उत्तराखंड

कुली बेगार प्रथा का आंदोलन हमेशा रहेगा याद

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रुद्रप्रयाग। जनपद के ककोड़ाखाल में कुली बेगार प्रथा के विरोध की 103वीं वर्षगांठ पर ग्राम पंचायत नाग-ककोड़ाखाल में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस मौके पर ककोड़ाखाल आंदोलन के नायक गढ़केशरी स्व़ अनसूया प्रसाद बहुगुणा सहित अन्य आंदोलनकारियों को श्रद्घांजलि दी गई। साथ ही ककोड़ाखाल आंदोलन को उत्तराखंड के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की गई। इस मौके पर स्कूली बच्चों के साथ ही महिला मंगल दलों ने देशभक्ति गीत प्रस्तुत किए। शुक्रवार को जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ककोड़ाखाल में आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि रुद्रप्रयाग विधायक भरत चौधरी मौजूद थे। सबसे पहले मुख्य अतिथि और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा स्मारक पर पुष्प अर्पित करते हुए आंदोलनकारियों को श्रद्घांजलि दी गई। विधायक चौधरी ने कहा कि ककोड़ाखाल में कुली बेगार प्रथा का आंदोलन इतिहास में दर्ज है। यह कभी न भुलाए जाने वाला आंदोलन है। यहां के विकास और विभिन्न समस्याओं के निराकरण के प्रयास किए जाएंगे। बता दें कि 12 जनवरी 1921 को ही दशजूला क्षेत्र के ककोड़ाखाल में असहयोग आन्दोलन ने तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर मेसन और उनकी टीम को बेगार के बदले भारी जन विरोध का सामना करने को मजबूर किया और उन्हें ककोड़ाखाल से रातोंरात भागना पड़ा। इसके बाद तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने सरकार को सूचित किया कि अब गढ़वाल में बेगार नहीं मिल पाएगी। वक्ताओं ने कहा कि कुली बेगार प्रथा को खत्म करने के लिए अनसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में ककोड़ाखाल से पहली आवाज उठी थी। आजादी से पूर्व गढ़वाल का यह पहला स्वतंत्रता आंदोलन था, जो कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है। नई पीढ़ी को भी आंदोलन के प्रति जानकारी देने की जरूरत है। स्थानीय लोगों ने ऐसे करीब 60 आंदोलनकारियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा देने और भव्य स्मारक निर्माण की मांग की। कार्यक्रम का संचालन ईश्वर सिंह बिष्ट ने किया। इस मौके पर जिपंस सविता भंडारी, आनंद सिंह बिष्ट, ईश्वर सिंह बिष्ट, जेएस नेगी सहित ग्राम पंचायत सारी, सिंद्रवाणी, डांडा, नाग आदि के ग्रामीण मौजूद थे।

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