उत्तराखंड में इस बार छूट जाएगा जंगल में आग लगने की घटनाओं का रिकार्ड!
नैनीताल। उत्तराखंड में इस फायर सीजन में पीक माह मई के पहले ही बेतहाशा जंगल जल चुके हैं। इस साल मार्च और अप्रैल में ही उत्तराखंड में 3031़ 04 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गए। फारेस्ट सीजन का अभी आधा समय ही बीता फिर भी जंगल में आग लगने की 1,890 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। आग की इन घटनाओं में 79़36 लाख रुपए का वन महकमे को नुकसान हुआ है। यह हाल मई का पीक सीजन शुरू होने के पहले है।
2016 में जंगल की आग से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। उस साल प्रदेश में 4000 हेक्टेयर से जंगल जलकर राख हो गए थे। वहीं इस बार पीक सीजन शुरू होने से पहले तीन हजार हेक्टेयर से अधिक जंगल जल चुके हैं। विशेषज्ञों को डर है कि जिस दर से जंगल जल रहे हैं कहीं 2016 का रिकार्ड टूट न जाए।
मंगलवार को जंगल में आग लगने दस घटनाएं सामने आईं। वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक आग से सर्वाधिक प्रभावित कुमाऊं के जंगल हुए हैं। वहीं कुमाऊं मंडल में आग से सर्वाधिक प्रभावित जिला अल्मोड़ा है। जिले में अब तक 793 हेक्टेयर जंगल आग में जल चुके हैं। पिथौरागढ़ जिले में भी इस साल आग लगने से 303 हेक्टेयर वन क्षेत्र को अब तक नुकसान हुआ है।
कुमाऊं की अपेक्षा गढ़वाल के जंगल कम जले हैं। गढ़वाल मंडल में अब तक 1154़8 हेक्टेयर जंगल जले हैं। जिनमें सर्वाधिक प्रभावित जिले पौड़ी में 622़65 हेक्टेयर जंगल को नुकसान पहुंच है जबकि उत्तरकाशी में 180़5 हेक्टेयर जंगल को नुकसान हुआ है। इसके अलावा वन्यजीवों के लिए संरक्षित वन प्रभाग भी प्रभावित हुए हैं। जिनमें इस वर्ष 87 आग की घटनाओं में अब तक 367 हेक्टेयर भूमि को नुकसान हुआ है।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं। वन अधिकारियों ने दोहराया कि आग को नियंत्रण में रखने के लिए सभी विभागों के साथ-साथ स्थानीय लोगों के सहयोग की आवश्यकता है। वहीं जगल में आग लगाने की हिमाकत करने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी।