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आपदा प्रभावित गांव में आजीविका पुनर्वास को 6माह के पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत

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देहरादून। माता-पिता की देखभाल से वंचित बच्चों और अनाथ बच्चों को परिवार की तरह देखभाल प्रदान करने वाला भारत का सबसे बड़ा चाइल्ड केयर एनजीओ एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज आफ इंडिया (एसओएससीवीआई) ने आजीविका पुनर्वास और क्षमता निर्माण के लिए दीर्घकालिक उपाय प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता के तहत उत्तराखंड के करचो गांव में छह महीने के पायलट प्रोजेक्ट का शुभारंभ किया है। करचो चमोली जिले के उन ग्यारह गांवों में से एक है, जो अलकनंदा नदी प्रणाली में हाल ही में हिमस्खलन से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। यह गांव 7 फरवरी को जोशीमठ में नंदा देवी ग्लेशियर से हिमस्खलन से प्रभावित हुआ था। एसओएससीवीआई की परियोजना का मुख्य उद्देश्य आपदा के दौरान परिवार में कमाने वाले व्यक्ति और आजीविका खो चुके परिवारों के बच्चों के लिए माता-पिता की तरह गुणवत्ता पूर्ण देखभाल की सुविधा प्रदान करना है। एसओएससीवीआई वर्तमान में चमोली जिले में राहत और पुनर्वास प्रयासों में शामिल होने वाला एकमात्र चाइल्ड केयर एनजीओ है। एसओएससीवीआई वर्तमान में जरूरतमंद परिवारों को नकद और सूखा राशन दे रहा है, और उन ग्रामीणों को मनोवैज्ञानिक परामर्श दे रहा है, जो इस अप्रत्याशित आपदा के कारण हुए जानमाल और आजीविका के नुकसान के सदमे से अभी तक बाहर नहीं आ पाये हैं। एसओएससीवीआई एक चिल्ड्रेन लर्निंग सेंटर भी चला रहा है जिसे स्थानीय समुदाय और पंचायत के सहयोग से स्थापित किया गया है। चाइल्डकेअर सेंटर बच्चों को सार्थक गतिविधियों में शामिल कर रहा है जो उनके शारीरिक, बौद्धिक और भावनात्मक भलाई में योगदान देगा। हाल ही में शुरू किए गए पायलट प्रोजेक्ट के साथ, एसओएससीवीआई का उद्देश्य प्रभावित परिवारों के लिए नियमित आय का एक स्रोत सुनिश्चित करने के लिए पशुधन और व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना और बच्चों को पढ़ने- लिखने की बुनियादी सामग्री और ट्यूशन से मदद करना है। यहां के बच्चे समुदाय में ऐसी पहली पीढ़ी है जो स्कूल जाएगी और इसलिए उनके पढ़ने, लिखने और समझने की क्षमता काफी कम है। एनजीओ जनसंख्या के स्वास्थ्य प्रोफाइल को मजबूत करने के लिए भी कदम उठाएगा जो बॉडी मास इंडेक्स और पोषण जैसे विभिन्न मापदंडों पर संतोषजनक स्तर पर नहीं है। एसओएससीवीआई ने इस पहल के लिए पहले गांव के रूप में करचो को चुना, क्योंकि उसका मानना है कि यहां इस पहल का निम्नलिखित कारणों से अधिकतम प्रभाव हो सकता हैरू कराची घाटी का अंतिम गांव है जो जोशीमठ से 20 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित है, और इस आपदा का केंद्र है। जब जानमाल का नुकसान होता है, तो अन्य एजेंसियां और सरकार यहां कोई मदद नहीं पहुंचा पाती हैं क्योंकि इस स्थान तक पहुंचना मुश्किल है। गांव की आबादी लगभग 350 (2011 की जनगणना के अनुसार) है जिसमें से 16 प्रतिशत से अधिक आबादी भूटिया जनजाति की है। गांव के कई पुरुषों को पावर प्लांट के द्वारा ठेका मजदूर के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन जब तक स्थानीय स्तर पर आजीविका के अवसरों का सृजन नहीं किया जाता है, तब तक पुरुषों को बच्चों और बुजुर्गों को पीछे छोड़ते हुए, नौकरियों के लिए शहरों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। एसओएससीवीआई के चल रहे राहत और पुनर्वास कार्यों पर बात करते हुए, इसके महासचिव सुमंता कर ने कहा, ‘‘7 फरवरी को हिमस्खलन के बाद, हमने तुरंत इस आपदा के प्रभाव को मापने के लिए एक जमीनी आकलन किया।

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