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कोरोना काल में डीजल शतक के पार

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नई दिल्ली , एजेंसी। देश में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान टू रहे हैं। कर्नाटक समेत देश के सात राज्यों में पेट्रोल 100 रुपये के पार पहुंच गया है तो अब डीजल भी इसी राह पर चल रहा है। राजस्थान में तो यह 100 रुपये के पार पहुंच चुका है। केंद्र का कहना है कि कच्चे तेल के दाम बढ़ने से देश में ईंधन के दाम बढ़ रहे हैं। रहा सवाल करों में कमी कर जनता को राहत देने का, तो उसके लिए फिलहाल न तो केंद्र सरकार और न राज्य सरकारें तैयार हैं।
महंगे ईंधन से व कोरोना के चलते काम-धंधे ठप होने से बेहाल जनता का आक्रोश भी अब छलकने लगा है। सोशल मीडिया में तंज किया जा रहा है कि हर तीन माह में चुनाव होते रहें, तो देश में नहीं बढ़ेंगे ईंधन के दाम। यह बात इसलिए कही गई है कि पांच राज्यों के चुनाव के दौरान भी मार्च-अप्रैल में दाम नहीं बढ़े थे।
बात करें पेट्रोल की तो यह चार मई के बाद से इसमें 5़80 रुपयेप्रति लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है। पांच राज्यों के नतीजे दो मई को आए थे और दो दिन बाद दाम बढ़ने लगे थे। जबकि चुनाव के दो माहों में कच्चा तेल महंगा होने पर भी दाम नहीं बढ़ाए गए थे।
पंपों पर ग्राहकों को बेचे जाने वाले तेल की कीमत ट्रेड पैरिटी प्राइसिंग (टीपीपी) फर्मूले से तय होती है। इसका 80:20 का अनुपात रहता है। यानी देश में बेचे जाने वाले पेट्रोल-डीजल के मूल्य का 80 प्रतिशत हिस्सा विश्व बाजार में वर्तमान में बेचे जा रहे ईंधन के दामों से जुड़ा होता है। शेष 20 फीसदी हिस्सा अनुमानित मूल्य के अनुसार जोड़ा जाता है। जानकारों का कहना है कि भारत में कच्चे तेल के शोधन और मार्केटिंग की लागत का पंपों पर ईंधन के असल दामों से कोई लेना-देना नहीं है।
मोटे तौर पर केंद्र व राज्य (दिल्ली) 180 फीसदी तक कर वसूलते हैं, जबकि डीजल पर 141 फीसदी कर वसूला जाता है। आधार मूल्य पर कर व अन्य तमाम खर्च मिलाकर दाम आसमान पर पहुंच रहे हैं। रिजर्व बैंक ने बीते दिनों सरकार को कर घटाने का सुझाव दिया था, लेकिन न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार इसके लिए तैयार है।
एक अन्य मुख्य मुद्दा यह है कि पेट्रोल व डीजल पर मनमाने कर इसलिए लगाए जा रहे हैं कि यह जीएसटी के दायरे से बाहर है। केंद्र व राज्य सरकारों ने इसे दुधारू समझ रखा है, इसलिए वे इस पर सर्वाधिक कर वसूली कर जनता को निचोड़ते रहते हैं।
उधर, आर्थिक दृष्टि से देखें तो एक बुरी खबर यह है कि देश में ईंधन की मांग मई में घटकर नौ महीने के निचले स्तर पर आ गई है। इससे देश में लकडाउन व कोरोना महामारी के कारण ठप हुई आर्थिक गतिविधियों का बुरा असर साफ नजर आ रहा है। कारोबारी दृष्टि से ईंधन की खपत कम होना अच्छा नहीं माना जाता है।
पेट्रोलियम मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) के आंकड़े के अनुसार ईंधन मांग मई में 1़5 प्रतिशत घटकर 1़51 करोड़ टन रही। यह स्थिति तब है जब मई 2020 में तुलनात्मक आधार पहले से ही कमजोर था। पिछले महीने से यदि तुलना की जाए तो यह 11़3 प्रतिशत कम रही है।आंकड़ों के अनुसार पेट्रोल खपत मई-2021 में 19़9 लाख टन रही, जो पिछले साल के मुकाबले 12 प्रतिशत अधिक है। जबकि अप्रैल-2021 के मुकाबले 16 प्रतिशत और कोविड पूर्व स्तर के मुकाबले 27 प्रतिशत कम है। इसी तरह डीजल की बिक्री सालाना आधार पर मई में मामूली बढ़कर 55़3 लाख टन रही, लेकिन अप्रैल के मुकाबले 17 प्रतिशत और कोविड पूर्व स्तर के मुकाबले 29 प्रतिशत कम है।
उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि हम मार्च 2021 में खपत के मामले में कोविड पूर्व स्तर के करीब थे, लेकिन महामारी की दूसरी लहर और उसकी रोकथाम के लिए लगाई गई पाबंदियों से व्यक्तिगत आवाजाही और औद्योगिक वस्तुओं के आने-जाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अब अनलक प्रक्रिया शुरू हुई, इसलिए अगले कुछ दिनों में खपत बढ़ेगी।

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