विधायकों का विद्रोह पांच राज्यों के चुनावों के बाद होगा त्रिवेन्द्र सिंह रावत के भाग्य का फैसला, उत्तराखंड में पार्टी की वापसी पहला लक्ष्य
नई दिल्ली। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के भाग्य का फैसला पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों के बाद लिया जा सकता है। पार्टी इस बीच कोई बदलाव कर चुनावी राज्यों में नकारात्मक संदेश देने से बचना चाहती है। लेकिन सूत्रों की मानें तो अगले विधानसभा चुनाव से पूर्व राज्य में नेतृत्व परिवर्तन जरूरी हो गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराज पार्टी के एक दर्जन विधायकों ने पार्टी आलाकमान तक यह सन्देश पहुंचा दिया है कि अगर रावत को मुख्यमंत्री के रूप में बरकरार रखा जाता है, तो अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी ने पिछले विधानसभा में इस पहाड़ी राज्य में 70 सीटों में से रिकर्ड 57 सीटें हासिल की थीं।
विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाला
त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यशैली से नाराज लगभग एक दर्जन विधायकों ने दिल्ली में डेरा डाल रखा है। इन विधायकों ने छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के प्रभारी रमन सिंह को यह बताया है कि अगर नेतृत्व में परिवर्तन नहीं किया गया तो पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। जानकारी के मुताबिक रमन सिंह और सहप्रभारी दुष्यंत गौतम ने नाराज विधायकों की यह बात पार्टी आलाकमान तक पहुंचा दिया है। मंगलवार को पार्टी के शीर्ष स्तर पर ठोस निर्णय लिया जा सकता है। लेकिन नेतृत्व परिवर्तन चुनाव खत्म होने के बाद ही किये जाने की उम्मीद है। तब तक नाराज विधायकों को इंतजार करने के लिए कहा जा सकता है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाराज गुट के एक नेता ने अमर उजाला को बताया कि रावत पार्टी के विधायकों की कभी भी पहली पसंद नहीं रहे थे। लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद जब पार्टी विधायकों की बैठक में इस बात की जानकारी दी गई कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को केन्द्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री के रूप में आगे बढ़ाना चाहता है, तो किसी ने विरोध नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद का ध्यान रखते हुए रावत से असंतुष्ट नेताओं ने चुप्पी साध ली थी।
असंतुष्ट नेताओं को इस बात का भरोसा था कि मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद रावत सभी को साथ लेकर चलेंगे और उनका सम्मान करेंगे। लेकिन असंतुष्ट नेताओं के मुताबिक त्रिवेंद्र सिंह रावत के काम करने का तरीका ठीक इसके उलट निकला। उनके कामकाज का तरीका ऐसा रहा कि कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी बढ़ती चली गयी और वे अधिकारियों के बीच घिर गये। पूरी सरकार उन्हीं के भरोसे चलने लगी। अपना काम न करवा पाए कार्यकर्ताओं की नाराजगी बढ़ने लगी, जो अब विद्रोह जैसी स्थिति में पहुंच गई है। अगर अब दखलंदाजी नहीं की गई तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
ऐसा नहीं है कि चुनाव करीब आये हैं और इस कारण अब नाराज विधायकों ने मोर्चा खोल दिया है, इसके पहले भी कई बार केन्द्रीय नेतृत्व से त्रिवेंद्र सिंह रावत के व्यवहार को लेकर शिकायतें की गईं। लेकिन उन्हें नजरंदाज किया जाता रहा। लेकिन अब विधायकों को लग रहा है कि अगर अब त्रिवेंद्र सिंह रावत को न हटाया गया तो अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है, लिहाजा नाराज विधायक अब किसी भी कीमत पर शांत होने को तैयार नहीं हैं।
दरअसल, राज्य के विधानसभा चुनाव अगले साल की शुरुआत में होने तय हैं। इस बार उत्तराखंड के चुनाव में आम आदमी पार्टी की भी एंट्री हो रही है। आम आदमी पार्टी अभी से त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। इसी बीच त्रिवेंद्र सिंह रावत के ऊपर भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले की सुनवाई अदालत में चल रही है। इस मामले में 10 मार्च को भी सुनवाई होनी है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसी परिस्थिति में अगर रावत को न हटाया गया तो पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है।