15 साल में गंगोत्री ग्लेशियर का 0़23 किलोमीटर हिस्सा खत्म
नैनीताल। 2001 से 2016 तक 15 सालों में गंगोत्री ग्लेशियर ने करीब 0़23 वर्ग किमी क्षेत्र कम हो गया है। वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति के कारण ग्लेशियर पिघल रहा है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण 1870 से इसके पीटे हटने की निगरानी कर रहा है। इसके पीछे हटने की दर 60 और 70 के दशक में तेज हो गई थी। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्घि होने से हिमालय के अधिकतर हिमनद पीटे हट रहे हैं।
तापमान में वृद्घि की दर वैश्विक औसत से काफी अधिक है। हाल के दशकों में बर्फबारी से भी ज्यादा बारिश हुई है। संयुक्त राष्ट्र संघ के इंटर गवर्नमेंटल पैनल फर क्लाइमेट चेंज की हर तीन साल में जारी फरवरी की रिपोर्ट में पहली बार पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन से आए बदलावों की विस्तृत चर्चा की गई है।
तीन सौ पेज की रिपोर्ट में कहा है कि हिमालय क्षेत्र का तापमान 0़2 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है, जो वैश्विक दर से कहीं ज्यादा है। 2001 से 2020 के दशक तक यह तापमान बढ़ोतरी सर्वाधिक 0़3 डिग्री सेल्सियस रही है। 2021 से 2031 के दशक में यह दर और तेज होगी। शताब्दी के अंत तक हिमालयी क्षेत्रों का तापमान 0़7 डिग्री तक जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध कर रहे कुमाऊं विवि भूगोल विभाग के सीनियर प्रोफेसर पीसी तिवारी के अनुसार आइपीसीसी की रिपोर्ट में उनके तीन शोध पत्र भी शामिल हैं। वह देश के इकलौते शोधकर्ता हैं, जिनके शोधपत्रों को अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में स्थान मिला है। रिपोर्ट के अनुसार पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन की वजह से बादल फटने व अतिवृष्टि की घटनाएं तीन गुना बढ़ जाएगा। सितंबर से अक्टूबर भयंकर सूखा पड़ेगा। पानी की कमी से खेती चौपट होगी।
वैश्विक स्तर पर शोध के निष्कर्ष पर आधारित रिपोर्ट के माउंटेन वाले खंड में यह भी कहा है कि अधिकाधिक वनाच्छादित क्षेत्रों को बढ़ाने, जल संचय, जल संरक्षण, खेती के अलावा आजीविका के अन्य साधनों पर फोकस करने, जल संरक्षण व वनीकरण को आंदोलन बनाने से ही इस चुनौती का सामना किया जा सकता है।
प्रो तिवारी के अनुसार रिपोर्ट में पहाड़ों से पलायन की गति और तेज होने का उल्लेख किया है। साफ किया है कि पीने व सिंचाई के लिए पानी नहीं होने, जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक, प्रातिक आपदाओं में वृद्घि, खेतीबाड़ी चौपट होने से पलायन बढ़ना तय है। परंपरागत फसलों का दायरा भी सिमटता जाएगा। जिससे पहाड़ों पर पलायन बढेगा।
प्रो तिवारी के अनुसार जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान अल्मोड़ा, वाडिया इंस्टीट्यूट व अन्य शोध संस्थान साफ कह चुके हैं कि गंगोत्री ग्लेशियर सालाना 18 मीटर की दर से सिकुड़ रहा है। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने संसद में पेश लिखित जवाब में स्वीकार किया है कि 2001-2016 तक 15 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर ने लगभग 0़23 वर्ग किमी क्षेत्र खो दिया है। वायुमंडल में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति के कारण ग्लेशियर पिघल रहा है। ब्लैक कार्बन एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है, जो वातावरण में रिलीज होने के बाद हफ्तों तक रहता है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण 1870 से गंगोत्री ग्लेशियर पीटे हटने की निगरानी कर रहा है। इसके पीटे हटने की दर 60 और 70 के दशक में तेज हो गई थी। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्घि के कारण हिमालय के अधिकांश हिमनद पीटे हट रहे हैं। हाल के दशकों में बर्फबारी से भी ज्यादा बारिश हुई है। इसलिए, काराकोरम में कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश हिमनद प्रभावित हैं।
सेंटर फर क्लाइमेट चेंज के एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रोफेसर अनिल कुलकर्णी के शोध निष्कर्ष के अनुसार हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में हिमनदों के नुकसान की अलग अलग वजह है। 2020 में हिमालय और तिब्बती पठार ने 0़2 डिग्री की वार्मिंग दर्ज की है। हिंदू कुश हिमालय में 1951-2014 से तापमान में लगभग 1़3 डिग्री सेल्सियस की वृद्घि दर्ज की, जबकि 1901-2018 से देश में औसत तापमान में लगभग 0़7 डिग्री सेल्सियस की वृद्घि दर्ज की गई। भारत सरकार के अनुसार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग इस समस्या के समाधान तलाशने को नेशनल मिशन फर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम (एनएमएसएचई) और नेशनल मिशन अन स्ट्रेटेजिक नलेज फर क्लाइमेट चेंज (एनएमएसकेसीसी) को नेशनल एक्शन प्लान अन क्लाइमेट चेंज लागू कर रहा है।