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राजस्थान में ‘रिवाज बदलेगा’ को लेकर कांग्रेस का दांव, तैयारियों के लिए दिल्ली से मिल रहे निर्देश

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नई दिल्ली, एजेंसी। अगले कुछ महीनों के भीतर ही राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने हैं। अब सवाल यही है कि क्या राजस्थान में भी हर पांच साल पर बदलने वाली सरकार का “रिवाज बदलेगा” या “रिवाज कायम रहेगा”। इसको लेकर राजनीतिक दलों ने अपने अपने तरीके से सियासी दांवपेच चलने शुरू कर दिए हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकार बदलने वाले रिवाज को बदलने के लिहाज से ऐसा सियासी दांव चला है जिसको कि मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है। सात जिलों को बनाने की तैयारियों के बीच गहलोत ने 19 जिले बनाने का दांव चलकर सियासी हवाओं को एक अलग ही दिशा दे दी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गहलोत सरकार की ओर से जिले बनाने से ना सिर्फ स्थानीय लोगों को साधने की कोशिश की है, बल्कि जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी बड़ा दांव चला है। भारतीय जनता पार्टी ने इसको सियासी दांव ही माना है।
इस साल कई राज्यों में विधानधान सभा के चुनाव होने हैं। राजस्थान उनमें प्रमुख राज्य है। राजनीतिक विश्लेषकों हरिओम शर्मा का कहना है कि बीते चार चुनावों से इस प्रदेश में सरकार हर पांचवें साल रिपीट ना होने का चलन हो गया है। ऐसे में अगर उस रिवाज की बात की जाए तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार रिपीट होती नहीं दिख रही है। इसी बदले रिवाज को लेकर कांग्रेस ने सियासी दांव चलकर राजस्थान में माहौल बदलने की कोशिश शुरू कर दी है। शर्मा कहते हैं जिस तरीके से राजस्थान में 19 जिले नए बना दिए गए वह सियासी रूप से कांग्रेस के लिए बहुत फायदेमंद नजर आ रहा है। उसके पीछे उनका तर्क यह है कि नए जिले बनाने से स्थानीय लोगों की बहुत सी जरूरतें और समस्याओं का समाधान होगा। खासतौर से उन जिलों के लोगों को ज्यादा सहूलियत होगी जो कि 100 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करके अपने जिला मुख्यालय पहुंचते थे। शर्मा का मानना है कि अशोक गहलोत ने राज्य के बजट के जारी होने के बाद तीसरी बार इस तरीके की बड़ी घोषणा करके सियासी हलचल पैदा की है।
राजस्थान में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक साथ 19 जिले बनाए गए। राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक आरएन मीना कहते हैं कि जिस तरह से अशोक गहलोत ने 7 जिलों की जगह पर 19 जिले और तीन नए संभाग बनाए हैं वह सियासी नजरिए से उनकी गणित में फिट बैठ रहे हैं। उनका कहना है कि राजस्थान के जिन 19 जिलों को बनाने के साथ इलाकों की जातिगत समीकरणों को साधा गया है वह किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनावी सीजन में मुनाफे का सौदा हो सकता है। वह उदाहरण के तौर पर कहते हैं कि राजस्थान में नए जिले बने कोटपूतली में न सिर्फ जातिगत समीकरण सधेंगे बल्कि लोगों को सवा सौ किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय जयपुर पहुंचने की जद्दोहद से भी बचाया जा सकेगा। वह कहते हैं कि इसके अलावा ऐसा करके नए बनाए गए जिलों के जातिगत समीकरणों को साधने वाले नेताओं को मजबूत कर चुनाव में अपनी पकड़ बनाने का भी अशोक गहलोत ने मास्टर स्ट्रोक वाला दांव चला है।
सियासी जानकारों का मानना है कि बीते चार चुनावों से राजस्थान में जिस तरीके से एक रिवाज बन गया है सरकार के रिपीट ना होने का उस लिहाज से सत्ता पक्ष के रिपीट न होने का खतरा दिख रहा है। हालांकि कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि इस बार राजस्थान में सरकार बदलने का रिवाज बदलेगा। उनका कहना है कि हर पांच साल पर सरकार बदलने का ट्रेंड इस बार नहीं दिखेगा। इसके पीछे तर्क देते हुए कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि लंबे समय से राजस्थान में कई जिलों की मांग की जा रही थी। सात जिले तो ऐसे थे जिनको बनाने को राज्य की एक कमेटी ने भी अपनी सिफारिश की थी। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता कहते हैं अशोक गहलोत ने जिस तरीके से राजस्थान में इतना बड़ा फैसला 19 नए जिले बनाने को लेकर किया उसमें कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की भी सहमति थी। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सात जिलों को बनाने के साथ जिस तरीके से कांग्रेस को चुनौतियों का सामना करना पड़ता उसी से बचने के लिए अशोक गहलोत ने राज्य में 19 जिले बना दिए। चुनौतियों में ना सिर्फ स्थानीय स्तर के नेताओं का विरोध बल्कि जातिगत समीकरणों के आधार पर होने वाला बड़ा बंटवारा भी शामिल था।
राजस्थान सरकार के इस बड़े सियासी दांव पर भारतीय जनता पार्टी ने हमला करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने जल्दबाजी में फैसला लिया है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी की नेता वसुंधरा राजे कहती हैं कि प्रदेश के चिंताजनक राजकोषीय संकेतकों को मुख्यमंत्री जी ने ताक पर रखकर बजट का राजनीतिकरण करने का प्रयास किया है। जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। नए जिले बनाए जाने की प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण तथ्यों को नजरंदाज कर दिया गया है। जिसके चलते नए जिले बनने से होने वाली सुगमता के बजाय लोगों को प्रशासनिक जटिलताओं का सामना करना पड़ेगा। राजस्थान भारतीय जनता पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राजस्थान में इस बार सरकार बदलने का रिवाज कायम रहेगा। उनका तर्क है कि कांग्रेस ने जो फैसले लिए हैं वह जनता के हित की बजाय राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने जैसे हैं। यही वजह है कि राजस्थान में यहां की जनता इस बार कांग्रेस की सत्ता को बेदखल करेगी।

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