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जब जल उठा था मेरठ का मलियाना, नरसंहार के 36 साल बाद भी नहीं मिला इंसाफ; खाकी पर लगे दाग की कहानी

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नई दिल्ली, एजेंसी। साल 1987 का वो काला दिन जब मेरठ में भयानक संप्रदायिक दंगों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। दरअसल, मेरठ में 22 मई को इस कत्लेआम की शुरुआत उस समय हुई, जब हाशिमपुरा में 42 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
इसके एक दिन बाद ही मेरठ का बाहरी गांव मलियाना मानो आग की लपटों से घिर गया। लोगों के सामने उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया। कई लोगों को जिंदा गोली से भून दिया गया। मेरठ में हुए इस दंगे और नरसंहार के 36 साल बाद जब आरोपियों को लेकर फैसला आया तो कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया और पीड़ितों के जख्म फिर से ताजा कर दिए।
मेरठ में हुए नरसंहार की कहानी का बीज उसी दिन पड़ गया था, जब 1986 में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने बाबरी ढांचे के दरवाजे खोलने का आदेश दिया। इस फैसले से पूरे देश की राजनीति मानो हिल गई और यहीं से यूपी का माहौल बिगड़ने लगा। फैसले के बाद राज्य में छिटपुट दंगे होने लगे।
केंद्र के इस फैसले के एक साल बाद मेरठ में तेजी से दंगों की घटनाएं होने लगी। मेरठ में 14 अप्रैल को शब-ए-बारात के दिन शुरू हुए दंगे में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के 12 लोग मारे गए। धार्मिक उन्माद की घटनाएं अपने चरम पर आ पहुंची। मेरठ के कई इलाकों में लोगों के घर, दुकानों को जला दिया गया। हत्या और लूट की वारदात आम होने लगी। हालात बेकाबू होते देख प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने शहर में कफ्र्यू लगाया और सेना के जवानों ने मोर्चा संभाल लिया और स्थिति काबू कर ली गई।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इन दंगों में 174 लोग मारे गए और 171 लोग घायल हुए। इसी के साथ शहर को करोड़ों का आर्थिक नुकसान हुआ। बता दें कि इस दंगों के दौरान केंद्र में राजीव गांधी और प्रदेश में भी कांग्रेस के वीर बहादुर सीएम थे।
शब-ए-बारात के एक महीने बाद मई में फिर से दंगे हुए, लेकिन दंगों पर काबू पाने के लिए मेरठ के कई इलाकों में पुलिस, सेना, प्रोविंशियल आ‌म्र्ड कांस्टेबुलरी (पीएसी) को तैनात कर दिया गया। इस बीच, आरोप है कि 19 मई को पीएसी और पुलिस के सेना ने हाशिमपुरा मोहल्ले में जांच अभियान चलाया। इस सर्च अभियान में भारी मात्रा में असला-बारूद मिले। इसके बाद सैंकड़ों लोगों को पकड़ा गया और सड़क पर लाइन से खड़ा कर दिया गया।
इनमें से किशोरों, युवकों और बुजुर्गों समेत कुछ 50 लोगों को ट्रक में भरकर पुलिस लाइन लेजाआ गया। आरोप है कि इस बीच दिल्ली रोड पर जैसे ही ट्रक मुरादनगर गंग नहर पहुंचा, लोगों को उतारकर पीएसी के जवानों ने गोली मारकर शवों को गंगनहगर में फेंक दिया। 42 लोगों को चुन-चुन कर मार दिया गया और 8 लोग बचकर भाग निकले। इन बचे लोगों में से एक पीड़ित बाबूदीन ने तब गाजियाबाद के लिंक रोड थाने पहुंचकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई। रिपोर्ट के बाद पूरे देश में हाशिमपुरा नरसंहार चर्चा का विषय बन गया।
हाशिमपुरा नरसंहार कांड के दर्द से लोग अभी बाहर भी नहीं आए थे कि अगले 24 घंटे में हाशिमपुरा से 7 किमी दूर मलियाना आग की लपटों से घिर गया। मलियाना में हिंदू-मुसलमान दोनों समुदाय के लोग रहते थे। 23 मई को मलियाना में संप्रदायिक हिंसा भड़क उठी। यहां ऐसे दंगे हुए कि 106 घरों को जला दिया गया, कई दुकानें तहसनहस हो गई।
कई लोगों का दावा है कि पीएसी के सामने ही लोगों को आग के हवाले कर दिया गया। आरोप यह भी है कि पीएसी के जवान मलियाना की सड़कों पर हथियार लेकर घूमते हुए एलान कर रहे थे कि वो हाशिमपुरा की तरह ही नरसंहार करेंगे। इसके बाद गोलीबारी शुरू भी हो गई और 68 लोग ढेर कर दिए गए। मलियाना में ज्यादातर मारे गए लोग मुसलमान ही थे।
हाशिमपुरा मामले में साल 2018 को कोर्ट द्वारा 16 पीएसी के जवानों को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन मलियाना में जहां 68 लोग मारे गए थे, यहां सभी आरोपी बरी कर दिए गए। मलियाना नरसंहार मामले में कोर्ट में 36 सालों में 800 से ज्यादा बार सुनवाई हुई, लेकिन सजा किसी को नहीं हुई।
दरअसल, इलाके के निवासी याकूब की ओर से दर्ज मामले में 94 लोगों को नामजद किया गया था और 74 लोगों को गवाह बनाया गया था। इन गवाहों में से कुछ का देहांत हो गया और कुछ शहर छोड़ कर चले गए तो कुछ अपनी गवाही से ही मुकर गए। आरोप था कि याकूब के सामने पुलिस ने मतदाता सूची रख फर्जी नामजदगी की थी, जिसके चलते कोर्ट ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया।

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