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लगातार तीसरी बार बेल्ट एंड रोड फोरम का बहिष्कार, भारत की दो टूक- ‘संप्रभुता’ पर चीन से समझौता नहीं

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बीजिंग, एजेंसी। चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। भारत लगातार तीसरी बार इसका बहिष्कार करने के लिए तैयार है। विवादास्पद चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) और देश की संप्रभुता से जुड़े मुद्दों पर भारत ने कहा कि कोई समझौता नहीं किया जाएगा। रिपोट्र्स के मुताबिक, मंगलवार को बीजिंग में सीपीईसी पर बात होगी। संप्रभुता के मुद्दों पर अपना रुख साफ करने के लिए भारत ने इसका बहिष्कार करने का फैसला लिया है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि छोटे देशों में बीजिंग की परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता पर भी भारत अपना रूख साफ करेगा। सीपीईसी पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरता है। चीन की इस परियोजना को पाकिस्तान के हित में माना जाता है।
खबरों के अनुसार, चीन दो दिवसीय बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन (बीआरएफआईसी) का आयोजन कर रहा है। चीन की आलोचना का प्रमुख बिंदु है कि अस्थिर परियोजनाओं के लिए अरबों डॉलर का ऋण दिया गया। अब ये लोन श्रीलंका जैसे छोटे देशों के लिए कर्ज का जाल बन गया है। श्रीलंका जैसे देश गहरे आर्थिक संकट में फंस गए हैं।
राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पसंदीदा परियोजना- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के 10 साल पूरे हो रहे हैं। चीन 2017 और 2019 में अपनी मेगा वैश्विक बुनियादी ढांचा पहल के लिए दो अंतरराष्ट्रीय मंचों का आयोजन कर चुका है। भारत दोनों बैठकों से दूर रहा था। ताजा घटनाक्रम में आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पिछले दो बीआरआई सम्मेलनों की तरह भारत इस साल की बैठक में भी हिस्सा नहीं लेगा।
भारत बीआरआई की अपनी आलोचना पर कायम है। भारत का कहना है कि देश की संप्रभुता संबंधी चिंताओं को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के माध्यम से सीपीईसी बनाया जा रहा है। इसकी लागत 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। भारत अपनी आलोचना में इस बिंदु पर भी मुखर है कि बीआरआई परियोजनाएं सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, सुशासन और कानून के शासन पर आधारित होनी चाहिए। खुलेपन, पारदर्शिता और वित्तीय स्थिरता के सिद्धांतों का पालन होना चाहिए।
चीनी उप विदेश मंत्री मा झाओक्सू ने सम्मेलन से पहले शिन्हुआ समाचार एजेंसी को बताया, “बीआरएफआईसी इस साल चीन द्वारा आयोजित सबसे महत्वपूर्ण राजनयिक कार्यक्रम है। ये बेल्ट एंड रोड पहल की 10वीं वर्षगांठ के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है।”
विदेश मंत्री मा ने कहा, अब तक, 140 से अधिक देशों और 30 से अधिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों, जिनमें राज्य के नेता, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख, मंत्रिस्तरीय अधिकारी और व्यापार क्षेत्र, शिक्षा और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में शामिल होंगे। आयोजन में भाग लेने के लिए 4,000 से अधिक प्रतिनिधियों ने पंजीकरण कराया है।
रूस की आधिकारिक समाचार एजेंसी के अनुसार, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी बैठक में भाग लेंगे। कई अन्य राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों के प्रमुख, विशेष रूप से श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे भी बैठक में शामिल होंगे। बता दें कि श्रीलंका दिवालिया हो चुका है। बता दें कि श्रीलंका पर कुल 46.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी कर्ज है। इसका 52 फीसदी हिस्सा उसके सबसे बड़े ऋणदाता चीन ने दिया है।
भारत ने श्रीलंका को उसके सबसे खराब आर्थिक संकट से तुरंत उबरने के लिए लगभग चार अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता दी थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की तरफ से बेलआउट पैकेज पाने में भी भारत ने श्रीलंका की मदद की थी।
2017 में चीन नेकर्ज की अदला-बदली के रूप में श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद बीआरआई परियोजनाओं पर चिंताएं बढ़ीं। मलेशिया और यहां तक कि बीजिंग के सदाबहार सहयोगी पाकिस्तान सहित कई अन्य देशों ने कर्ज की चिंता के कारण चीनी परियोजनाओं में कटौती की इच्छा जाहिर की है।

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