयार नहीं है। यह रुख राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में मुखर होकर दिखा था।
दो महीने पहले राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरूआत की थी तो कुछ विपक्षी साथियों में असहजता भी दिखी थी। अब जबकि यात्रा महाराष्ट्र में है तो वीर सावरकर पर राहुल के बयानों को लेकर महाविकास अघाड़ी में खिंचाव पैदा हो गया है। हिमाचल में अगर कांग्रेस की किस्मत खुली तो पार्टी दूसरे क्षेत्रीय दलों के दबाव से और भी बाहर आती दिखेगी। यानी फिलहाल विपक्ष ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां हर कोई खुद को मजबूत करने की जुगत में है। ऐसी स्थिति में मानसून सत्र की हर गतिविधि विपक्ष की नब्ज का संदेश देती दिख सकती है।
मालूम हो कि अगले साल मार्च अप्रैल में कर्नाटक जैसे अहम राज्य में चुनाव होने हैं और वहां भी आम आदमी पार्टी मैदान में होगी। तो पिछली बार सरकार गठन में कांग्रेस का साथ देने वाले जदयू पर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव डोरा डाले बैठे हैं। राव केंद्रीय स्तर पर भी परोक्ष रूप से खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं।

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