कोटद्वार-पौड़ी

सड़क पर उतरा जन हुजूम, भू-कानून व मूल निवास लागू करने की मांग

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

कोटद्वार में मूल निवास व भू-कानून लागू करने की मांग को लेकर निकली रैली
प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों ने की शिरकत
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार: मूल निवास-1950 और सशक्त भू-कानून लागू किए जाने की मांग को लेकर गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार मे रविवार को जनहुजूम उमड़ पड़ा। रैली के माध्यम से लोगों ने सरकार से जल्द भू-कानू व मूलनिवास लागू करने की मांग उठाई। कहा कि प्रदेश की संस्कृति व सभ्यता को बचाने के लिए कानूनों का लागू होना अति आवश्यक है। महारैली में कोटद्वार समेत प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से हजारों लोग शामिल हुए।
‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के आह्वान पर हुई इस महारैली को जबर्दस्त समर्थन मिला कोटद्वार के देवी मंदिर से मालवीय उद्यान तक महारैली निकाली गई। महारैली से पहले देवी मंदिर के समीप सभा का आयोजन किया गया, जिसमें आंदोलनकारियों ने अपने विचार रखे। ‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कोटद्वार त्याग, तपस्या और बलिदान की भूमि है। कहा कि प्रदेश के बेहतर विकास के लिए भू-कानून व मूल निवास लागू किया जाना अति आवश्यक है। देहरादून, हल्द्वानी, टिहरी में मूल निवास स्वाभिमान महारैली की सफलता के बाद कोटद्वार में महारैली हो रही है। गढ़वाल के प्रवेश द्वार में हुई इस महारैली का संदेश पहाड़ के गांव-गांव तक जाएगा और लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक होंगे। उन्होंने कहा कि जमीन माफिया कोटद्वार के आसपास की बेशकीमती जमीनों को खरीद रहे हैं। हमारे यहां रिसोर्ट कल्चर शुरू हो गया है। जो हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाता है। लचर कानून के कारण लोग अपनी पुरखों की जमीन बेच रहे हैं और बाहर से आये लोगों के रिसोर्ट में नौकर बनने के लिए मजबूर हैं। हमारी लड़ाई न सिर्फ अपनी जमीनों को बचाने की है, बल्कि मूल निवासियों को मालिक बनाने की भी है। आज हमारे युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। बाहर से आने वाले लोगों के लिए हमारे राज्य में नौकरियां हैं। हम चाहते हैं कि हर तरह की नौकरियों और रोजगार में पहला हक मूल निवासियों का होना चाहिए। हम अपने लोगों के हक की लड़ाई अंतिम सांस तक लड़ते रहेंगे। संघर्ष समिति के सह संयोजक लुशुन टोडरिया, कोर मेंबर प्रमोद काला ने कहा कि दुगड्डा, फतेहपुर, लैंसडौन, चमेठा, ताड़केश्वर, रिखणीखाल सहित अन्य हिस्सों में जमीन बिक गई है। इससे आने वाले समय में हमारी सांस्कृतिक पहचान खत्म हो जाएगी। मूल निवासियों का अस्तित्व खतरे में आ जायेगा। पूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष महेंद्र पाल रावत, पूर्व पार्षद प्रवेंद्र रावत, रमेश भंडारी, यूकेडी के वरिष्ठ नेता शक्तिशैल कपरवाण राज्य आंदोलनकारी महेंद्र रावत, शिवानंद लखेड़ा, गोविंद डंडरियाल, गजेंद्र तिवारी, महेंद्र पंवार ने कहा कि आज 40 से 45 लाख लोग बाहर से हमारे राज्य में आ गए हैं और हमारे संसाधनों को लूटने का काम कर रहे हैं। इस कारण हमारी धार्मिक और संस्कृति खतरे में है। बेरोजगार संघ के उपाध्यक्ष राम कंडवाल, पहाड़ी आर्मी के अध्यक्ष हरीश रावत, स्वराज हिन्द से सुशील भट्ट, वंदे मातरम ग्रुप हल्द्वानी के संस्थापक शैलेंद्र दानू, कांग्रेस जिला अध्यक्ष विनोद डबराल, दुगड्डा ब्लॉक प्रमुख रुचि कैंतुरा, पूर्व ब्लॉक प्रमुख नैनीडांडा रश्मि पटवाल, पुर्व ब्लॉक प्रमुख पोखडा सुरेंद्र सिंह रावत, वाचस्पति भट्ट सलाण, हरेंद्र सिंह रोथाण ने कहा कि 40 से ज्यादा आंदोलनकारियों की शहादत से हासिल हुआ हमारा उत्तराखंड राज्य आज 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि 23 साल बाद भी यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है और अब तो हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं। यूकेडी के केंद्रीय महामंत्री कर्नल (रि) सुनील कोटनाला, दीप्ति दुदपुड़ी, योगेश बिष्ट, कैप्टन चंद्रमोहन सिंह गड़िया, सूबेदार मेजर महिपाल सिंह, दीपक भाकुनी, पौड़ी बचाओ समिति के संयोजक नमन चंदोला, कुसुम बौड़ाई ने कहा कि मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू करने के साथ ही प्रदेश में मजबूत भू-कानून लागू किया जाना बेहद जरूरी है। कहा कि मूल निवास का मुद्दा उत्तराखंड की पहचान के साथ ही यहां के लोगों के भविष्य से भी जुड़ा है। उन्होंने कहा कि मूल निवास की लड़ाई जीते बिना उत्तराखंड का भविष्य असुरक्षित है। इस मौके पर राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के संस्थापक शिवप्रसाद सेमवाल, कांग्रेस से बलबीर सिंह रावत, प्रवेश रावत, रंजना रावत, यूकेडी प्रवक्ता मीनाक्षी घिल्डियाल, हिंदू समाज पार्टी से दीपक रावत जयदेव भूमि फाउंडेशन से शिवानंद लाखेड़ा, महिला पतंजलि से शोभा रावत, अनिल डोभाल, पंकज उनियाल, अल्मोड़ा से राकेश बिष्ट, चौकुटिया से भुवन कठैत, पुष्पा चौहान, किरण बौड़ाई, बार एसोसिएशन से अजय पंत ने कहा कि उत्तराखंड आदि मौजूद रहे।

यह हैं प्रमुख मांगे
-मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए।
-प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।
-शहरी क्षेत्र में 250 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। 250 वर्ग मीटर जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो।
-ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
-गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
-पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
-राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
-प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
-ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
-सरकार राज्य में संविधान के मौलिक अधिकारों की धारा 16-ए के अनुसार राज्य विधानसभा में एक संकल्प पारित करे, जिसमें तृतीय और चतुर्थ श्रेणी सहित उन सभी पदों पर स्थानीय युवाओं के लिए पद आरक्षित करे। इस तरह की व्यवस्था देश के चार राज्यों आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, हिमाचल और मणिपुर में है। यह अधिकार हमें संसद देती है। इसके लिए राज्य सरकार तुरंत एक संकल्प पत्र केन्द्र सरकार को भेजे।
-राज्य में उन सभी पदों में स्थानीय भाषाओं की अनिवार्यता लागू की जाए जो सीधे जनता से जुड़े हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!