अतिवृष्टि और कम बारिश के लिए जिम्मेदार है जंगलों की आग
गढ़वाल विवि और आईआईटी कानपुर की शोध रिपोर्ट
जयन्त प्रतिनिधि।
श्रीनगर। अतिवृष्टि या बारिश कम होने का सीधा संबंध जंगलों की आग से है। एचएनबी गढ़वाल (केंद्रीय) विवि श्रीनगर और आईआईटी कानपुर के अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि जंगलों की आग के दौरान वातावरण में क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियाई (सीसीएन) की मात्रा सामान्य मौसम की तुलना में 5 गुना ज्यादा हो जाती है। सीसीएन बादल बनाने का महत्वपूर्ण घटक है।
गढ़वाल विवि के स्वामी रामतीर्थ परिसर टिहरी में हिमालयन क्लाउड ऑब्जरवेटरी (हिमालय बादल अध्ययन प्रयोगशाला) स्थापित की गई है। यहां गढ़वाल विवि श्रीनगर के भौतिकी विभाग के सहायक प्रो. आलोक सागर के नेतृत्व में गढ़वाल विवि और आईआईटी कानपुर के शोधकर्ता मौसम बदलाव का अध्ययन कर रहे हैं। इस प्रयोगशाला में बादल और बारिश की बूंदों की बनने की प्रक्रिया के अध्ययन के लिए क्लाउड कंडेशसेशन न्यूक्लिाई (सीसीएन) काउंटर लगाए गए हैं। यह काउंटर 80 नैनोमीटर आकार के सूक्ष्म कणों को मापता है। टीम ने वर्ष 2018 और 2019 के दौरान सीसीएन का अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान यह सामने आया कि सामान्य मौसम में रानीचौरी (टिहरी) क्षेत्र में प्रति घन मीटर में 1 हजार से 4 हजार प्रति घन मीटर सीसीएन होते हैं। लेकिन जब भी आग लगी, तो सीसीएन की मात्रा 20 हजार प्रति घन मीटर को पार कर गई। डा. गौतम बताते हैं कि एक बादल की छोटी बूंद के चारों ओर संघनित होकर कण एकत्रित जाते हैं। इसे सीसीएन कहते हैं। सीसीएन बारिश के लिए उत्तरदाई होती है। यदि वातावरण में ज्यादा नमी हुई और सीसीएन की मात्रा बढ़ी, तो तेज बारिश हो सकती है। जबकि शुष्क मौसम में बारिश नहीं हो सकती है। जब बर्फबारी होती है, तो सीसीएन 400 से 500 घन मीटर हो जाती है। डा. गौतम बताते हैं कि यह कहा जा सकता है कि जब जंगल में आग लगती है और इसका धुआं नमी वाले क्षेत्रों में पहुंचता है, तो सीसीएन बढऩे से तेज बारिश हो सकती है। उनका शोध अध्ययन एल्सवीयर की शोध पत्रिका एटमास्फेरिक एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।
यह हैं टीम में शामिल शोधकर्ता
प्रो. एनएस त्रिपाठी (आईआईटी कानपुर) और प्रो. आरसी रमोला, संजीव कुमार, करन सिंह व अभिषेक जोशी (गढ़वाल विवि श्रीनगर)